राजस्थानी कविता !!गांव नै गांव रैवण द्यो!!

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सैरां सूं लाख भली म्हारी पैचाण रैवण द्यो

उभी बाड़ रै नेड़ै हथाई वाळी ठौड़ रैवण द्यो।


गंगाजळ सो मिठो पाणी सरवर री पाळ रैवण द्यो

गुवाड़ बिचाळै डांगरां री वा घमसाण रैवण द्यो।


गळी री रेत मांय खोजां री पिछाण रैवण द्यो

सुखाण मांय थेपड़ियां री थरपाण रैवण द्यो।


करमा बाई रै खीचड़ळै मांय धोळी धार रैवण द्यो

ऊभो जीमणो छोड़'र बाजोट री सतकार रैवण द्यो।


दिवाळी रा दिया अर होळी री पिचकार रैवण द्यो

आखातीज,गणगौर,भादवै रा तीज तिंवार रैवण द्यो।


मिंदर मै झांझरगै झालर री झणकार रैवण द्यो

मिनखपणै रो सुभाव जीवां माथै उपकार रैवण द्यो।


हीय मै प्रेम अर भेळो भायां रो कड़ुमो रैवण द्यो

कलम पवन री कैवै अजी गांव नै गांव रैवण द्यो।


.पवनकुमार राजपुरोहित

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Published on February 12, 2024 22:11
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