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प्रेमचन्द के फटे जूते

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‘प्रेमचंद के फटे जूते’ शीर्षक से यह प्रतिष्ठित कथाकार ज्ञानरंजन द्वारा सम्पादित हरिशंकर परसाई की प्रतिनिधि रचनाओं का संचयन है। इन रचनाओं में परसाई ने अपने युग के समाज का, उसकी बहुविध विसंगतियों, अन्तर्विरोधों और मिथ्याचारों का उद्घाटन किया है। इन रचनाओं में हँसी से बढ़कर जीवन की तीखी आलोचना है। परसाई का समग्र रूप अनूठा है। उनके पास स्मृति है और तर्क है। तर्क मनहूनी को काटता है और चपल विनोद-वृत्ति तथा ठाठदार हास्य की शैली से आगे बढ़ जाता है। व्यार और भक्ति के समुद्र के बीच परसाई ने अपनी ज्वलन्त और मौलिक खड़ी बोली में भारतीय समाज की असंख्य पेण्टिग्स बना डाली। प्रेमचन्द्र के बाद वे हिन्दी में सबसे अधिक पढ़े जानेवाले रचनाकार है।

325 pages, Hardcover

First published January 1, 2009

18 people are currently reading
390 people want to read

About the author

Harishankar Parsai

87 books234 followers
Harishankar Parsai (हरिशंकर परसाई) was one of the greatest hindi satire writer. Despite holding a MA degree in English, he never wrote in this language. Started his career as a teacher, he later quit it to become a full time writer and started a literature magazine "Vasudha"(it was later closed because of financial difficulties).

He was famous for his blunt and pinching style of writing which included allegorical as well as realist approach. He was funny enough to make you laugh but serious enough to prick your conscience. There would be hardly any dimension of life left which has not appeared in his satires. He received Sahitya Academy Award(biggest literature award in India) for his book "Viklaang Sraddha ka Daur". He has penned down some novels also.

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Community Reviews

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82 (58%)
4 stars
47 (33%)
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7 (5%)
2 stars
1 (<1%)
1 star
2 (1%)
Displaying 1 - 4 of 4 reviews
Profile Image for Archit.
826 reviews3,200 followers
March 20, 2018
Harishankar Parsai is well known and one of the most wonderful writers in Hindi literature.

The best thing about his books is that his methods of convincing the general audience is unique and impactful. If you want to learn to write satire, read his books.
Profile Image for Divya Pal.
601 reviews3 followers
August 13, 2023
उत्कृष्ट कटूपहास, शानदार व्यंग्यात्मक कहानियों और निबंधों का संग्रह। स्वतंत्र भारत के संदर्भ में लेखक भ्रष्टाचार, विदेशी सहायता - विशेषकर गेहूं तथा अन्य खाद्यन्न, चीन और पाकिस्तान से युद्ध का संकट, दुष्ट राजनेता और पाखंडी धार्मिक गुरु जैसे मुद्दों और दैनिक जीवन से अन्य प्रसंग को संबोधित करते हैं । इसमें एक प्रफुल्लित करने वाला मृत्युलेख, एक शरारती SF सूत, उस काल के हिंदी साहित्यिक परिदृश्य के कुछ अंश इत्यादि हैं । सरकारी दफ्तरों में भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी के प्रसंग में कृष्ण और सुदामा का लोमहर्षक मिलन होता है, जिसमें भेंट हेतु मुठ्ठीभर चावल श्री कृष्ण से पहले ही उनके पहरेदार हड़प लेते हैं ।
इस चित्र ने कहानियों के संग्रह के शीर्षक को प्रेरित किया प्रेमचंद जी के फटे जूते की दुर्दशा ध्यान से देखिए
description
कुछ उल्लेखनीय उदाहरण
चरण कमलों से मंच पर चढ़ा, कमल नयनों से लोगों को देखा, कर कमल से फीता काटा और मुख कमल से भाषण दे डाला। उन लोगों ने सिर्फ हाटों को कमल कहा था, मैंने शरीर भर को कमल बना लिया।…
शहर की राधा सहेली से कहती है "हे सखी, नल के मैले पानी में केंचुए और मेंढक आने लगे। मालूम होता है, सुहावनी मनभावनी वर्षाऋतु आ गयी।"
आगे वह 'श्याम नहीं आये' वगैरह प्राइवेट वाक्य बोलती होगी, जिनसे मुझे मतलब नहीं। विरहिणी मेघ नहीं देखती, नल खोलकर केंचुए और मेंढक देखती है। वर्षा का इससे विश्वसनीय संकेत दूसरा अब नहीं है। प्राकृतिक नियम बदल गए, ऋतुओं ने मर्यादा त्याग दी, मगर इस नल ने किसी भी वर्षाऋतु में केंचुए और मेंढक उगलने में कमी नहीं की।
न्यायलय, कोर्ट कचेहरी के तमाशे
अभी तक मैं सोचता था कि अर्जुन युद्ध नहीं करना चाहता था, पर कृष्ण ने उसे लड़वा दिया। यह अच्छा नहीं किया। अगर अर्जुन युद्ध नहीं करता, तो क्या करता? कचहरी जाता। जमीन का मुकदमा दायर करता। लेकिन वन से लौटे पाण्डव अगर जैसे-तैसे कोर्ट-फीस चुका भी देते, तो वकीलों की फीस कहाँ से देते, गवाहों को पैसे कहाँ से देते? और कचहरी में धर्मराज का क्या हाल होता? वे 'क्रॉस-एग्जामिनेशन' के पहले ही झटके में उखड़ जाते। सत्यवादी भी कहीं मुकदमा लड़ सकते! कचहरी की चपेट में भीम की चर्बी उतर जाती। युद्ध में अट्ठारह दिन में फैसला हो गया; कचहरी में अट्ठारह साल भी लग जाते। और जीतता दुर्योधन ही, क्योंकि उसके पास पैसा था। सत्य सूक्ष्म है; पैसा स्थूल है। न्याय-देवता को पैसा दिख जाता है; सत्य नहीं दिखता। शायद पाण्डव मुकदमा लड़ते-लड़ते मर जाते क्योंकि दुर्योधन पेशी बढ़ता जाता। पाण्डवों के बाद उनके बेटे लड़ते; फिर उनके बेटे। बड़ा उच्च किया कृष्ण ने जो अर्जुन को लड़वाकर अट्ठारह दिन में फैसला करा लिया। वरना आज कौरव-पाण्डव के वंशज किसी दीवानी कचहरी में वही मुकदमा लड़ते होते।
अंत में "मुक्तिबोध" को भावभीनी श्रद्धांजलि दी गयी है और लेखक की एक लघु आत्मकथात्मक रेखाचित्र के साथ यह रोचक संग्रह समाप्त होता है ।
Profile Image for Dushyant.
37 reviews3 followers
July 28, 2021
इस पुस्‍तक की कुछ रचनाएं बहुत मार्म‍िक हैं। एक व्‍यंग्यकार के भीतर एक करूण रचनाकार भी छ‍िपा होता है यह जानने के ल‍िए यह संग्रह बहुत अच्‍छा है।
Profile Image for Prerna Munshi.
141 reviews1 follower
November 12, 2021
His satire is a killer! A very honest and unadorned representation of a post colonial India.
Displaying 1 - 4 of 4 reviews

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