शिक्षा: संस्कृत में शास्त्री, अंग्रेजी में बी.ए., संस्कृत और हिन्दी में एम.ए.।
आजीविकाः लाहौर, मुंबई, शिमला, जालंधर और दिल्ली में अध्यापन, संपादन और स्वतंत्र-लेखन।
महत्त्वपूर्ण कथाकार होने के साथ-साथ एक अप्रतिम और लोकप्रिय नाट्य-लेखक। नितांत असंभव और बेहद ईमानदार आदमी।
प्रकाशित पुस्तकें: अँधेरे बंद कमरे, अंतराल, न आने वाला कल (उपन्यास); आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस, आधे-अधूरे, पैर तले की ज़मीन (नाटक); शाकुंतल, मृच्छकटिक (अनूदित नाटक); अंडे के छिलके, अन्य एकांकी तथा बीज नाटक, रात बीतने तक तथा अन्य ध्वनि नाटक (एकांकी); क्वार्टर, पहचान, वारिस, एक घटना (कहानी-संग्रह); बक़लम खुद, परिवेश (निबन्ध); आखिरी चट्टान तक (यात्रावृत्त); एकत्र (अप्रकाशित-असंकलित रचनाएँ); बिना हाड़-मांस के आदमी (बालोपयोगी कहानी-संग्रह) तथा मोहन राकेश रचनावली (13 खंड)।
सम्मान: सर्वश्रेष्ठ नाटक और सर्वश्रेष्ठ नाटककार के संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, नेहरू फ़ेलोशिप, फि़ल्म वित्त निगम का निदेशकत्व, फि़ल्म सेंसर बोर्ड के सदस्य।
Mohan Rakesh always manages to tap the inner angst of his characters and the traumatic turbulence they felt as the result of dysfunctional relationships. In this book also, he manages to bring out these dynamics in interesting ways.
This book is all about inner turmoil of a person who is facing lot of challenges in his professional and personal life .Thinking ,rethinking the decisions is one of the problems which we all face in life.The portrayal of the scene where the protagonist is not able to pen down a reply to the letter his wife sent is very much relatable.अंतर्द्वंद की है यह पूरी कहानी !!!
हर व्यक्ति के अंदर अपना एक एकांत, छटपटाहट , बेचैनी और अजीब तरह के ख्यालात होते है जिनमें वह बंधा हुआ, घुटा सा महसूस करता है। जैसे कि उसे पता हो कि कुछ तो गलत है जीवन में पर क्या गलत है वो नहीं पता। यह उपन्यास ठीक उसी तरह के उदासी, अकेलेपन, हताशा, निराशा और जीवन के वर्तमान स्वरूप से भाग जाने की छटपटाहट का जीवंत और मार्मिक वर्णन है। जैसे ही मैंने इसे पढ़ने शुरू किया उदासी की एक धुंध मेने मानसपटल पर छा गयी। जब कुछ पंक्तियों को अंडरलाइन किया तो बार बार पढ़ कर मन अहो अहो काटने लगा। इस उपन्यास के बारे में कहा जाता है कि यह इस प्रकार से लिखा गया है कि छपने के बाद यह छा गया था। अपने तरीके के अनूठे शैली में लिखे जाने के कारण और युवाओं में व्यापत असंतोष के मर्म स्थल को छूने के कारण। मैं अफले आठ दस पन्नो को लाल कलाम से अंडरलाइन करता रहा फिर सोचा ऐसे तो पूरी किताब लाल हो जाएगी, इसलिए छोड़ दिया।
यह उपन्यास मुझे बहुत ही ज्यादा पसंद आई क्योंकि -
1. मन में व्यापत अंधकार को हम शब्द नहीं दे पाते है, जब कोई कृति सीधा आपसे बात करती है तो उस पर मुग्ध होना लाजमी है।
2. यह मन के अंधेरे और बेचैनी के बारे में होते हुए भी कभी भी बोर नहीं करता है।
3. भाषा बहुत ही परिष्कृत है और पढ़ने के बाद मन बार बार एक ही लाइन को पढ़ने का करता है ओर हर बार उतना ही विस्मृत कर जाता है।
4. कहानी एक ही व्यक्ति से शुरू और खत्म होती है, पर इसमें बहुत सारे मुद्दों और व्यक्तित्व को प्रधानता के साथ रखा गया है। स्कूल का प्लाट होने के कारण बहुत सारे किरदार निखर कर सामने आते है।
5. यह उपन्यास स्त्री पुरुष संबंध पर भी बहुत कुछ कहती है।
इस तरह की बहुत सारी विशेषताओं से लैस यह बहुत ही अनूठा उपन्यास है।