महानगर में जीवन जीने के कुछ अपने नियम हैं। महानगर का जटिल जीवन निर्धनता को बर्दाश्त नहीं करता। वह लगातार धक्के मारता है की कुछ ऐसा करो कि तुम धनी बन जाओ और महानगरीय सभ्यता तुम्हें स्वीकार कर ले। इस दौड़ में संसारी खूब दौड़ते हैं। दो ही इसमें अछूते रहते हैं - फक्कड़, मनमौजी और मस्तकलंदर तथा वे जो गृहस्थ-सन्यासी हैं। 'सपने - तेरे मेरे' में संसारी जीवन की दौड़-धुप है।