हिन्दी के आधुनिक कबीर नागार्जुन की कविता के बारे में डॉ. रामविलास शर्मा ने लिखा है: ‘‘जहाँ मौत नहीं है, बुढ़ापा नहीं है, जनता के असन्तोष और राज्यसभाई जीवन का सन्तुलन नहीं है वह कविता है नागार्जुन की। ढाई पसली के घुमन्तु जीव, दमे के मरीज, गृहस्थी का भार-फिर भी क्या ताकत है नागार्जुन की कविताओं में! और कवियों में जहाँ छायावादी कल्पनाशीलता प्रबल हुई है, नागार्जुन की छायावादी काव्य-शैली कभी की खत्म हो चुकी है। अन्य कवियों में रहस्यवाद और यथार्थवाद को लेकर द्वन्द्व हुआ है, नागार्जुन का व्यंग्य और पैना हुआ है, क्रान्तिकारी आस्था और दृढ़ हुई है, उनके यथार्थ-चित्रण में अधिक विविधता और प्रौढ़ता आई है।...उनकी कविताएँ लोक-संस्कृति के इतना नजदीक हैं कि उसी का एक विकसित रूप मालूम होती हैं। किन्तु वे लोकगीतों से भिन्न हैं, सबसे पहले अपनी भाषा-खड़ी बोली के कारण, उसके बाद अपनी प्रखर राजनीतिक चेतना के कारण, और अन्त में बोलचाल की भाषा की गति और लय को आधार मानकर नए-नए प्रयोगों के कारण। हिन्दीभाषी...किसान और मजदूर जिस तरह की भाषा...समझते और बोलते हैं, उसका निखरा हुआ काव्यम रूप नागार्जुन के यहाँ है।’’
He was one of the most influential poet of Maithili and Hindi. Besides poems, he also wrote a number of short stories, novels and travelogues. He was awarded with Sahitya Academy Award for his book "Patarheen Nagna Gach". He received Sahitya Academy Fellowship for lifetime achievement which is the highest literary award of India.
Born as Vaidya naath Mishra into a Maithil Brahmin family, he later converted to Buddhism and got the name "Nagarjun". He started his literary career with writing maithili poems and chose the pen name "Yatri". He became a teacher for sometime in Saharanpur, UP but his quest for Buddhism led him to Srilanka in 1935 where he converted to Buddhism following the footsteps of his mentor "Rahul Sankrityayan". There he also studied Marxisim and Leninism. After his return, he travelled a lot in India. He also participated in Indian Freedom Movement and was jailed by British govt. In post independence period, he played an active role in JP Movement.
Nagarjun is regarded as Jan Kavi and it is said that he was the first poet of India who took poems out of the hands of elite and spread it to masses.
सुविख्यात प्रगतिशील कवि-कथाकार। हिंदी, मैथिली, संस्कृत और बांग्ला में काव्य-रचना। पूरा नाम वैद्यनाथ मिश्र ‘यात्री’। मातृभाषा मैथिली में ‘यात्री’ नाम से ही लेखन। शिक्षा-समाप्ति के बाद घुमक्कड़ी का निर्णय। गृहस्थ होकर भी रमते-राम। स्वभाव से आवेगशील, जीवंत और फक्कड़। राजनीति और जनता के मुक्तिसंघर्षों में सक्रिय और रचनात्मक हिस्सेदारी। मैथिली काव्य-संग्रह ‘पत्रहीन नग्न गाछ’ के लिए साहित्य अकादेमी पुरस्कार। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान तथा मध्य प्रदेश और बिहार के शिखर सम्मान सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित।
प्रमुख प्रकाशित पुस्तकें: रतिनाथ की चाची, बाबा बटेसरनाथ, दुखमोचन, बलचनमा, वरुण के बेटे, नई पौध आदि (उपन्यास); युगधारा, सतरंगे पंखोंवाली, प्यासी पथराई आँखें, तालाब की मछलियाँ, चंदना, खिचड़ी विप्लव देखा हमने, तुमने कहा था, पुरानी जूतियों का कोरस, हजार-हजार बाँहोंवाली, पका है यह कटहल, अपने खेत में, मैं मिलिटरी का बूढ़ा घोड़ा (कविता-संग्रह); भस्मांकुर, भूमिजा (खंडकाव्य); चित्रा, पत्रहीन नग्न गाछ (हिंदी में भी अनूदित मैथिली कविता-संग्रह); पारो (मैथिली उपन्यास); धर्मलोक शतकम् (संस्कृत काव्य) तथा संस्कृत से कुछ अनूदित कृतियाँ।
A must read. One can say that after Nirala probably he was the only one who has produced poems of high intensities in a beautiful language. He finds beauty in so many trivial things and present them in so uncommon way that the reader will be stunned for sure. Brilliant.
हिन्दी के आधुनिक कबीर बाबा नागार्जुन का कविता संग्रह है, इस संग्रह में बाबा का चिरपरिचित व्यंग जहाँ गुदगुदाता है वहीं समाज और राजनीति के गिरते स्तर को दिखा कर चोट भी पहुँचता है।
बाबा कि कविताए जहाँ नेहरू जी पर वार करती हैं, वहीं उनकी सही जगह पर तारीफ़ भी करती है। इमरजेंसी के दौर में जब हर कोई कुछ भी लिखने या कहने से डरता था उस काल में उनकी कविता "इन्दु जी क्या हुआ आपको" उनके साहस औऱ निडरता का प्रतीक है, इस कविता कि पंक्तियाँ इन्दु जी क्या हुआ आपकोक्या हुआ आपको? क्या हुआ आपको? सत्ता की मस्ती में भूल गई बाप को? इन्दु जी, इन्दु जी, क्या हुआ आपको? बेटे को तार दिया, बोर दिया बाप को! क्या हुआ आपको?
बाबा नागार्जुन कि कविताओं में गरीबों के प्रति गहरा प्रेम है, और उनकी समस्याओं को आवाज़ देने से वो कभी नही चूकते। इस संग्रह में अनेक कविताए ऐसी हैं जिनका मैं ज़िक्र करना चाहता हूँ और जिनके बारे में बाते करने को मन ललचाता है, लेकिन अगर कोई एक विशेष कविता चुननी हो तो "मंत्र कविता" को चुनने में मुझे कोई संकोच नही होगा, ये राजनीति और भ्रष्टाचार पर लिखी एक अद्भुत कविता है। एक बहुत बड़े कवि का एक बहुत बड़ा काव्य संग्रह है ये पुस्तक। अवश्य पढ़ें ।
नागार्जुन कि कविताओं का बेहतरीन संकलन। उनकी काव्यभूमि विपुल है और विषम भी। जो वस्तु औरों की संवेदना को अछूती छोड़ जाती है वहीं नागार्जुन कि कवित्व की रचना भूमि है। बादलों का विस्मित विवरण हो या रिक्शा खींचनेवाले की व्यथा, पके कटहल का सौंदर्य हो या सूअर और नेवले कि क्रीड़ा का विवरण, मैथिली में बूढ़े मां-बाप पर बनाई 'जोड़ा मंदिर' का विवरण हो या 'हरिजन-गाथा' में चित्रित जातीय हिंसा, नागार्जुन सच्चे अर्थों में स्वाधीन भारत के प्रतिनिधि कवि हैं। उनकी कविता की पहुंच किसानों की चौपाल से लेकर कव्यरसिकों की गोष्ठी और राजनीति और क्रांति के गलियारों तक अब प्रासंगिक बनी हुई है।
इससे सहज फिर भी अत्यंत गूढ़ क्या कविता हो सकती है। और जिस तरह से बहुआयामी विषय पर लिखा है उन्होंने, जीवन पर, प्रकृति पर, भूख पर, क्रांति पर, साम्राज्य बाद पर और साम्यवाद पर! अद्भुत!
"कुली मजदूर हैं, बोझा धोते हैं, खींचते है ठेला.... ..... बैठ गए हैं तुमसे सट कर, सच सच बतलाओ..... ...... जी तो नहीं कुढ़ता है घिन तो नहीं आती है ?"
Baba Nagarjun jab vyangya ke teekhe teer ko tatkalin-jo kafi had tak samkalin bhi hai!- yatharthawadi baan mein laga kar jo nishana lagate hen weh pathak ke hridaya pe samvedna ka gehra ghao karne ka apna uddeshaya poora karne mein sarvatha safal hota hai. Adbhuth.Aalokik.Ananya.Amar Sahityik Rachnayen.