युद्धस्थल में मोहग्रस्त एवं भ्रमित अर्जुन से ही मैंने नहीं कहा था कि तुम निमित्त मात्र हो वरन् इस पुस्तक के लेखक से भी कहा है कि तुम निमित्त मात्र हो; कर्ता तो मैं हूँ।… अन्यथा तुम आज की आँखों से उस अतीत को कैसे देख सकोगे; जिसे मैंने भोगा? उस संत्रास का कैसे अनुभव करोगे; जिसे मेरे युग ने झेला है? उस मथुरा को कैसे समझ सकोगे; जो मेरे अस्तित्व की रक्षा के लिए नट की डोर के तनाव पर केवल एक पैरे से चली है?... और दुःखी व्रज के उसव प्रेमोन्माद का तुम्हें क्या आभास लगेगा; जो मेरे वियोग में आकाश के जलते चंद्र को आँचल में छिपाकर करील के कुंजों में विरहाग्नि बिखेर रहा था? कृष्ण के अनगिनत आयाम हैं। दूसरे उपन्यासों में कृष्ण के किसी विशिष्ट आयाम को लिया गया है। किंतु आठ खंडों में विभक्त इस औपन्यासिक श्रृंखला ‘कृष्ण की आत्मकथा’ में कृष्ण को उनकी संपूर्णता और समग्रता में उकेरने का सफल प्रयास किया गया है। किसी भी भाषा में कृष्णचरित को लेकर इतने विशाल और प्रशस्त कैनवस का प्रयोग नहीं किया है। यथार्थ कहा जाए तो ‘कृष्ण की आत्मकथा’ एक उपनिषदीय कृति है। ‘कृष्ण की आत्मकथा श्रृंखला के आठों ग्रंथ’ नारद की भविष्यवाणी दुराभिसंधि द्वारका की स्थापना लाक्षागृह खांडव दाह राजसूय यज्ञ संघर्ष प्रलय।
...आठ भागों में लिखे गए उपन्यास का प्रथम भाग है यह 'नारद की भविष्यवाणी'... कथा का आरंभ भी यहीं से... मथुरा पीड़ित है कंस के अत्याचारों से, नारद भविष्यवाणी करते हैं कि देवकी की आठवीं संतान मथुरा को कंस से मुक्ति दिलाएगी... कृष्ण का जन्म होता है, कहानी को गति मिलती है... आठ भागों में होने से मेरा अनुमान था कि कहानी बहुत ही मंथर गति से चलेगी किन्तु पहले ही भाग में कृष्ण तृणावर्त, पूतना, अघ, बकासुर और कालिय नाग का वध कर चुके हैं, गोवर्धन पूजा से क्रोधित हुए इन्द्र के वर्षा प्रकोप से ब्रजवासियों को बचा चुके हैं, राधा प्रसंग तो है ही और पुस्तक समाप्त होते-होते मथुरा भी बुलाए जा चुके हैं...
आत्मकथा शैली में लिखे इस उपन्यास में सूत्रधार कृष्ण ही हैं और अधिकतम उन्हीं की मनःस्थिति का वर्णन है, उन्हीं का चिंतन है...
कृष्ण जीवन प्रबंधन की पाठशाला हैं, इस पुस्तक के माध्यम से कृष्ण कहते हैं कि मेरा जन्म मनुष्य के रूप में ही हुआ और मनुष्य की तरह ही मैं जिया भी किंतु नारद की भविष्यवाणी ने मुझपर जन्म से ही ईश्वरत्व की परत चढ़ा दी फिर मैंने जो कुछ भी किया उसे चमत्कार कहा गया यद्यपि ऐसा तो कुछ था ही नहीं... कृष्ण कहते हैं कि मेरा जन्म कारा (अंधकार) में हुआ किंतु जन्म के तुरंत पश्चात मैं राका (दूधिया प्रकाश) में आ गया और पूरा जीवन आनंदित ही रहा, यही सबके जीवन का उद्देश्य होना चाहिए, अंधकार से प्रकाश की ओर...
जीवन दर्शन के काफी सूत्रों के साथ किताब कृष्ण जीवन के काफी रहस्य खोलती है, कुछ रहस्य ऐसे भी होंगे जो आपने शायद ही सुने / पढ़े हों.. मैंने तो नहीं ही... जैसे पूतना का वास्तविक नाम महादेवी था और वह कंस के महामंत्री प्रद्योत की धर्मपत्नी थी, मूलतः वह राक्षसी तो नहीं ही थी...
कुल मिलाकर अवश्य पढ़ी जाने वाली किताब है यह, मेरी दृष्टि में काफी सारे best seller से better written किताब, पहले भाग पर प्रतिक्रिया लिखने से पहले इसका दूसरा भाग 'दुरभिसंधि' पढ़ना शुरू कर चुका हूँ मैं...
***** इसी किताब से -
"ईश्वर ने मनुष्य को बनाया है या नहीं, यह विवाद का विषय हो सकता है; पर मनुष्य ने ईश्वर को बनाया है, यह निर्विवाद है"
"कैसी विडंबना है कि हर निरंकुश शासक के अत्याचार की पराकाष्ठा एक ईश्वर को जन्म देती है"
"प्रेम करना, प्रेम को विस्तार देना; पर उसके घनत्व में कभी मत उलझना | प्रेम के विस्तार में मोहकता होती है और घनत्व में मोह | विस्तार में स्वतंत्रता होती है, घनत्व में पराधीनता |"
"आश्चर्य है, गीता मेरा प्रतीक नहीं बनी | वंशी मेरा प्रतीक है | गीता में चिंतन है, बौद्धिकता है ; वंशी में हार्दिकता | गीता दर्शन है, वंशी कला | कला जीवन को रस देती है, दर्शन विचार करता है | कला सुन्दरम है, दर्शन सत्यम | सुन्दरम हमारा आकर्षण होता है, सत्यम के प्रति अरुचि भी हो सकती है | वंशीधर, मुरलीधर मेरे नाम हैं पर गीता के साथ मेरा कोई सार्थक नाम नहीं जन्मा |"
"विष में सबकुछ हो सकता है, जीवन की सम्भावना भी हो सकती है, पर ममता नहीं हो सकती"
"हमारे ऐसे कर्तव्य, जो हमारे व्यक्तित्व में समा नहीं पाते, चमत्कार की संज्ञा लेते हैं"
श्रीकृष्ण के जीवन व व्यक्तित्व पर लिखी गयी कालजयी कृति नारद की भविष्यवाणी में नियति को प्रमुख मानकर तथा स्वयं को दर्शक नहीं पात्र मानकर जीवन जीने की प्रेरणा देने वाले कृतित्व के द्वारा किस प्रकार अग्नि की फसल काटी जाती है बड़े ही रोचक ढंग से लिखा गया है। इस कृति की विशेषता यह है कि इसका वक्ता वक्तव्य हो चुका है तथा ऐसा लगता है कि ईश्वर स्वयं अपनी कहानी सुना रहे हैं।
दोस्तों यह किताब इंटरनेट पर फ़्री में उपलब्ध हो तो कृपया लिंक शेयर करें। या किसी के पास हो तो कृपया उपलब्ध कराए प्लीज़... भाई मैंने सभी 7 खंड पढ़ी है। बहुत शानदार किताब है। दोबारा पड़ना चाहता हूं। मंजूर अहमद 8553003998
This entire review has been hidden because of spoilers.
Krishna Ki Atmkatha Part I- Narad ki Bhaviyavani- नारद की भविष्यवाणी- Manu Sharma-This book has been scribed as the autobiography of Krishna. Krishna is the hero of the Epic Mahabharata. The book narrates the effect of future forecast by Narad. While Kansa, the Prince of Mathura was going to drop her just married sister Devaki with Vasudev, on his chariot, Narad arrived and predicted that “the eighth son of Devaki will kill you.” Life of Krishna rolled on this edifice that Krishna is an Avtar of God. Krishna Vasudev Kamsa arranges to kill all of Devaki's children. When Krishna is born, Vasudeva secretly carries the infant Krishna away across the Yamuna and exchanges him with Yashoda's daughter. When Kamsa finds that the eighth child is a girl, he still tries to kill the newborn exchanged baby. Before dying, this child warns Kansa that that his death has arrived in his kingdom of Mathura and she then disappears. Krishna grows up with Nanda and his wife, Yashoda and the gop-gopi clan. Two of Krishna's siblings also survive, namely Balarama and Subhadra. The legends of Krishna's childhood and youth describe him as a cow-herder, a mischievous boy whose pranks earn him the nickname Makhan Chor (butter thief), and a protector who steals the hearts of the people in both Gokul. Because of availability of more greenery across river Yamuna, the Gops shift to Vrindavana. Pray to Kansa identifies that Krishna is the eighth son of Devaki and he sends his evil men to kill Krishna. Trinavart, Putna, Aghasur, Bakasur and others. Kalia serpent takes shelter in Yamuna making the water poisonous of the cows and human settlements. Krishna jumps in river Yamuna to collect the ball with which he and his friends were playing. He beats Kalia nag, dances on his fins and comes out successful. Up to this age, Krishna is a playful child. As Krishna grows up, he opposes the Indra Rain God puja. Instead, he delivers a talk before all the Gops that we must pray to Goverdhan hill which provides fodder and safety for the cows. Lord Indra is annoyed with this change. He rains on the areas surrounding Goverdhan Hill. Krishna picks up the Goverdhan Hill on his hand, retains it for seven days. Thus, Indra realizes his fault and surrenTders. By this time, Kansa is aware of the growing power of Krishna. He sends his emissary Akrur with a chariot to invite Nand Gop, his kinsmen. He passes the message of the King Kansa to Nand who allows Krishna and Balram to travel to Mathura for Dhanush Yagn and wrestling contest. This book is well written text on Shrikrishna. It should be translated on other Indian languages for readers to all ages to read.
आठ खंडों में श्री कृष्ण जी का संपूर्ण जीवन उनकी आत्मकथा के रूप में लिखने वाले मनु शर्मा जी, हिंदी साहित्य के श्रेष्ठ लेखकों में स्थान पाते हैं। उनकी इस कृति की प्रशंसा करते हुए श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने कहा था कि इसे पढ़ते हुए वे कुछ ज़रूरी काम भूल गए थे। मैंने मनु शर्मा जी की "एक लिंग का दीवान" और "कर्ण की आत्मकथा" पढ़ी थी, और वे दोनों ही मुझे अत्यंत पसंद आयीं थी, इस कारण से भी कई दिनों से मैं इस पुस्तक को पढ़ना चाह रहा था। इस वर्ष प्रथम खंड पढ़ने का अवसर मिल गया। प्रथम खंड मुझे अधिक नहीं पसंद आया, क्योंकि जो रूप उन्होंने प्रस्तुत किया है कथा का उसमें किसी तर्क का सही से सामंजस्य नहीं मिल पा रहा। श्री कृष्ण अपनी कथा कहते हैं, वे स्वयं को ईश्वर नहीं मानते, ये जो कुछ भी मथुरा वृन्दावन में घटित हुआ, उसे केवल राजनीतिक उठा पटक और षड्यंत्रों का जाल बताया है।
प्रथम खंड ईश्वर को मानवीय रूप में दिखाने का प्रयास किया शायद इस कारण से भी कथा अरुचिकर हो गयी। नृत्य - संगीत जैसी कलाओं का अभ्यास उन्होंने अपने गंदर्भ देश से आए गुरु जी से प्राप्त किया, ऐसा बताया गया है, बांसुरी पर वे कौन कौन से राग बजाते थे, ये भी बहुत सुंदर बताया है।
पूतना की कथा से आपको सहानुभूति होने लगती है, आप पूतना के प्रति हुए अन्याय को सही नहीं ठहरा पाते। राधा और कृष्ण के प्रेम प्रसंग और उनकी सामाजिक मर्यादाओं का ठीक ठीक उल्लेख है। प्रथम खंड भले मेरी रुची के अनुरूप न हो पर अभी सात खंड और हैं, मनु शर्मा जी ने ३००० पृष्ठों में इस पुरे ग्रंथ को लिखा है। मनु शर्मा जी और नरेंद्र कोहली जी वर्तमान समय के अनुसार कथा को सामाजिक और अध्यात्मिक पहचान देने का प्रयास करते हैं, इसलिए पुस्तक को पढ़ा जाना चाहिए।
This book literally transports you to the life and times of Krishna. It gives us a perspective where the story is stripped of all divinity and Krishna is shown as a human, just like us, and the journey through which he attained the status of a God from a mere human.
It was a good read, a perspective of looking at Krishna as a human. The story narrates the same sequence we all know but the dimension is different. Some quotes were brilliant.