आपके हाथ में ‘दलित विमर्श-संदर्भ गाँधी’ का संशोधित और परिमार्जित दूसरा संस्करण ‘दलित विमर्श-संदर्भ गाँधी, अंबेदकर’ नाम से प्रस्तुत है। दरअसल गाँधी और अंबेदकर दोनों ही दलित समस्या से गहराई से जुड़े थे। भले ही व्यक्तिगत कारणों से विषय की पकड़ में अंतर हो पर उनका ध्यये एक ही था। ‘ओका’ उनके बाल सखा ने इस समस्या से उनको बालपन से ही भावनात्मक स्तर पर जोड़ दिया था। ‘ओका’ के संदर्भ मे वे अपनी ममतामयी माँ से भी भिन्नता रखते थे। गाँधी ने इस विमर्श को बहुत पहले अपने चिंतन और कार्यकर्म का हिस्सा बना लिया था। अंबेडकर जी जब आए तो उन्होंने इसे चुनौती के रूप में लिया। अपने वर्ग को अपने लेखों से, भाषणों के माध्यम से जाग्रत किया। गाँधी सवर्णों को इस अमानवीय छुआछूत के व्यवहार का अहसास कराने में और दलितों के काम जुट गए। सवर्णों ने उनका जमकर विरोध किया और गाहे ब गाहे आक्रमण भी किए। अंबेदकर जी और गाँधी जी में भेदभाव भले ही रहा हो पर मन- भेद नहीं था। जहाँ मतभेद हुए उन्होंने सुलझा लिए। गाँधी हर स्थिति से सीखते थे, स्वाभावतः उन्होंने डा. अंबेदकर से भी सीखा। हालाँकि उनका दलित न होना आज भी उनके विरुद्ध पढ़ा जाता है। लेकिन उनकी इस प्रतिबद्धता ने पग-पग पर होने वाले प्रत्याशित-अप्रत्याशित अपमान को सहर्ष स्वीकार किया।
Dr. Giriraj Kishore was born on 8th July, 1937 at Muzaffarnager in the Indian state of Uttar Pradesh. He is a well-known Indian novelist, apart from being an accomplished short story writer, playwright and critic.
He was awarded the Sahitya Academy award in 1992 for his novel ‘Dhai ghar’. His novel ‘Pahla Girmitiya (The First Indentured Labour)’ chronicles Gandhijee’s struggle in South Africa.
He was awarded the Padma Shree by the Indian Government on 23rd March 2007 for his contribution to literature and education.
Some of his published works are as follows: Story collection-neem ke phool, chaar moti beaab, paperweight, Saher-der-saher etc Plays-Narmegh, Praja hi rehne do Novels-Pehla girmitiya, Dhai ghar, Chidiyaghar etc