Jump to ratings and reviews
Rate this book

अतिथि

Rate this book
Atithi by Shivani is from Radhakrishna Prakashan, a noted publishing house of Hindi literature.

266 pages, Paperback

First published January 1, 2009

54 people are currently reading
340 people want to read

About the author

Shivani

120 books116 followers
There is more then one author who writes using the name Shivani. See Shivani ., Shivani . and Shivani ..

(1923– 2003) was one of the popular Hindi magazine story writers of the 20th century and a pioneer in writing Indian women based fiction. She was awarded the Padma Shri for her contribution to Hindi literature in 1982. Almost all of her works are in print today and widely available across India.

She garnered a massive following in the pre-television 60s and 70s, as her literary works were serialised in Hindi magazines like Dharmayug and Saptahik Hindustan, and in TV serials n films.

Upon her death in 2003, Government of India described her contributions to Hindi literature as, “…in the death of Shivani the Hindi literature world has lost a popular and eminent novelist and the void is difficult to fill”

Ratings & Reviews

What do you think?
Rate this book

Friends & Following

Create a free account to discover what your friends think of this book!

Community Reviews

5 stars
161 (47%)
4 stars
102 (30%)
3 stars
52 (15%)
2 stars
12 (3%)
1 star
13 (3%)
Displaying 1 - 13 of 13 reviews
Profile Image for Saumya.
212 reviews874 followers
November 6, 2020
3.5 stars

Wanted to read Shivani ji's work for a long time and decided to go with this one. This story is about Jaya. She is simple, confident and ambitious. It's taking place in the 1980s in a small town in Uttar Pradesh. This story is about the ups and downs she faces in her marriage and how she faces everything with her indomitable spirit. The writing is very interesting and it's a fast paced read.
Profile Image for Ankita Chauhan.
178 reviews66 followers
December 5, 2019
पूरा लेख यहाँ पढ़ा जा सकता है - https://soundingwords.blogspot.com/20...

शिवानी जी के उपन्यास ‘अतिथि’ का कथानक शुरुवात में किसी बॉलीवुड मूवी का भ्रम देता है लेकिन धीरे धीरे इसकी प्याजी परतें खुलती है और पाठक का मन ऊन के गोले सा पात्रों के साथ बंधता चला जाता है, इस उपन्यास की मुख्य पात्र जया सरल और स्वाभिमानी लड़की है, सरकारी मास्टर की बेटी आत्म-सम्मान को सर्वोपरि मानती है।

जया के कॉलेज में हुए एक जलसे के दौरान, प्रदेश के मंत्री माधव बाबू जो की जया के पिता के बचपन के साथी भी थे, जया को देखते है और मन ही मन उसे अपने बेटे कार्तिक के लिए पसंद कर लेते हैं, माधव बाबू के घर में एक गरीब घर की बेटी लाने के उनके विचार पर शीत युद्ध सा छिड़ जाता है, माधव जी बिना किसी की परवाह किए, बिना बाह्य आडंबर के जया को शादी कर अपने घर ले आते हैं, जया के परिवार वाले शुरू में इस रिश्ते को पसंद नहीं करते, कार्तिक के चरित्र को लेकर जो अपवाहें फैली हैं उससे उनका मन संशय से भरा रहता है, लेकिन माधव जी के यकीन दिलाने और कार्तिक का बार बार जया से मिलने की कोशिशें, इस रिश्ते को एक जमीन दे देतीं है, माधव बाबू के घर के सदस्यों की रजामंदी न होने पर जया को कैसे अपने ससुराल में नीचा देखना पड़ता है कैसे वो स्वाभिमानी लड़की अपने वजूद के टुकड़े समेटे आगे की जिंदगी की राह खुद तलाशती है, कैसे माधव जी को जानते बूझते की गई अपनी गलती का पश्चाताप होता है। उपन्यास का हर एक पात्र जीवंत हर एक एहसास जिया हुआ महसूस होता है, शिवानी की दुनिया जितनी स्वाभाविक है उतनी ही संघर्षों से भरी, यहाँ दुख है और अकेलापन भी, इसके बावजूद कोई भी पात्र बेबस लाचार नहीं है, अपनी जिंदगी को अपनी शर्तों पर जीना जानता है, जहां संस्कारों को मानता है, वहीं बेबुनियाद रूढ़ियों को तोड़ता भी है।

राजनैतिक कलह, पारिवारिक मनमुटाव और दो विपरीत विचारधारा वालें लोगों का मेल, इन्ही ताने-बानो के बीच बुना है शिवानी का ये उपन्यास “अतिथि”
Profile Image for Tarun Pandey.
41 reviews1 follower
August 14, 2023
उपन्यास : अतिथि
रचनाकार : शिवानी

जया जया जया तुमने सिर्फ़ प्रेम नहीं किया तुमने तो आवाज़ उठाई अत्याचार के ख़िलाफ़ और कमर तोड़ कर रख दी माधव बाबू की, तुमने कार्तिक के छक्के छुड़ा दिए, तुमने अपने बापूजी का सर ऊँचा कर दिया पूरी बिरादरी में और अपनी ताईजी के लिए सहारा भी बनी।

तुमने शेखर को बता दिया कि एक पतिव्रता स्त्री शादी के बाद दूसरे मर्दों से तालुक नहीं रखती है। हर बार तुमने ख़ुद को सिद्ध किया पर तुम्हारा क़िरदार सबसे मज़बूत होते हुए भी सबसे असहाय और सबसे निर्बल नज़र आया मुझे।

"शिवानी" जी के द्वारा लिक्खा एक उपन्यास जिसकी कहानी जया नामक किरदार के जीवन पर प्रकाश डालती है। जया के जीवन के उतार चढ़ाव की कहानी है "अतिथि"। जया के माध्यम से एक मध्यवर्गीय शिक्षक (जया के पिताजी) की गम्भीरता और धैर्य से मुलाक़ात कराती हैं, मनबढ़ और वाचाल औरत जो आपके मोहल्ले में भी होगी जिसके पेट में पानी तक नहीं पचता (जया की ताईजी) से रूबरू कराती हैं, अमीर बाप की बिगड़ी औलाद जो जिस्मों से प्यार करता है और हर ख़ूबसूरत लड़की के साथ हमबिस्तर होना चाहता है उसके जीवन यात्रा और उसकी जया के लिए जो तड़प होती है उससे पाठकों की भेंट कराती हैं। माधव जी जो मंत्री होते हैं, ताक़तवर होते हैं, हर तरह से सुख और समृद्ध नज़र आते हैं उनकी बेबसी, लाजारी और एक राजा के ताज के भार को दर्शाती कहानी है अतिथि।

जब आप शिवानी जी की लिक्खी कृति "चौदह फेरे" पढ़ते हैं तो अहलिया के किरदार में आपको एक विद्रोह नज़र आता है चाहे वो ख़ुद के बाप के विचारों से टकराता हो, चाहे प्रेम को समझने की एक इच्छा हो या अपनी माँ से बरसों बाद मिलने पर आध्यात्मिक तरीक़े से ख़ुद के और करीब जाने का प्रयास हो। कहीं पर भी अहलिया ख़ुद के जीवन के साथ या अपनी सोच के साथ समझौता करती नज़र नहीं आती है और यहाँ इस उपन्यास में जया समझौता करती है और फिर वहाँ से बाहर आकर ख़ुद को साबित करती है। मुझे इस उपन्यास में कहीं न कहीं जया का किरदार संस्कारी और उच्च कोटि का तो लगा पर क्रांतिकारी नहीं लगा। मुझे कहीं न कहीं हमारे समाजिक परिवेश में स्त्रियों पर थोपे गए नियम और क़ानून से दबी औरत नज़र आई जया के रूप में जहाँ पत्नियां पति के पास लौट आती हैं, उन्हें माफ़ कर देतीं हैं और सब भूल जाती हैं । उपन्यास की दृष्टिकोण से जब देखो तो एक नौकर को देख कर ख़ुद के जीवन में झाँकना और कार्तिक के प्रति प्रेम महसूस करना बहुत महत्वपूर्ण घटना है पर यही मुझे इसकी सबसे बड़ी दुर्बलता भी लगती भी। यहाँ यह उपन्यास ऐसा प्रतीत हुआ जैसे भारतीय नारी शोषण का शिकार होने पर भी अपने पति को छोड़ कर जाने में असहज महसूस करती हैं।

माधव बाबू के किरदार ने मुझे सबसे ज्यादा बांध कर रखा। एक नेता जो राजनीति जगत में चाणक्य सा मस्तिष्क लिए देश विदेश की हर समस्या का समाधन चुटकियों में कर देता है कैसे अपने बेटे से हार जाता है, अपनी बेटी लीला को खो देता है और अपनी बीवी से एक दूरी बना लेता है। जो अपने द्वारा फेके गए पासे में ख़ुद उलझ जाता है और कहीं न कहीं जया के साथ इंसाफ़ नहीं कर पाता है। यह और बात है कि जया को अंततः कार्तिक से प्रेम हो जाता है। ससुराल छोड़ने के बाद भी वो किसी और मर्द को अपने जीवन में नहीं आने देती है परन्तु अंत में जया के पति द्वारा जया के पिता का मज़ाक उड़ाना, उसके ऊपर तंज कसना, हनीमून के दौरान जया को आलिंगन पाश में बांधने के बाद अचानक शराब के नशे में होटल आकर उसे साड़ी फेंक कर मारना और तैयार होने को कहना इन सभी हरक़तों को माफ़ करने के पश्चात जया का अपने पति का ख़्याल करते रहना मुझे एक शशक्त किरदार को कमज़ोर दिखा देना लगा। लेकिन यही व्यवहार जया के किरदार को मजबूती प्रदान करता है और किसी भी परिस्थिति में अपनों का साथ न छोड़ने की प्रेरणा भी देता नज़र आता है।

यह कहानी आगे कैसे बढ़ती है, क्या क्या मोड़ आते हैं, किस प्रकार एक मंत्री एक शिक्षक के बेटी से रिश्ता जोड़ने को व्याकुल हो उठता है, श्यामचरण और माधव बाबू के का रिश्ता क्या है? गोरखपुर के कौन से साधु का इसमें ज़िक्र है जिसे मंत्री बहुत मानते हैं और शेखर कौन है ? उसका जया के जीवन में आगमन कैसे होता है ? यह सब जानने के लिए इस उपन्यास को एक दफ़ा ज़रूर पढ़ा जाना चाहिए।

©® तरुण पाण्डेय
Profile Image for Ritika Gaur.
26 reviews16 followers
May 5, 2020
शिवानी जी ने एक औरत, जिसका नाम जया है उसके विषय में बखूबी लिखा है कि कैसे एक भ्रष्टाचार और जातिवाद से महमह महकती राजनीति में मुख्यमंत्री माधव बाबू अपने बिगड़ैल पुत्र कार्तिक को साधने के लिए पारम्परिक भारतीय ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करते हैं, उसकी गाँठ अपने निहित शिक्ष�� मित्र श्यामाचरण की बेटी जया से बाँधकर। लेकिन सरल, बुद्धिमती और स्वाभिमानी जया पति और मंत्रीपत्नी तथा उनकी नशेड़ी बेटी की समवेत बेहूदगियो�� से क्षुब्ध होकर, आई.ए.एस. परीक्षा की तैयारी करती है और इसी के दौरान उसकी मुलाकात एक बड़े उद्योगपति के पुत्र शेखर भेंट के बाद उसके जीवन में नया मोड़ आता है, कि नियति उसके अतीत के पन्ने फरफरा कर फिर उसके आगे खोल देती है।

यह किताब सन् १९८७(1987) में प्रकाशित हुई थी। किताब अच्छी है, आप इसे पसंद करेंगे।
Profile Image for Aditi Goud.
125 reviews3 followers
July 24, 2024
I really loved the way it's written! The whole thing can be imagined vividly. It was sad though to know that nothing changed in the lives of women of Indian society as compared to the time this book was written.
Things I liked - The characteristics of the characters are amazingly penned, the scenarios are well elaborated, strong female protagonists.
Thing I disliked - The ending should have been a bit different.
2 reviews
January 19, 2022
बहुत ही अच्छा उपन्यास ,शानदार लैंग्वेज ऐसा उपन्यास मैंने पहले कभी नहीं पढ़ा।धन्यवाद

उचित कथोपकठन।मैंने इस पुस्तक को रात भर जागकर पढ़ा,एक ही बार में पढ़ने को व्यग्र हुआ,कई दिन बाद ऐसा आनंद आया।धन्यवाद ma'am
Profile Image for Divya Pal.
601 reviews3 followers
January 4, 2023
वर्ष की पहली पुस्तक, आनंद आ गया पढ़ कर। लेखिका का उत्कृष्ट भाषा का प्रयोग मुझे शब्दकोश की सहायता लेने पर प्रायः बाध्य कर देता है। चाहे प्रकिर्तिक सौंदर्य, या प्रकृति का बिभित्स रूप, अथवा किसी पात्र की अलौकिक सौंदर्य या रौद्र भयावह रूप, इन सब का अति सुहावना लयबद्ध वर्णन पढ़कर मन प्रफुल्ल व तृप्त हो जाता है।
आंधी थम गयी थी। धूल का कोहरा चीर, क्लांत, शिथिल सूर्य, झंझा को पराजित कर, फिर निकल आया था। तप्त द्विप्रहर के कामवेग के कठोर झंझावात ने झकझोर संयत कर दिया था। दारुण दहन वेला अचानक स्वयं ही शीतल हो गयी।
तप्त हवा का झोंका, वनमर्मर से मिल एक मिश्रित वनज सुगंध से उसके कपोलों को सहला गया। वनकोट में लौट रहे क्लांत वनपाखियों का कलकूजन, उस ऊष्णता को साहस स्निग्ध कर गया। पश्चिमाकाश से रेंगती अरुणिमा पूरे वन-वानंतर को रंग गयी,
जीवन में पहली बार ऐसी स्वाभाविक ब्रीड़ा में लाल गुलाबी पड़ रहे कपोलों की अनूठी छवि देखी थी, जैसे किसी लज्जा वन मणिपुरी अपूर्व सुंदरी नृत्यांगना के गौर मुखमण्डल पर नेपथ्य से कोई अभ्यस्त मंच संचालक, लाल गुलाबी रोशिनी का घेरा डाल रहा हो।
केवल उस समय को प्रचलित मान्यता व सामाजिक धारणा के नमूने पढ़ के मन विचिलित व लज्जित हो जाता है। रेसिस्ट और जातिवाद का यह शोचनीय उदहारण
जिन अधरों को कभी जननी के स्तन पान की अमृतघूँट नसीब नहीं हुई, माँ की दुलार की जगह मिला काली हब्शिन बेबी सिटर का कुछ डॉलरों का ख़रीदा गया स्नेह
सचमुच ही वीभत्स चेहरा था ताई के नवीन दामाद का, मोटे लटके होंठ, गहरा काला आबनूसी रंग, घुंगराले छोटे छोटे बाल और भीमकाय शरीर।
"इस अमावस्या पछ को न लाइयो साथ, अँधेरी रात में कहीं देख लिया तो बेहोश हो जाउंगी"
"वह तो अच्छा हुआ विदेश में ही विवाह निबटा आयी छोकरी, यहाँ बारात लेकर उसे ब्याहने आता तो लोग भूत-भूत कह भाग जाते।
यह वर्णन एक वेस्ट-इंडीज निवासी का है ।
प्रत्येक कुटुंब में एक 'ताई' होती हैं । जया की ताई ही इस कथा की सबसे रोचक पात्र सिद्ध हुईं । ताई मुंहफट, हर एक मामले में हस्तक्षेप करने वाली , स्वच्छंद, आत्मनिर्भर नारी हैं और उनके देहाती बोल सुनकर में हंसी से लोटपोट हो गया ।
निश्चित ही शिवानी जी के अन्य उपन्यास पढ़ने होंगे।
Profile Image for Anurag Pandey.
8 reviews
June 27, 2021
An average novel written by Gaura Pant known by her penname Shivani. The author seems very possessive about the protagonist—Jaya. This novel could have been 50% trimmed if she had not described futile surroundings. Very verbose maybe author is showing off her vocabulary. Maybe you will like it maybe not depends upon which character you resonate with more—Karthik(the bad boy who smokes,has casual flings,is very arrogant and uses his dad's clout who is a CM of UP) or Jaya(ambitious,prudish and respect comes first for her;everything second).
Profile Image for Aradhya.
189 reviews5 followers
January 17, 2022
I absolutely love the book 'Chaudah Fere' by the Shivani ji. But whatever I have read of her after that one, nothing compares to Chaudah Fere somehow. It had become a comfort read for me for a long time, so this might be subjective too though.

For this book, my top issue was, nothing much was happening in the second half, and then a rushed ending was given. Not satisfying.
Profile Image for Aadya Dubey.
289 reviews29 followers
February 19, 2021
I am confused.
It was a damn interesting ending, I didn't see it coming this way,
But is it a happy ending?

Are yaar Kaartik!

The more stories I read of her, I keep getting confused sabse zyaada pasand kaun si aayi.
1 review1 follower
July 5, 2020
As usual

As always best n heart touched........ End over audions.. u take me the sight n i become leftover there ..
Profile Image for Charchit Upreti.
39 reviews
July 22, 2024
आप हमेशा उस मोड़ पर आ खड़े होते हैं जिससे आप अत्यंत घृणा करते हैं। या तो आपका भाग्य काफी ख़राब है या आप जया हैं
Displaying 1 - 13 of 13 reviews

Can't find what you're looking for?

Get help and learn more about the design.