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266 pages, Paperback
First published January 1, 2009
आंधी थम गयी थी। धूल का कोहरा चीर, क्लांत, शिथिल सूर्य, झंझा को पराजित कर, फिर निकल आया था। तप्त द्विप्रहर के कामवेग के कठोर झंझावात ने झकझोर संयत कर दिया था। दारुण दहन वेला अचानक स्वयं ही शीतल हो गयी।केवल उस समय को प्रचलित मान्यता व सामाजिक धारणा के नमूने पढ़ के मन विचिलित व लज्जित हो जाता है। रेसिस्ट और जातिवाद का यह शोचनीय उदहारण
तप्त हवा का झोंका, वनमर्मर से मिल एक मिश्रित वनज सुगंध से उसके कपोलों को सहला गया। वनकोट में लौट रहे क्लांत वनपाखियों का कलकूजन, उस ऊष्णता को साहस स्निग्ध कर गया। पश्चिमाकाश से रेंगती अरुणिमा पूरे वन-वानंतर को रंग गयी,
जीवन में पहली बार ऐसी स्वाभाविक ब्रीड़ा में लाल गुलाबी पड़ रहे कपोलों की अनूठी छवि देखी थी, जैसे किसी लज्जा वन मणिपुरी अपूर्व सुंदरी नृत्यांगना के गौर मुखमण्डल पर नेपथ्य से कोई अभ्यस्त मंच संचालक, लाल गुलाबी रोशिनी का घेरा डाल रहा हो।
जिन अधरों को कभी जननी के स्तन पान की अमृतघूँट नसीब नहीं हुई, माँ की दुलार की जगह मिला काली हब्शिन बेबी सिटर का कुछ डॉलरों का ख़रीदा गया स्नेहयह वर्णन एक वेस्ट-इंडीज निवासी का है ।
सचमुच ही वीभत्स चेहरा था ताई के नवीन दामाद का, मोटे लटके होंठ, गहरा काला आबनूसी रंग, घुंगराले छोटे छोटे बाल और भीमकाय शरीर।
"इस अमावस्या पछ को न लाइयो साथ, अँधेरी रात में कहीं देख लिया तो बेहोश हो जाउंगी"
"वह तो अच्छा हुआ विदेश में ही विवाह निबटा आयी छोकरी, यहाँ बारात लेकर उसे ब्याहने आता तो लोग भूत-भूत कह भाग जाते।