कुछ अल्फ़ाज़ करिश्माई होते हैं। प्याली भर बात से समंदर भर देते हैं। उस समंदर में कोई लहर आपको बहा ले जाती है तो दूसरी वापस किनारे पर ले आती है।
पर असली मज़ा तो उन मौजों से है जिनका बेलगाम परवान आपको डुबाने पर आमादा हो। अगर सच में डूबने का मन हो तो निदा फ़ाज़ली को याद कर लीजिए। कभी अफ़सोस नहीं होगा।
बहुत ही खूबसूरत संग्रह है। निदा फाज़ली जी ने बहुत ही सरल हिन्दी वो उर्दू शब्दों का प्रयोग करते हुए बहुत बेहतरीन शायरी लिखी है। आखरी के 12 दोहे तो बेमिसाल है।
मैं रोया परदेस में, भीगा माँ का प्यार दुःख ने दुःख से बात कि, बिन चीठी बिन तार
छोटा कर के देखिए जीवन का विस्तार आंखों भर आकाश है, बाहों भर संसार
लेके तन के नाप को, घूमे बस्ती गाँव हर चादर के घेर से, बाहर निकले पाँव
सब कि पूजा एक सी, अलग अलग है रीत मस्जिद जाये मौलवी, कोयल गाए गीत
पूजा घर में मुर्ति मीरा के संग श्याम , जिसकी जितनी चाकरी, उतने उसके दाम
नदिया सींचे खेत को, तोता कुतरे आम सूरज ठेकेदार सा, सब को बांटे काम
सातों दिन भगवान के, क्या मंगल क्या पीर जिस दिन सोये देर तक, भूखा रहे फकीर
अच्छी संगत बैठकर, संगी बदले रुप जैसे मिलकर आम से मीठी हो गयी धुप
सपना झरना नींद का, जागी आँखें प्यास पाना, खोना, खोजना साँसों का इतिहास
चाहे गीता बांचिये, या पढिये कुरान मेरा तेरा प्यार ही हर पुस्तक का ज्ञान
Wonderful book. Started reading it on 6th and started watching his videos with the book. Sadly, on 8th Nida sahab was no more. Felt like a loss of a close acquaintance at the time. Read it for some good poetry.