ऊंची-नीची राहें, पहाड़ियां, गलियां, पगडंडियों से होकर जिंदगी गुजरती है। न जाने कितने कांटे पैरों को चुभते हैं, कितनी बाधाएं मंजिल का रास्ता रोक खड़ी रहती हैं पर इंसान की फ़ितरत तो चलना है।वह चलता चला जाता है,मंजिल मिले या न मिले। इसी तरह टेढ़े-मेढ़े रास्तों से गुजर कर में आया हूं। बहुत कुछ खोया हूं तो पाया भी हूं। इस खोये-पाये का संग्रह है " जिंदगी के टेढ़े-मेढ़े रास्ते।"