मेरा नाम कतरनें हैं, मैं आपकी किताब हूँ। जी हाँ, मैं आपसे ही बात कर रही हूँ। आपने मुझे ही अपने हाथों में लिया हुआ है। आपको अजीब लग रहा होगा कि किताब आपसे कैसे बातें कर सकती है? पर मैं आपको बता दूँ कि हम किताबें यही करती हैं– बातें। जब आप हमें पढ़ रहे होते हैं तो वो सारी बातें ही हैं जिनके ज़रिए कहानी के संसार में आपका प्रवेश होता है। उस कहानी के एक सिरे पर आप होते हैं और उसका दूसरा सिरा किताब होती है। कहानी बीच में कहीं घट रही होती है। इस प्रक्रिया में यूँ, हम किताबें कभी अपनी सीमा नहीं लाँघती हैं, हम कहानी और आपके बीच में हमेशा अदृश्य-सी बनी रहती हैं। कभी-कभी किताबों के ज़रिए लेखक आपसे सीधे बात करता है, वो आपके और कहानी के बीच में लगा हुआ पर्दा हटा देता है, नई कहानियाँ कहने की कला में किताबें ऐसे प्रयोगों को बहुत उत्साह से अपनाती हैं। पर एक किताब लेखक की रज़ामंदी के बिना आपसे सीधे बात करे ये बहुत कम ही होता है। मैं, आपकी किताब भी कभी ये क़दम उठाने का नहीं सोचती, पर इस किताब की रूपरेखा ही लेखक ने कुछ ऐसी रखी है कि इसमें कुछ नया करने की आज़ादी की बहुत जगह है। ‘आज़ादी’ कितना सुंदर शब्द है न, मुझे बहुत पसंद है। शायद इसी शब्द की वजह से मैं लेखक की इजाज़त के बग़ैर आपसे बात कर पा रही हूँ। —इसी पुस्तक से।
कश्मीर के बारामूला में पैदा हुए मानव कौल, होशंगाबाद (म.प्र.) में परवरिश के रास्ते पिछले 20 सालों से मुंबई में फ़िल्मी दुनिया, अभिनय, नाट्य-निर्देशन और लेखन का अभिन्न हिस्सा बने हुए हैं। अपने हर नए नाटक से हिंदी रंगमंच की दुनिया को चौंकाने वाले मानव ने अपने ख़ास गद्य के लिए साहित्य-पाठकों के बीच भी उतनी ही विशेष जगह बनाई है। इनकी पिछली दोनों किताबें ‘ठीक तुम्हारे पीछे’ और ‘प्रेम कबूतर’ दैनिक जागरण नीलसन बेस्टसेलर में शामिल हो चुकी हैं।
ये दुनिया अंत में काल्पनिक है और हर मनुष्य अकेला है। हम किताबें उसमें आपका वो मनोरंजन हैं जिससे आप अपने अकेलेपन के भीतर अपनी एक नई दुनिया रचते हैं।
इस दुनिया में विविधता है और विविधता ही इसकी असल सुंदरता है, ये बात हम किताबों से ज़्यादा कौन जान सकता है। तो इस दुनिया की सुंदरता का आनंद उठाएँ, क्योंकि अंत में जैसे ये दुनिया काल्पनिक है वैसे आप भी किसी कहानी में एक काल्पनिक पात्र से ज़्यादा कुछ नहीं हैं। जैसे आप इसे पढ़ रहे हैं ये मेरी कल्पना है, जबकि मैं ख़ुद किसी लेखक की कल्पना हूँ और आपके पढ़ते रहने में वह लेखक असल में आपकी कल्पना का हिस्सा होता जा रहा है।
This book is an ode to books and their plight, their resilience, the stories they tell, the web of words they weave for the readers only to get fully immersed in them. It's a beautiful book. I loved how the book introduced itself, it was magical, it was as if the book knew every reader's mind, it could read it out loud. I love this man as an actor and as an author. He strikes all the right chords, hits the bullseye for all the right emotions, he invokes something buried so deep that you cannot not unravel.
PS: this is not my first book by the author/actor and definitely it's not the last. I love reading his books and enjoy them thoroughly.
Beautiful kitab.. loved reading it in a sitting.. maja to aa gaya par phir se padhna hai..
मैं जीत की मुस्कुराहट लिए हमेशा तुम्हारे साथ रहा था पर अपनी हार को मैंने कभी तुम्हारे सामने नहीं आने दिया। आज इतने सालों बाद मुझे लग रहा था कि काश मैं तुम्हें अपना इस वक़्त का चेहरा दिखाऊँ। मैं ठीक इस वक़्त कितना अकेला हूँ! मेरे सारे निर्णय अपनी हार का तमगा लिए मुझे ऐसे ताक रहे हैं, मानो वो शुरू से जानते थे कि जीत की ऊपरी मुस्कुराहट के पीछे हार ही असल सत्य है। असल में मेरे जीत जाने के सारे प्रयत्न दलदल में धँसते आदमी की छटपटाहट से ज़्यादा कुछ नहीं थे। तुम्हारे साथ रहते हुए और तुम्हारे चले जाने के बाद भी मैं हार रहा था और हारता ही चला जा रहा था।
“कतरनें” के बारे में कुछ लिखना मानो किसी बच्चे से गर्मी की छुट्टियों के बारे में पूछने बराबर होगा। मानव का लिखा बहुत कोमल है, ये आपको छूने भर की दूरी पर पड़ी कोमलता से परिचय करवाता है। जवानी में खुदको कोंपल होते देख रहा हूँ। ये तय करना मुश्किल होगा कि मैं इनसे relate कर रहा हूँ या relate कर पाऊँ इसलिए अपनी ख़ुद की कहानियाँ गढ़ रहा हूँ? पढ़ते हुए लगता है पढ़ने का अभिनय कर रहा हूँ और जो लिख रहा हूँ उसे जीने की कोशिश कर रहा हूँ। ये बिल्कुल मानव के विनोदजी से किए संवादों जैसा ही कुछ होगा।
वैसे तेरहवीं किताब मेरे लिये रश्क का झोला भर लायी है। लगता है…अब क्या ही बचा है लिखने को? इन्होंने सब तो लिख दिया। मानव का लेखन मुझ जैसे कई नए लेखकों को दोपहरी में बड़े बरगद की छाँव दे रहा है। ये सैकड़ों और बरगद को जन्म दे रहा है, अपने लिखे से सींच रहा है।
कोई खिलाड़ी जब शतरंज की दोनों तरफ़ की बाज़ी खेल रहा हो तब उस खिलाड़ी का बहुत माहिर होना ज़रूरी है या फिर एकदम नौसिखिया। मानव का लेखन दोनों तरफ़ की बाज़ी वाला लेखन है। उनके लेखन में हार के नाचना भी है और जीत के बिदकना भी।
इस बार पढ़ने में और मज़ा आया, चूँकि कुछ अच्छे पन्नों के बाद खिड़की पर आती चिड़िया दिख रही थी। मैं उनका काली कड़वी कॉफ़ी पर खिलखिलाना सुन पा रहा था। मैं सुन पा रहा था उनका “वाह, क्या लिखा है आज!”
कतरनें ~ शब्दों की इस जादूगरी के लिए, मानव कौल का आभार।❣️
किताब का शीर्षक कतरनें इसकी आत्मा को बखूबी परिभाषित करता है। हर लेख और विचार एक कांच के टुकड़े की तरह है - नाजुक, प्रतिबिंबित, और आत्मा को गहराई तक छू लेने वाला। भावनाओं और अनुभवों को इतने सजीव ढंग से पेश किया है कि वे व्यक्तिगत होते हुए भी हर किसी के दिल को छू लेते हैं।
“कतरनें” जल्दबाजी में नहीं पढ़नी चाहिए। इसे धीरे-धीरे, एक-एक अंश को महसूस करते हुए पढ़ना चाहिए, ताकि शब्द दिल और दिमाग में गहराई तक उतर सकें। यह किताब उनके लिए है जो आत्ममंथन में सुकून पाते हैं और जीवन की साधारणता में सुंदरता ढूंढते हैं।
ये कतरनें ठीक वैसी ही हैं जैसे हमारे शरीर से लिपटा हुआ हमारा अकेलापन। जिसे हम ना तो छोड़ना चाहते हैं और न ही उनके साथ रहकर जिया जाता है पर एक दिन जब तैश में आकर हम उन्हें अलग कर देते हैं तब पता चलता है कि जो सामने अलग हुआ खड़ा है वो ही शायद हमारा अस्तित्व है जिसे हम अब को चुके हैं। मानव कौल की लेखनी कभी भी आश्चर्यचकित नहीं करती क्योंकि वो हमेशा ऐसा लगती है जैसे हमने ख़ुद अपनी दो उंगलियों और एक अंगूठे के सहारे पकड़कर उससे कुछ लिखा है और सब कुछ अपना है।
मेरे प्रिय लेखक मानव कौल , आपको पढ़ना एक अलग ही सुकून है , आपको पढ़ने का सफर ऐसे ही चलता रहेगा । आपकी किताब कतरनें ( न कहानी न कविता ) विधा में लिखी किताब पढ़कर पूरी की कतरनें पढ़कर लगा की अभी भी कुछ अधूरा सा है । आपकी कहानी के पात्रों में शायद में भी कहीं होता हूँ । वहाँ भी था जहाँ आप चाय पीना छोड़कर निर्मल वर्मा के टूटे बिखरे घर में गए । जो दुख आपने महसूस किया उसका कुछ हिस्सा मैंने भी किया।
Starting the new year with a Manav Kaul book has become a cherished ritual for me, and *Katranein* is my first read of 2025. This book is an absolute treat—a beautiful blend of short stories, poetry, and intimate conversations that feel profoundly personal. Manav Kaul's writing has a way of reaching deep into your soul, evoking emotions you didn’t know existed.
*Katranein* isn’t just a book; it’s an experience—one that leaves you overwhelmed and introspective. It feels as though the author is whispering directly to you, weaving a tapestry of thoughts and emotions that linger long after you turn the last page. Every word resonates with a quiet power, making this journey unforgettable. Starting the year with his words feels like starting on a deeply meaningful and reflective note.