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Ek Poorv Mein Bahut Se Poorv

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भारतीय साहित्य संसार में किंवदंती की हैसियत पा चुके विनोद कुमार शुक्ल की कविता से परिचय 'मनुष्य होने के अकेलेपन में मनुष्य की प्रजाति' से परिचय है। इस काव्य-संसार से गुज़रना अपेक्षा से कुछ अधिक और अनिर्वचनीय पा लेने के सुख सरीखा है। यह आस्वाद आस्वादक को बहुत वक़्त तक विकल, चुप और प्रतिबद्ध रखता है। इससे गुज़रकर पृथ्वी में सहयोग और सहवास के अर्थ खुलते हैं और एकांत और सार्वभौमिकता के भी। इस काव्य-संसार में अपने आरंभ से ही कुछ संसार स्पर्श कर बहुत संसार स्पर्श कर लेने की चाह का वरण है और घर और संसार को अलग-अलग नहीं देख पाने की दृष्टि। पहाड़ों, जंगलों, पेड़ों, वनस्पतियों, तितलियों, पक्षियों, जीव-जंतुओं, समुद्र, नक्षत्रों और भाषाओं से उस परिचय के लिए जिसमें अपरिचित भी उतने ही आत्मीय हैं, जितने कि परिचित : विनोद कुमार शुक्ल के इस नवीनतम कविता-संग्रह 'एक पूर्व में बहुत से पूर्व' का पाठ एक अनिवार्य और समयानुकूल पाठ है।

144 pages, Paperback

Published February 6, 2024

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About the author

Vinod Kumar Shukla

64 books170 followers
Vinod Kumar Shukla (born 1 January 1937) is a modern Hindi writer known for his surreal style that often borders on magic-realism and sometimes move beyond it. His works include the novels Naukar ki Kameez and Deewar Mein Ek Khirkee Rahati Thi (A Window lived in a Wall), which won the Sahitya Akademi Award for the best Hindi work in 1999.

His first collection of poems Lagbhag Jai Hind was published in 1971. Vah Aadmi Chala Gaya Naya Garam Coat Pehankar Vichar Ki Tarah was his second collection of poems, published in 1981 by Sambhavna Prakashan. Naukar Ki Kameez (The Servant's Shirt) was his first novel, brought out in 1979 by the same publisher. Per Par Kamra (Room on the Tree), a collection of short stories, was brought out in 1988, and another collection of poems in 1992, Sab Kuch Hona Bacha Rahega.

Vinod Kumar Shukla was a guest littérateur at the Nirala Srijanpeeth in AGRA from 1994 to 1996 during which he wrote two novels Khilega To Dekhenge and the refreshing Deewar Mein Ek Khirkee Rahati Thi. The latter has been translated into English by Prof. Satti Khanna of Duke University as A Window Lived in a Wall.

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Displaying 1 - 4 of 4 reviews
Profile Image for Nandakishore Mridula.
1,348 reviews2,696 followers
November 14, 2024
एक नई भाषा में सफ़र करना एक रमणीय अनुभव है। बात यह नहीं था कि मुझे हिंदी बिल्कुल आती नहीं - मैं ने क्लास बारह तक हिंदी सीखा हूँ, और इस भाषा में बात भी कर सकता हूँ। लेकिन अभी तक इस में कोइ गंभीर साहित्य पढ़ने का प्रयास नहीं लिया था। चलो, अब शुरू करता हूँ...

श्री. विनोद कुमार शुक्ल की कविताएं आकार में छोटी है, लेकिन उनकी अन्तर छुपे हुए अर्थ के हिसाब से प्रपंच से भी विशाल है। एक बार हम इन अक्षरों के जाल में फंस गये, तो उनकी प्रतिभा की कैदी बन जाते है। ये कविताएं ऐसी है, की एक छोटी सी कमण्डल मैं पूरा आकाश को बंद कर के रखा है।

इन काव्यों में बहुत सारे बिम्ब इतना surreal है, तो इनके समझने की कोशिश में हम थक जायेंगे। मेरा उपदेश यह है कि इस प्रयास मत उठाना... सिर्फ इन शब्दों के सौंदर्य में डूबे रहना...

(Whew! I have not written anything this long in Hindi since 1980. A pat on the back for myself.

Dear native Hindi speakers, please forgive the mistakes. I will improve with time...)
34 reviews
May 21, 2025
विनोद कुमार शुक्ल, मतलब एकदम अलग किस्म के कवि। ना भावुकता में बहते हैं, ना भाषा के प्रदर्शन में फँसते हैं। शब्द उठाते हैं, उन्हें धीरे से बिठाते हैं और फिर चुप हो जाते हैं। अब समझ लो या रह जाओ उलझन में ये आपकी मर्ज़ी। "एक पूर्व में बहुत से पूर्व" उनका कविता-संग्रह है। सौ से ज़्यादा कविताएँ हैं। और मैं आपको झूठ नहीं बोलूँगा, बहुत सी कविताएँ पहली बार में अधूरी लगीं,

जैसे कोई बात बस शुरू हुई और वहीं रुक गई जैसे कोई दरवाज़ा थोड़ी-सी देर खुला
और फिर धीरे से बंद हो गया।
हो सकता है वो अधूरापन कवि का हो पर ज़्यादा मुमकिन है, वो अधूरापन मेरा हो। क्योंकि कुछ कविताएँ तो जैसे सीधे आकर बैठ गईं मन में। जैसे कहा हो, "ठीक है, बाक़ी तो बाद में समझना, पर हमसे तो बात कर लो पहले।" जो कविताएँ मुझे समझ आईं और पसंद आईं, वो हैं:

अपनी भाषा में शपथ लेता हूं
किसकी कमी है?
आदिवासी नाचते दिखते नहीं
आदिवासी! हाँका पड़ा है
रात दस मिनट की होती
दस-बारह बरस की बातें
मुझसे अपने होने का सवाल नहीं बना
छोटी-छोटी इच्छाओं से जीवन था
श्रावण का महीना बीत रहा
मेरा घर खुला छोड़कर
मैं लिखते हुए

ये किताब उन लोगों के लिए नहीं है जो कविता से जल्दी मतलब निकालना चाहते हैं। ये उनके लिए है जो देर तक खाली बैठे रह सकते हैं, और शब्दों की नहीं, खामोशी की सुनवाई करते हैं। अगर आप भी उन्हीं में से हैं तो "एक पूर्व में बहुत से पूर्व" पढ़िए। क्योंकि हो सकता है कि ये किताब पूरी तरह न समझ में आए लेकिन आपको थोड़ा और समझदार ज़रूर बना दे।
Profile Image for Pallavi Shukla.
191 reviews3 followers
May 22, 2025
यह किताब एक ऐसी कविताओं का संग्रह है जिसमें सरल शब्दों में गहरा अर्थ छुपा है। इसे पढ़ने से आपको बहुत आनंद मिलेगा और हर कविता के शब्दों को आप महसूस कर सकते हैं।

इस कविता में कवि ने प्रकृति के विभिन्न तत्वों जैसे पहाड़, जंगल, पेड़, तितलियां, पक्षी, जीव-जंतु, समुद्र और तारे आदि को बहुत ही आत्मीयता से देखा है। कवि के लिए अपरिचित और परिचित दोनों समान हैं।

सरल और सच्ची बातें जब कविता बन जाएं, तो वह और भी प्रभावशाली हो जाती हैं। यह पुस्तक वास्तव में बहुत अच्छी तरह से लिखी गई है... इसमें जीवन के अधिकांश पहलुओं को कविता के माध्यम से समझाया गया है।

यह एक अद्भुत पुस्तक है, खासकर उन लोगों के लिए जो हिंदी कविता पढ़ना शुरू कर रहे हैं!🩵
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