"Neela Scarf" can easily be called an interesting mix of stories-some very urban and some with a very strong rural flavour. Her characters are diverse-from a retired Air Force Officer in 'Mukti' to a teacher in 'Kuch Yun hona Uska', from a Dalit woman whose job is to serve high and might in "Bisesar Bo ki Premika" to an aimless housewife in "Marj Zindagi Ilaaj Zindagi", they take the readers to worlds and spaces that are completely different from one-another. From a doctor's clinic to a flat in South Delhi to a village in Siwan to an editing suite in Lokhandwala (Mumbai), her stories explore several worlds and several characters.
Anu's writing style is lucid and conversational and therefore dialogues become an integral part of the story. Her writing dwells between popular and literary writing and carves a niche for itself purely because it is contemporary and yet not impure. Sometimes she becomes whimsical and poetic (as in "Cigarette Ka Aakhiri Kash" and "Bisesar Bo Ki Premika") and sometimes she chooses to standby the characters to let them narrate his or her stories (as in "Neela Scarf", "Roommate" and "Mukti"). With "Bisesar Bo" she goes on to prove her talent at creating nuanced characters of her own. Whether it is the story of roommates living in a Paying Guest accommodation in Mumbai or about an indifferent and arrogant man who lands up in a compartment with an old and talkative man and a woman who wouldn't get up from her berth, Anu's prose feels simple and yet rich and complete.
अनु के लेखन से मैं उनके ब्लॉग मैं घुमंतू से पूर्व परिचित था। पर बतौर कहानीकार उन्हें जानने का मेरा ये पहला अनुभव है। इस संग्रह की कुल दर्जन भर कहानियों में लगभग तीन चौथाई कहानियों में मुख्य किरदार के रूप में एक नारी चरित्र है। अच्छी बात ये है कि इन चरित्रों में एकरूपता नहीं है। उनकी नायिकाएँ समाज के अलग अलग वर्गों और उम्र के हर पड़ावों से आती हैं। इसी वजह से कथानक का परिदृश्य तेजी से बदलता जाता है और पाठकों को पुस्तक से बाँध कर रखता है।
जहाँ बिसेसर बो की प्रेमिका और देखवकी की बोलचाल में ठेठ बिहारी परिवेश की झलक मिलती है वहीं रूममेट, लिव इन और प्लीज़ डू नॉट डिस्टर्ब में आप अपने आप को शहरी हिंग्लिश में बात करते चरित्रों के बीच घिरा पाते हैं। पर अनु की खूबी है उनकी भाषा पात्र के हिसाब से अपना लहजा बदलती रहती है। व्यक्तिगत रूप से हिंदी कथ्य में अंग्रेजी के बेजा इस्तेमाल का मैं विरोधी रहा हूँ और इस किताब में कहीं कहीं ऐसे प्रयोग खटकते हैं जहाँ चरित्रों के हिसाब से भी अंग्रेजी के बजाए हिंदी का शब्द लिया जा सकता था।
तो आइए बात करते हैं इस किताब में सम्मिलित कहानियों की। रूममेट छोटे शहरों से संघर्ष कर महानगरीय जिंदगी में पहचान बनाने वाली लड़कियों की कहानी है जो अधपके रिश्तों और अरमानों को मूर्त रूप देने में एक दूसरे का संबल बनती हैं। नीला स्कार्फ और लिव इन में लेखिका शादी के पहले और बाद के बनते बिगड़ते रिश्तों की पड़ताल करती नज़र आती हैं। पर जहाँ नीला स्कार्फ का स्वर धीर गंभीर है वहीं लिव इन में आज के डिजिटल प्रेम को वे हल्के फुल्के पर रोचक अंदाज़ में चित्रित कर जाती हैं। थोपे गए रिश्ते के अनुरूप अपने आपको ढालती और अपनी इच्छाओं को दमित कर गृहस्थी की गाड़ी खींचती स्त्री की आंतरिक व्यथा का मार्मिक चित्रण उनकी कहानी मुक्ति में दिखता है। शादी के बाद घर और बच्चों की जिम्मेवारेयों के बीच ख़ुद को घुटता महसूस करती महिलाओं को मर्ज जिंदगी इलाज ज़िंदगी में वे अपना कृत्रिम रंगीन संसार रचने को प्रेरित करती हैं।
पर इस संग्रह की सारी कहानियों मे मुझे बिसेसर बो की प्रेमिका, कुछ यूँ होना उसका और मुक्ति खास पसंद आयी पर वहीं सिगरेट का आखिरी कश और प्लीज डू नॉट डिस्टर्ब इस कथा संग्रह की मुझे दो कमजोर कड़ियाँ लगीं।
किसी दोस्त ने लेखिका की इस संग्रह की कहानी "देखवकी" सुनायी तो मज़ा आ गया l पूरी कहानी का प्लॉट, किस्सागोई और भोजपुरी वाला पुट जबरदस्त लगा l किंडल पर मैंने यह किताब तुरंत ले ली, पढ़ते पढ़ते जो चीज़ मुझे सबसे अच्छी लगी वो ये कि इन कहानियों के स्त्री पात्र एक दूसरे के जैसे होते हुए भी एक दूसरे से अलग हैं l किताब की कहानियों में स्त्री पात्रों का ही वर्चस्व है लेकिन इनका दोहराव कतई नहीं है l नायिका कभी बिहार के किसी गाँव की बंधुआ मजदूर है तो कभी दिल्ली शहर में रहने वाली पढ़ी लिखी मॉर्डन कामकाज़ी लड़की l सबसे अच्छी बात ये कि आजकल फेमिनिसम् के नाम पर बहुत कुछ ऐसा परोसा जा रहा है जिसका महिलाओं के लिए समान अधिकार वाले इस आंदोलन से कुछ भी लेना देना नहीं है l आये दिन ऐसी चीज़ें पढ़ने और देखने को मिलती हैं जो पितृसत्तामक परंपरा का विरोध करती हैं लेकिन समान अधिकार की बात नदारद होती है l लेखिका अपनी कहानियों से ना केवल स्त्री के मन की गहराइयों को छूती हैं बल्कि उनके सुख दुख को भी बखूबी बयाँ करती हैं l इन कहानियों की औरतें दुनियावी हैं, ये किसी फंतासी की दुनिया से नहीं आयी हैं, इनकी परेशानियाँ, इनका संघर्ष, इनकी सफलताएँ सब यहीं की बात लगती है । कहानियाँ पढ़ते हुए आप इनके लिए खुश होते हैं तो कभी आपको इनकी बातें कुछ उलझी हुई सी भी मालूम होती हैं l इस संग्रह की दर्जन भर कहानियों में से मेरी प्रिय कहानियों पर भी बात करते हैं :-
मुझे "बिसेसर बो की प्रेमिका" सर्वाधिक पसंद आई। अभावग्रस्त जीवन जीने को विवश एक ऐसी औरत की कहानी जो घर की बड़ी बहु का सारा दुःख दर्द समझती है पर किसी से कुछ नहीं कहती। अपने निकम्मे पति और बुरी नियत वाले मालिक का भी डटकर मुकाबला करती है। उसका संघर्ष और हिम्मत उन बहुत सी औरतों के लिए प्रेरणा के समान है जो परिस्थितियों से लड़ने से ज्यादा उन से समझौता करने में यकीन रखती हैं।
अन्य कहानी "देखवकी" लड़की दिखाने की पुरानी रस्म के ऊपर आधारित है। गांव से एक चाची अपनी लड़की को शहर लेकर आती हैं, इरादा लड़के और उसके घर वालों से मुलाकात का है। मुलाक़ात से पहले की तैयारी और देखवकी के दौरान की बातें आपको कहानी से बांध कर रखती हैं।
ग्रामीण परिवेश की इन दो कहानियाें के बाद हम शहरी परिवेश की कुछ कहानियो में दाखिल होते हैं। कहानी "रूममेट" में दो अनजान, एक ही पीजी में रहने वाली शहरी लड़कियां एक दूसरे का सहारा बनती हैं। उनकी दोस्ती ही एकलौती वजह है जो दोनों को ज़िंदगी में कड़े क़दम लेने के लिए प्रेरित करती है और दोनों अपने सपनों के पीछे भागने लगते हैं। इस कहानी के अन्य पात्र भी काफ़ी रोचक हैं। ऐसी ही एक कहानी "नीला स्कार्फ" भी हैं, इस कहानी में महानगर में रहने वाला एक जोड़े के बीच शादी के बाद की तकरार का जिक्र है। आधुनिक युग के इस प्रेम में ईमेल, मोबाइल आदि की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। कहानी "लिव इन" में इस चलन का ज़िक्र है। महानगरों में ये ट्रेंडिंग है जहां लोग शादी के बिना एक दूसरे के साथ एक ही छत के नीचे रहते हैं। सम्भवतः ये आपको एक दूसरे के अच्छे पक्ष से रूबरू कराता है और कभी कभी एक दूसरे की खामियों से भी। आगे आपको कहानी पढ़कर पता चलेगा ।
आगे "मुक्ति" अलग तरह की कहानी है, इसमें एक बढ़ती उम्र की गृहणी के अब तक के जीवन का कच्चा चिट्ठा है। उम्र के इस मोड़ पर उन्हें डिमेंशिया होता है, क्या उन्हें पति, बच्चों आदि का भरपूर साथ मिलता है ? इसी की दास्तान है मुक्ति। कहानी "प्लीज़ डू नोट डिस्टर्ब"शहरों में छोटे कस्बों, गांवों आदि से आने वाले एम्बीशियस लड़के लड़कियों की कहानी है। अन्य कहानियों के मुकाबले में इस कहानी का विस्तार थोड़ा छोटा लगा। "मर्ज जिंदगी इलाज़ जिंदगी" में एक औरत रोजमर्रा की जिम्मेदारियों के बोझ तले दबी जा रही है। उसके और उसके गाइनेकोलॉजिस के बीच का संवाद काफ़ी रोचक है। औरत को हिम्मत मिलती है और वो नई स्फूर्ति के साथ इस दौड़ में फिर से कूद पड़ती है। "सिगरेट का आखिरी कश" कहानी में नायिका अपने प्रेमी को रिजेक्ट करती है पर एक पाठक के तौर पर मेरे लिए ये अभी भी एक पहेली जैसा है।
किताब की भाषा पात्रों के अनुरूप है, जहां पर पात्र शहर में रहते हैं , आपको हिंदी और अंग्रेज़ी के शब्द मिलते हैं । जहां कथानक और पात्र गांव की तरफ़ मुड़ते हैं वहां हिंदी, भोजपुरी के शब्दों की प्रचुरता है। भाषा सरल, स्वाभाविक और कहानी के अनुरूप है। वर्तनी संबंधी अशुद्धियां किताब में मौजूद नहीं हैं। "बिसेसर बो की प्रेमिका" कहानी में भोजपुरी लोकगीतों की खुशबू है। "देखवकी" और इस कहानी में आपको पूर्वांचल क्षेत्र के बहुत से रीति रिवाजों की झलक भी मिलती है। जिन दोस्तों को अच्छी कहानियों की तलाश रहती है उनको ये किताब पसंद आयेगी। लेखिका किताब लेखन के साथ ही पटकथा लेखन जैसे क्रिएटिव फील्ड में भी काफी सक्रिय हैं। मैंने ये किताब किंडल पर पढ़ी, आप इसकी हार्डकॉपी अमेजन/फ्लिप्कार्ट से मंगवा सकते हैं।
किताब से ली गई पंक्तियां 🌸
"ज़िंदगी की खुली खिड़की पर उतरते-गिरते रहे थे मौसमी क़िस्से पर्दों की तरह और गमलों में खिलते-झरते रहे थे नज़्मों के फूल। अपने आँगन में बैठी लड़की धुँध के बदन पर मलती रही थी कविताओं की धूप और सामने लटकती तारों पर घर की औरतें डालती रही थीं धुली हुई, रंग-बिरंगी कहानियों की चादरें हर सुबह। एक नीला स्कार्फ़ ही था कि निकला था किसी अलमारी से बड़े दिनों बाद भूले-भटके कहीं। 🌸
✅प्रकाशन : हिंद युग्म रेड ✅लेखिका : अनु सिंह चौधरी
I'm divided about this one. The good thing is that stories are almost all interesting, save for couple which don't work. Characters are real, believable and the stories investigate modern life beyond the mere surface. One way of writing about something is to present it in contrast with something else: old vs new, rural vs urban, man vs woman. I felt that the stories in this collection go one step further and explore the dynamics, tensions of modern life on their own terms.
What I found distracting was the tendency of the stories to meander a little. At some places things felt repetitive, at others, unnecessary (small back stories in Mukti and Sahyatri).
My pick of the collection are Dekhvaki, Haath ki Lakeerein and Neela Scarf. Kuchh Yun Hona Uska, Mukti and Live In are also nice.