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तट की खोज

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107 pages, Hardcover

Published January 1, 1998

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About the author

Harishankar Parsai

87 books234 followers
Harishankar Parsai (हरिशंकर परसाई) was one of the greatest hindi satire writer. Despite holding a MA degree in English, he never wrote in this language. Started his career as a teacher, he later quit it to become a full time writer and started a literature magazine "Vasudha"(it was later closed because of financial difficulties).

He was famous for his blunt and pinching style of writing which included allegorical as well as realist approach. He was funny enough to make you laugh but serious enough to prick your conscience. There would be hardly any dimension of life left which has not appeared in his satires. He received Sahitya Academy Award(biggest literature award in India) for his book "Viklaang Sraddha ka Daur". He has penned down some novels also.

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Displaying 1 - 6 of 6 reviews
Profile Image for Komal Yadav.
122 reviews11 followers
August 30, 2021
I won't write about story much because that will give away the whole essence of book. But but I can't believe a male writer captured the hypocrisy of society towards females so accurately. All the dialogues, quotes, scenes deserve an applause. If I were highlighting the noteworthy moments with a pen or something I would have coloured the whole book.

And And the ending is cherry on the cake. I still can't believe a male author wrote this and that too during pre-independence times when feminist moment was not even that much into the limelight.

Some people are truly legend and I am stupid for not reading enough hindi books especially of such great writers.
Profile Image for Varun Mehta.
45 reviews7 followers
December 8, 2018
अद्भुतः रचना

हरिशंकर परसाई जी का व्यंग संग्रह "निट्ठले की डायरी" जब मैंने पढ़ा था तब ही मैंने फैसला कर लिया था कि उनका लिखा सब कुछ पढ़ना है। पुस्तकालय में उनका लघु उपन्यास देखा तो रुका नहीं गया।

कहने के लिए ये परसाई जी लघु उपन्यास व्यंग नहीं है परन्तु परसाई जी अपने चिर-परिचित अंदाज में चुटीली बात कह जाते है

"बच्चों की पुरानी स्कूली किताबें, जब किसी काम की नहीं रह जाती, तब पिता उन्हें आलमारी में बंद कर, ‘होम लायब्रेरी’ कहकर सन्तोष कर लेता है। सामान्य आदमी, जब बेटी का विवाह नहीं कर पाता, तो कालेज में दाख़िल करा, ‘अभी पढ़ रही है’ कहकर संतोष कर लेता है।"

"मुझे विश्वास है कि वे ईमानदार थे। इसका सबसे बड़ा सबूत हमारी ग़रीबी थी। भलाई को हमेशा मुसीबत की ही गवाही मिलती है।"

तट की खोज की भूमिका में परसाई जी कहते हैं कि ये उनकी उस वक्त की रचना है जब उनके अंदर भावुकता ज्यादा थी। और यही भावुकता इस कृति में भी झलकती है। वो ये भी कहते हैं मूल घटना मुझे अपने कवि मित्र ने सुनाई थी। उन्होंने संवेदना में दो रात जागकर इसे लिखा और लिखकर पछताये । जब यह किताब छपी तब और पछताये और वह इस रचना का सामना नहीं कर सकते।

मेरा मानना है व्यंग या लेखन जब आस पास होने वाली घटनायों से जुड़ता है, लेखक को चुभन का एहसास पाठक को ज्यादा चुभता है।

ये लघु उपन्यास शीला की कहानी है, जो समझौता करना नहीं जानती। प्रेम और जीवन के निराशाजनक अनुभवों के बाद भी वह खुद को बिखरने नहीं देती और ये मानने से इंकार कर देती है कि लड़की की जीवन रूपी कश्ती के लिए ससुराल ही एक तट है।

ये कहानी महेंद्रनाथ और मनोहर की भी है। महेन्द्रनाथ जो हम सब जैसा है बहुत बड़ी बड़ी बातें करते है और जब समाज का सामना करने की बात आती है तो पिछले दरवाजे से भाग जाते है। मनोहर वह है जो हम सब बचपन में बनना चाहते है, जो अपनी कथनी और करनी में फर्क नहीं करते

समाज तो जैसा है वैसे ही दिखाया गया है जो जितना गलत होता है वो दुसरो की गलतियां निकालने में उतना आगे होता है।

यह उपन्यास ख़त्म होते हुए भी ख़त्म नहीं होता, परसाई जी ने अंत में अपना तुरुप का पत्ता चलते हुए आपको अपनी कहानी बनाने की छूट दे देते है। आप सोचने पर मजबूर करते है की आगे क्या हुआ होगा
Profile Image for Abhishekk Nagar.
4 reviews1 follower
November 10, 2020
हरिशंकर परसाई! ऐसा नाम जिसे सुनते ही एक व्यंग्यकार की छवि मन में आती है.. ऐसा आदमी जो लोगों की महफिलें जमा उन्हें हंसा हंसा कर कर खूब वाह वाही लूटता होगा.. उन्होंने खुद एक जगह कहा है कि, लोग मुझे हंसोड़ और हर बात में हंसने हंसाने वाला व्यक्ति जानकर और ऐसी ही छवि मन में बनाकर मेरे पास आते हैं मगर इसके उलट मेरी कम बोलने वाली, धीर गंभीर छवि देखकर उदास हो जाते हैं...

सच ही तो है! उनके व्यंग्य हंसाते नहीं फटकारते हैं... झकझोरते हैं.. झंझोड़ते हैं... कथित भारतीय समाज पर उनके गहरे कटाक्ष बहुत सच्चाई से अपनी बात कहते हैं और उनकी भारतीय समाज और उसकी मनोस्थिति कर गहरी पकड़ की गवाही देते हैं... ऐसे लेखक की जब मैंने किताब देखी जिसे एक लम्बी कहानी या लघु उपन्यास कहा जा सकता है और जिसकी भूमिका में उन्होंने ये लिखा हो कि,

".... लिखकर पछताया, छपा तब और पछताया और अब जब यह वाणी प्रकाशन से प्रकाशित हो रहा है और भी पछता रहा हूं। अब मैं इस रचना का सामना नहीं कर सकता... "

... तो किताब एक बार में बिना रुके पढ़ जाना कोई बड़ी बात नहीं होगी... एक लड़की के आसपास घूमती कहानी, धीरे धीरे हमारे तथाकथित आदर्श समाज की पोल खोल देती है... पढ़ते हुए सब कुछ सच्चाई सा लगता है और डर लगता है... और जब सच्चाई से डर लगता है तो और डर लगता है कि नब्बे के दशक में छपी यह कहानी आज भी उतनी ही प्रासंगिक है और शायद हमारे देश मे आने वाले सौ साल तक प्रासंगिक रहे और मेरा दावा सच होने पर यकीन मानिए मुझे बिल्कुल खुशी नहीं होगी...

ये कहानी बहुत समय तक याद रहेगी!
Profile Image for Mihir Chhangani.
Author 1 book12 followers
November 20, 2022
This book isn't the regular Parsai book with its socio-political humour and simplicity. This is a complex novella which talks about a woman and her struggles in a patriarchal society which, unfortunately, still stands the test of time.

It comments on the entire ecosystem of the protagonist - Sheela - who is an unmarried woman, in a concise but hard-hitting manner.

A recommended short read.
Profile Image for Sonam.
9 reviews
March 23, 2024
My first Harishankar Parsai book and I am bummed for not reading enough of his work till now. A male author capturing the hypocrisy of society towards women so accurately and that too during pre-independence…It is a short and simple book that I feel is definitely worth a read.
Profile Image for विकास 'अंजान'.
Author 8 books42 followers
January 18, 2018
3.5/5
वैसे तो हरिशंकर परसाई जी अपने लिखे व्यंग के लिए प्रसिद्द हैं लेकिन उनका ये लघु उपन्यास व्यंग नहीं है। यह लघु उपन्यास शीला की कहानी है। अक्सर लड़की के जीवन को एक ऐसी कश्ती की तरह देखा जाता है जो पैदा होते ही अपने तट की खोज के लिए निकल पड़ती है और ये तट अक्सर ससुराल ही होता है। समाज की यही सोच भी है जिस वजह से शादी दो साथियों का रिश्ता न रहकर एक शोषण का तरीका बन चुका है। समाज में एक पिता जिसकी बेटी की शादी नहीं हो रही होती वो उससे ज्यादा निरीह व्यक्ति शायद ही कोई होगा।
ऐसे ही समाज की ये कहानी है।
उपन्यास मुझे पसंद आया। शीला का किरदार प्रेरक है। उपन्यास के विषय में मेरी पूरी राय आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:
तट की खोज
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