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प्रतिनिधि कहानियाँ

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प्रतिनिधि कहानियां – मोहन राकेश मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती हैं ! इस संकलन में उनकी प्राय सभी प्रतिनिधि कहानियां संग्रहीत हैं, जिनमें आधुनिक जीवन का कोई-न-कोई विशिष्ट पहलू उजागर हुआ है ! राकेश मुख्यतः आधुनिक शहरी जीवन के कथाकार हैं, लेकिन उनकी संवेदना का दायरा मध्यवर्ग तक ही सिमित नहीं है ! निम्नवर्ग भी पूरी जीवन्तता के साथ उनकी कहानियों में मौजूद है ! इनके कथा-चरित्रों का अकेलापन सामाजिक संदर्भो की उपज है ! वे अपनी जीवनगत जददोजहद में स्वतंत्र होकर भी सुखी नहीं हो पते, लेकिन जीवन से पलायन उन्हें स्वीकार नहीं ! वे जीवन-संघर्ष की निरंतरता में विश्वास रखते हैं ! पत्रों की इस संघर्ष शीलता में ही लेखक की रचनात्मक संवेदना आश्चर्यजनक रूप से मुखर हो उठती है ! हम अनायास ही प्रसगानुकुल कथा-शिल्प का स्पर्श अनुभव करने लगते हैं, जो कि अपनी व्यंगात्मक सांकेतिकता और भावाकुल नाटकीयता से हमें प्रभावित करता है ! इसके साथ ही लेखक की भाषा भी जैसे बोलने लगती है और अपने कथा-परिवेश को उसकी समग्रता में धारण कर हमारे भीतर उतर जाती है !

143 pages, Paperback

First published January 1, 1983

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Profile Image for Ekta Kubba.
229 reviews8 followers
May 13, 2020
This review is for 'मोहन राकेश की श्रेष्ठ कहानियां' (संपादक: रविन्द्र कालिया)
मोहन राकेश जी की कहानियों के पात्र किसी न किसी रूप से अकेलेपन को जी रहे होते हैं जो पहाड़ जैसा जीवन जीते हुए अस्तित्व के मायने ढूंढते रहते हैं।
'मिस पाल' का अकेलापन उनकी हीन भावना से जुड़ा है, जो अपने ही बनाए अकेले पन की दलदल में धंसती चली जाती है। 'आर्द्रा' में बचन को अपने दोनों बेटों में से किसी के पास रह कर भी चैन नहीं मिलता, बन्नी को घर आने की फुर्सत नहीं होती और लाली को अपने काम से समय निकाल कर माँ से बात करने की फुर्सत नहीं मिलती। किसी एक बेटे के साथ होती है तो दूसरे की चिंता में खुद को सूनेपन की ओर धकेलती रहती है। इस तरह दो बेटों में बंटी माँ के अंतर्द्वंद्व का पूरी चेतना के साथ चित्रण किया गया है।
'अपरिचित' के दोनों पात्र अपने अपने जीवन साथी को अपने अस्तित्व का सही अर्थ नहीं समझा पाते और अपने जीवन को चुप्पी के हवाले कर देते हैं। वहीं 'सुहागिनें' में मनोरमा एक बच्चे की चाहत लिए खालीपन में जीवन व्यतीत करने के लिए बाध्य है। उसके विपरीत काशी बच्चों को पाकर भी तन्हा है। अपने बच्चों का जीवन सुधारने के साधन नहीं जुटा पाती, और मनोरमा साधन होते हुए भी अपने पति को बच्चे की चाहत के बारे में अवगत नहीं करवा पाती। इस कहानी में मनोरमा-सुशील और काशी-अग्न्याशय के वृत्तांत से रिश्तों की त्रासदी का एक अनूठा आयाम विकसित किया है।
'मलबे का मालिक' में भारत-पाक विभाजन के बाद के दर्द को बयाँ किया गया है। घर से उजड़ने वाला और घर को उजाड़ने वाला दोनों ही इस दर्द को झेल रहे हैं। यह कहानी मानव की क्रूरता एवं करूणा और उसके विश्वास एवं विश्वासघात को बयाँ करती है।
'उसकी रोटी' में बालो की ज़िंदगी ही इंतज़ार पर बसी है। छः दिन सुच्चा सिंह की बस का इंतज़ार और सातवें दिन उसके घर आने का इंतज़ार। उन दोनों के बीच होने और न होने जैसा रिश्ता है।
'एक और जिंदगी' में प्रकाश अपने बराबर पढ़ी लिखी और उस से ज्यादा कमाती बीना के साथ सहज नहीं रह पाता और उस से दूर एक नई जिंदगी की खोज में चला जाता है।उसे एक ऐसी लड़की की चाहत है 'जो हर लिहाज से उस पर निर्भर करे और जिसकी कमजोरियाँ एक पुरुष के आश्रय की अपेक्षा रखती हो।' लेकिन यह नई जिंदगी उसके जीवन को अजीब से चौराहे पर लाकर खड़ा कर देती है। इस सब के बीच उसके नन्हे से बेटे की चाहत उसे अपनी बीती जिंदगी से दूर नहीं जाने देती।
'मंदी' में एक ऐसी दुनिया दिखाई गई है जहां प्यार, आदर, सहयोग और परामर्श का स्थान एक ऐसे कांटे ने ले लिया है जिस से पैसा कमाने वाली मछलियाँ (इन्सान) फंसाई जा सकें, और इसका एकमात्र कारण मंदी है।
'जानवर और जानवर' में इन्सान रूपी जानवर की विलासिता और चरित्र की असली जानवरों से बखूबी तुलना की गई है। 'मवाली' में मोहन राकेश बताते हैं कि किस प्रकार गरीब, अनाथ, बेघर और बेसहारा बच्चों को घ्रणा की द्रष्टि से देखा जाता है और उन पर अत्याचार करते हुए उन्हे अकसर मवाली की उपाधि दी जाती है। इस कहानी में मानवीय विडंबनाओं का बेहतरीन उल्लेख किया गया है।
'फ़ौलाद का आकाश' कहानी में मीरा अपने पति के साथ यांत्रिक रिश्तों में उलझी हुई है। पुराने मित्र राजकृष्ण से मिलने के उपरान्त उसके स्वप्न और कल्पनाएं भयावह रूप से बदल जाते हैं।
'गुनाह बेलज्जत' विचित्र मानव स्वभाव पर लिखी गई कहानी है। सुंदर सिंह अपनी शारीरिक असमर्थता को न तो छुपा पाता है और न ही उजागर कर पाता है। पत्नी की उपेक्षा और सुंदर सिंह की कुंठा में कहानी समाप्त होती है।
'परमात्मा का कुत्ता' में वयवस्था के चरित्र पर टिप्पणी की गई है। तंत्र को उघाड़ने के लिए मुंहफट भाषा का सहारा लेना पड़ता है। वहीं 'मिस्टर भाटिया' एक चरित्र प्रधान कहानी है। यह चरित्र विसंगतियों के तल पर जीते एक आम इंसान का प्रतीक है। 'जीनियस' इंसान के 'इनरसेल्फ' को समझने का प्रयास है। एक प्रकार का मोनोलोग है।
'पांचवें माले का फ्लैट' में महानगर के जीवन का खाका खींचा गया है। मध्यवर्गीय सच्चाई को बखूबी प्रस्तुत किया गया है। अविनाश व्यर्थता बोध से त्रस्त है और इस की वजह से उसका जीवन व्यथित है। अपने पांचवें माले के फ्लैट की भांति ही उसे भी लोगों की वितृष्णा सहनी पड़ती है।
मोहन राकेश जी ने इस पुस्तक के माध्यम से मानवीय संवेदनाओं को बेहद खूबसूरती से पिरोया है। अंतर्द्वंद्व और आत्मपरीक्षण को जीवन की सच्चाई बताकर पेश किया गया है।
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