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134 pages, Paperback
Published February 26, 2016
रोज़ वही एक कोशिश ज़िंदा रहने की,
मरने की भी कुछ तय्यारी किया करो
मैं जंग जीत चुका हूं मगर ये उलझन है
अब अपने आप से होगा मुकाबला मेरा
टूट रही है हर दिन मुझ में एक मस्जिद
इस बस्ती में रोज़ दिसंबर आता है