સૌંદર્યની નદી નર્મદા દિન દિન બઢત સવાયો દોઆબ એટલે બે નદીઓ વચ્ચેનો પ્રદેશ. હું બે ભાષાઓના દોઆબમાં રહું છું. એક બાજુ ગુજરાતીની નદી, બીજી બાજુ હિન્દીની, વચ્ચે મારું જબલપુર ગામ! મારી પાસે બે ભાષાની નાગરિકતા છે. પરિક્રમા-પુસ્તકો મેં બંને ભાષામાં લખ્યા છે. બંનેમાં પ્રાદેશિક તેમ જ રાષ્ટ્રીય પુરસ્કારો મળી ચૂક્યા છે. સાહિત્ય અકાદમી, દિલ્હીનો પુરસ્કાર ગુજરાતી પુસ્તક ‘સૌંદર્યની નદી નર્મદા’ને મળ્યો છે. મધ્યપ્રદેશમાં રહેવાના લીધે ગુજરાત જોડે સંપર્ક લગભગ તૂટી ગયો હતો. ગુજરાતી લેખન થકી એ પાછો જોડાઈ ગયો છે. જે ગુજરાત મારાથી દૂર ચાલ્યું ગયું હતું, નર્મદામૈયાએ એ મને પાછું અપાવ્યું છે. મરાઠી અનુવાદો થકી નર્મદાસૌંદર્ય મહારાષ્ટ્રમાં પણ પહોંચી ગયું છે. બંગાળી અને અંગ્રેજી અનુવાદો પણ પ્રસિદ્ધ થઈ ચૂક્યા છે. આમ નર્મદાસૌંદર્ય ‘દિન દિન બઢત સવાયો!’ – અમૃતલાલ વેગડ
अद्भुत वर्णन। नर्मदा यात्रा का सजीव चित्रण प्रस्तुत करते हुए लेखक हमे इस पुस्तक में| यह पुस्तक मुझे नर्मदा परिक्रमा करने के लिए प्रेरित कर रही है। लेखक द्वारा माँ नर्मदा की परिक्रमा करना अद्भुत, अविश्मरणीय और शब्दातीत आनंद दे गया| अमृतला वेगड़ ने नर्मदा परिक्रमा पैदल यात्रा के माध्यम से की| इस पुस्तक को साहित्य अकादमी पुरस्कार और मध्य प्रदेश राज्य साहित्य पुरस्कार मिला है। इस पुस्तक को त्रयी का पहला भाग माना जाता है। अन्य दो पुस्तकें "अमृतस्य नर्मदा" और "तीरे तेरे नर्मदा" है। इस पुस्तक को पढ़ने से पाठक में जितनी श्रद्धा और भक्ति प्रकट होगी, उतनी ही उसकी सौंदर्यबोध भी प्रकट होगी। पुस्तक न केवल नदी की सुंदरता, बल्कि भारत में भटिगल की सुंदरता को भी दर्शाती है। अमृतलाल वेगड़ पुस्तकों का गुजराती (स्वयं के द्वारा), अंग्रेजी, बंगाली और मराठी में अनुवाद किया गया है| इस शानदार यात्रा वृतांत को पढ़ना वाकई अद्भुत था|
पद्म पुराण में नर्मदा को गंगा आदि पवित्र नदियों से श्रेष्ठ बताते हुए कहा है॒| पुण्या कनखले गंगा, कुरुक्षेत्रे सरस्वती। ग्रामे वा यदि वारण्ये, पुण्या सर्वत्र नर्मदा।। अर्थात् गंगां को कनखल नामक तीर्थ में विशेष पुण्यदायी माना जाता है और सरस्वती को कुरुक्षेत्र में, किन्तु नर्मदा चाहे कोई ग्राम हो या फिर जंगल सर्वत्र ही विशेष पुण्य देने वाली है।
पुस्तक उठाने से पहले एक हिचकिचाहट थी कि कहीं यह यात्रा वृतांत बोरिंग न हो ! लेकिन हर पन्ने के साथ नर्मदा और उसके परिवेश से जुड़ता गया।
नदियों में सिर्फ नर्मदा की ही परिक्रमा की जाती है। नदी के उद्गम से लेकर सागर में मिलन तक और फिर दूसरे छोर से वापस उद्गम तक यानि लगभग 2600km की कठिन यात्रा है, जहाँ न केवल मौसम और दुरूह मार्ग से जूझना पड़ता है बल्कि लुटेरों का भी डर होता है। यूँ तो परिक्रमा करने में कई नियमों का पालन करना होता है लेकिन लेखक ने टुकड़ों में नदी की परिक्रमा पूरी की है और इस पुस्तक में न केवल नर्मदा के सौंदर्य का ही वर्णन किया है बल्कि नर्मदा परिक्रमा में पड़नेवाले गाँव-शहर-तीर्थस्थलों की संस्कृति, सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक बुनावट को भी चित्रित किया है। जैसे एक जगह उन्होंने आम के पेड़ की विवाह की रस्म देख कर लिखा है, "दो साल से उसमें आम लग रहे थे। लेकिन जब तक वह उस पेड़ का विवाह नहीं कर देता, तब तक उसके फल नहीं खा सकता। सो चमेली की बेल के साथ आम का विवाह रचाया है।"
वैसे ही एक गाँव की शादी की रस्म के बारे में लिखा है, "यहाँ चार भांवरे लड़की के घर पड़ती है, तीन लड़के के घर।"
लेखक जब परिक्रमा कर रहे थे तब नर्मदा में कई सारे बाँध बनाये जा रहे थे। उन बाँधों के होनेवाले प्रभाव का भी ज़िक्र भी लेखक ने किया है।
***** पुस्तक की भाषा बहुत ही सहज है। भाषा की सहजता और मीठापन का अंदाजा पुस्तक से उद्धरित कुछ अंश को देख कर भी लगाया जा सकता है :-
पगडंडी को देख लेखक के मन में ख्याल उपजता है -
"पगडंडी लोकगीत की तरह होती है। इसे बनाने वाला अज्ञात होता है। कोई एक इसे बनाता भी नहीं। यह समूह का सृजन है।"
रास्ते में पड़ने वाले एक मेला स्थल पर एक साधू की मृत्यु हो जाती है। इसपर उनकी मनोभावना :-
"घर से दूर, अपरिचितों के बीच मरना कैसा लगता होगा ? मरना सुखद तो नहीं, फिर भी अपने घर में कुटुंबियों के बीच मरना सुखद होता है। नई जगह में, यहाँ तक कि अच्छे से अच्छे अस्पताल में भी कोई मरना नहीं चाहता। जन्म चाहे अस्पताल में हो, लेकिन मृत्यु घर में हो।"
जब नर्मदा और समुद्र के मिलन में बस कुछ ही फासला रह जाता है तब वे कहते हैं :-
"जिन पंच-तत्वों से नर्मदा की देह का निर्माण हुआ है - पानी, चट्टान, प्रपात, शोर और मोड़ - इनमें से एक-एक करके अधिकतर छूटते जा रहे हैं। सबसे पहले गया प्रपात। इसके बाद चट्टान। चट्टान के साथ ही शोर भी चला गया। मोड़ भी पहले जैसे नहीं रहे।
यही है जीवन। ज्यों-ज्यों जीवन का सूर्यास्त निकट आता जाता है, अधिकांश चीज़ें छूटती जाती हैं और यात्री अंतिम यात्रा के लिए हल्का-फुल्का होता जाता है।"
This is one of the best books written about Narmada Parikrama. I read about this book in a magazine when Shri. Amrit Lal Vegad Passed away in 2018.
This book has a lively retelling of the travels of Sh. Vegad around the river Reva or Narmada. He completed this yatra in several short journeys but his telling about the whole yatra in a single book is marvellous. He has beautifully explained the natural wonders that he has seen during his journey and also described the hardships met during the yatra.
The episode where the Bheels(tribal men) loot the parikrama wasis was the most surprising. His night stays in the aashrams and sometimes under the trees were mesmerizing. The way he tells the story of his travels makes you feel yourself travelling along with him. You see the peacocks, the snakes, the bulls in the natural landscape being drawn by him on his canvas.
The sketches are full of life and tell the story better than the photographs because you paint them with your very own imagination and it becomes your personal experience.
His writing compares the parikrama with our lives and indeed it succeeds in this comparison. A must read.
जिस सुंदरता से वेगड जी ने नर्मदा नदी के प्रपात,घाटी और अपनी नर्मदा नदी के साथ साथ की यात्रा का वर्णन किया है उसे पढ़ते हूये यही लग रहा था उठकर नर्मदा की परिक्रमा करने चल पडुं। राह में जितने ग्राम पड़े उन सब का भी सुंदर वर्णन है, और शूलपाण की झाड़ियों व वहाँ के भीलों की भी जानकारी प्राप्त होती है।
Without any doubt, a highly recommended book. Amrit lal Vegad ji has tried his best to express the beauty of Narmada through his eyes of travel. A wonderful travelogue 👍
પહેલો ભાગ વાંચ્યા બાદ લાગ્યું કે હવે શું બાકી હશે ? ઉપમાઓ અને અલંકારો ભરી ને હજુ કેટલું ? પણ ના... વેગડ સાહેબનો ખજાનો હજુ અખૂટ છે. બાકીની પરિક્રમામાં તેઓ ઓર ખીલ્યા છે અહીં. ખાસ તો ચંદ્ર, તારા અને આકાશ પર એમનો પ્રેમ જે ઉભરાયો છે કે વાત ન પૂછો. વળી આ વખતે એમનાં ભોમિયાઓ પણ બદલાતા રહ્યા છે જે છેલ્લા ચરણમાં એમના પોતાના પરિવાર સાથે પણ ચાલી રહ્યા છે. ખરેખર વાંચતા વાંચતા તમને પણ પ્રકૃતિની ગોદમાં જવાનું મન થઈ આવે. લટકામાં, તેમનાં પત્નીનો લેખ અને બહુ બધાં રેખાચિત્રો. એકંદરે મજા પડી ગઈ.
Every one should read this masterpiece. A journey that takes you to a pilgrimage. The author complete the journey in parts yet you would feel that the story never had any breaks.