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315 pages, Paperback
First published January 1, 1944
कठोर और कड़वा और चिरंतन नारी का अभिमान कि जो समाज उसका आदर नहीं करता, उसीके हाथों नष्ट-भ्रष्ट, छिन्न-त्रस्त-ध्वस्त होकर वह उसकी अवमानना करेगी... आशीर्वाद? क्या आर्शीवाद हो उस नारी को क्षुद्र पुरुष का? कि तू हुतात्मा हो, मेरी ज्वाला उज्जवल और सुगन्धित और निर्धूम हो! लज्जा क्षोभ और आत्मग्लानि से शेखर ने अपनी बंधी हुई छाती में मार ली
जल, ऊर्ध्वगे, जल यज्ञ-ज्वाला जल! उत्तप्त जल, उज्जवल और सुवासित जल, क्षार-हीन और निर्धूम और अक्षय जल! यह मुझ अभागे का आशीर्वाद हो!
भेड़ों की तरह झुण्ड बांधकर रहेंगे, तो भेद-चाल चलनी पड़ेगी। भेद-चाल का सभ्य नाम संस्कृति है।