साहित्य शिरोमणि श्री जयशंकर प्रसाद, जिन्होंने आज से 100 वर्ष पहले ऐसी कृतियों की रचना की, जिसे आज के समाज में भी आधुनिक कहना अतिशयोक्ति न होगा। ध्रुवस्वामिनी नाटक के द्वारा स्त्री के हक के लिए बात करने वाले श्री जयशंकर प्रसाद, अपने नायिका प्रधान उपन्यास 'तितली' में अपनी नायिका तितली को सुकोमल बाला से सुदृढ़ एवं कर्मठ महिला होने की यात्रा की कहानी कहते हैं।
साहित्य को नई दिशा देने वाले श्री जयशंकर प्रसाद की अनुपम कृति 'तितली', जीवन के गूढ़ रहस्य को बातों बातों में ही समझा देती है।
पुरुष और स्त्री तो अलग-अलग मिट्टी से बने हैं।जहाँ पुरुष छल, बल, दल से अपनी बात मनवाने का प्रयास करते हैं, वहीं स्त्री अपने कोमल मन में केवल प्रेम को तलाशती है। वह प्रेम जो ताकत भी है और कमजोरी भी। जिसे वह सब से छुपाना चाहती है और सबको बताना भी। वह प्रेम जिसके लिए वह जीती है और जिसके लिए वह मर भी जाना चाहती है। वह प्रेम जिसका एक सपना पूर्ण करने के लिए वह जीवन भर संघर्ष करती है।
लेकिन एक और बात भी है जो स्त्री को पुरुष से भिन्न करती है। जहां पुरुष समस्याओं से घिर जाने पर और दबाव में या तो उत्पाती हो जाता है या टूट कर बिखर जाता है, या तो सन्यासी होने का प्रयास करता है या फिर सर्वस्व लूट लेने का। वंही स्त्री कठिन से कठिन परिस्थितियों में अधिक दृढ़ होकर खड़ी होती है। बनती है सहारा परिवार का, अपने आसपास सभी का।
वह प्रेम के लिए व्यथित हो सकती है किंतु अपने कर्तव्य का भान उसे पथभ्रष्ट नहीं होने देता। जहाँ पुरुष का मन स्त्री के प्रति मलिन होते क्षण भी नहीं लगता, वहीँ स्त्री पुरुष पर सौ लांछन लगने के बाद भी उसी से प्रेम करती है। स्त्री का यही स्वभाव और समर्पण जीवन, परिवार और समाज की धुरी है।
शब्द शिल्पी श्री जयशंकर प्रसाद के अनुसार हर स्त्री को विपरीत परिस्थितियों में तितली की तरह दृढ़ संकल्पी, परिश्रमी और कर्मठ होकर स्वावलंबी बनने की ओर अग्रसर होगा। हर स्त्री को शैला की तरह नए परिवेश में भी अपने प्रेम और समर्पण से दिलों में स्थान बनाना होगा। उसे पुरुष का संबल बनना होगा तभी शायद भारतीय स्त्री अपने गौरवपूर्ण स्थान को फिर से प्राप्त करने में सफल हो पाए। #monikasharma #bookreview
भारतीय समाज की एक बीते हुए युग की विवेचना करती हुई यह पुस्तक शुरू से से अंत तक पाठक को बांधे रखती है. इस पुस्तक का शीर्षक तितिली क्यूँ है, ये विचारयोग्य विषय है, क्योंकि कहानी के पहले एक-चौथाई हिस्से में तो इस पात्र का सही विवरण भी नहीं है. यही इस पुस्तक की सबसे खास बात है की मुख्य किरदार का चरित्र-निर्माण किस प्रकार किया गया है. आप जब पुस्तक पढ़ते हैं तो पाते हैं की लेखक ने बाकि किरदारों को गढ़ने में कई पृष्ठों को भरा है और जब पुस्तक खत्म होती तो आपके सामने जो सबसे प्रबल है, जिसके विषय पर सोचते हुए आप पुस्तक बंद करेंगे वो होगी 'तितली'. बाकी किरदारों के व्यतिरेक स्वरुप मुख्य किरदार खुद-ब-खुद ही उभर आता है. स्त्री प्राधान्य इस कहानी में स्त्री के अलग-अलग स्वरुप हमें देखने को मिलते है. भारतीय सभ्यता में स्त्री-समाज के निर्धारित स्थान के वजह से उत्पन्न परिस्थितियों को प्रकट करती है ये कहानी. यह एक ऐसा विषय है जो हमेशा होते हुए हुए भी उपेक्षित और गूढ़ बना रहता है. हम नारी से बस समर्पण की ही उम्मीद करते है. इसके अतिरिक्त भी कुछ होता है ये ज्ञात करने की कोशिश नहीं की जाती या ज्ञात होने पर भी ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे वो अवास्तविक हो. नारी किस प्रकार निर्बल और सबल बनती है, यह हम इस पुस्तक में देखते हैं. भारतीय समाज के पारिवारिक और सामाजिक जटिलताओं को चित्रित करता हुआ ये कहानी उनके अच्छाईयों और बुराईयों की अन्वेषण करता है. पाश्चत्य और भारतीय सभ्यता में समाज के मूल वैचारिक आधारों और उनके व्यवहारिकता की विवेचना भी हमें पढ़ने को मिलती है. यह पुस्तक मनुष्यों के कई पक्षों को उजागर करता हुआ ये बता जाता है की किस प्रकार गलत कर्म की अंकुर मन में फूटती है, किस प्रकार हम उसे तब तक सुख के लोभ में अपने विचारों को उसके अनुरूप बदल कर हवा-पानी देते रहते हैं, जबतक वो वृक्ष इतना विशाल न हो जाता की उसकी वजह से बाकि सारे सूख जाएँ. अन्ततः ये शास्वत सत्य अपने आप को पुनर्स्थापित करता है कि कर्म का फल सबको मिलता है, और यही सत्य मनुष्यों को बेहतर होने की प्रेरणा देती है.
Good hearted characters who often face internal struggles and downdrift in their life. Blended with social issues, it was probably the trusted formula at that time which this novel also carries very well. Personally I find Premchand's approach to this formula better because of his writing style which involved more words to write the same thing but felt vast as well. Among the greats of the Hindi literature nevertheless.
तितली ग्रामीण जीवन शैली को दर्शाता एक उपन्यास है जिसमें मुख्य किरदार तितली का वर्णन लेखक ने बहुत ही कम स्थानों पर किया है । धामपुर गाँव की यह कहानी बहुत सारे पात्रों के इर्द गिर्द घूमती है । इंद्रदेव जो की गाँव के जमींदार हैं और उनके साथ विदेश से आयी हैं शैला जो भारत में रह कर ही गाँव के विकास में लग जाती हैं । उनका रिश्ता एक चर्चा का विषय रहता है लोगों के लिए । तितली के पिताजी असल नहीं जिन्होंने उन्हें गोद लिया है रामनाथ का ज़िक्र है कैसे वो ग्रामीण जीवन को देखते हैं और मधुबन से तितली का जीवन जोड़ना चाहते हैं । शेरकोट हवेली एक ज़माने में मधुबन के पुरखों की होती है जिस कारण गांव के हवलदार, चौबेजी , और सभी उसे परेशान करते हैं । कहानी के शुरुवात में अनवरी जो की इंद्रदेव की बहन है वो भी श्यामदुलारी ( इंद्रदेव की माँ ) को शैला के ख़िलाफ़ उकसाने की कोशिश करती है । इस उपन्यास में जयशंकर प्रसाद जी यथार्थ से जुड़ी बातें बहुत रोचक तरह से हमारे सामने रखते हैं । जैसे : एक प्रसंग के माध्यम से वो बताते हैं इंसान दूसरों की नीचा दिखा या उनका अपमान करके ख़ुद को महान बताता है , दूसरों के दुख में भी वो अपना फायदा देखता है और उनमें सहानुभूति नहीं होती है । इस तरह की अनेक बातें इस उपन्यास में आपको देखने को मिलेगी जो आप अपने जीवन में, ग्रामीण जीवन में अनुभव कर सकते हैं । मुझे उपन्यास में बहुत से किरदार होने के कारण और अलग अलग किरदारों की कहानी का एक साथ चलने के कारण थोड़ी तकलीफ़ हुई पढ़ने में । तितली का ज़िक्र बहुत ही कम हुआ । कहूँगा मुख्य जगह हुआ और उसके जीवन में कैसे छोटे से लेके वो एक शश्क्त नारी बन कर उभरती है और ख़ुद के पैर पर खड़ी होती है इस उपन्यास में दिखाया गया है । पर बातें जो आपके साथ रह जाएंगी वो दूसरे किरदारों की कहानियां और प्रसंग है । मैं ये पुस्तक पढ़ते हुए बहुत किंकर्तव्यविमूढ़ रहा और भूल जाता था की यह कहानी तितली की हो रही है । बहुत बार मैं इसे पढ़ना भी नहीं चाहता था क्योंकि किरदार बहुत ज्यादा थे । उपन्यास में क्लिष्ट हिन्दी का प्रयोग है तो पढ़ने में थोड़ी मुश्किल भी हुई। आप समय निकाल कर ख़ुद इस पुस्तक को पढें और अनुभव करें इसे । ⠀ / तरुण पाण्डेय
जयशंकर प्रसाद जी के इस उपन्यास में अनेक पात्र हैं और हर पात्र का समुचित उपयोग हुआ है। प्रत्येक पात्र का फ्लैशबैक, स्वयं से वार्तालाप अनेक संभावनाएं उत्पन्न करता है। हर पात्र को समुचित स्थान देने में प्रसाद जी सफल रहे हैं। संभव है कि सत्तर के दशक के किसी चलचित्र ने इस उपन्यास से प्रेरणा ली हो। उपन्यास की नायिका "तितली" अंत में उभर कर आती है और कथानक पर छा जाती है। सह नायिका "शैला" में नायिका बनने के सभी गुण थे, बस यदि उसने धर्म के मर्म को समझा होता। मधुबन यदि दूसरों की लड़ाई में न पड़ता तो नायकत्व पा जाता। पढ़ने योग्य "क्लासिक" उपन्यास
Titli - A novel by famed author Shri Jaishankar Prasad, set around real 19th century Indian events before independence. Truth be told, this novel is not about our fight for freedom. Titli is the main character of the novel. She is headstrong, smart, kind-hearted & loyal. It is a story about internal, personal struggles with life. Make no mistake. It has a happy ending :-)
There are multiple, inter-related, parallel stories woven together in this novel. The best part is that every character has its importance. No single character appears to outshine the others. Titli has mostly positive vibes throughout its length. The writing style is strikingly similar to Premchand Ji's. One can easily mistake it for a Premchand novel.
In other words, Titli has all the elements for a complete action-packed Bollywood movie. You can't help but reminisce about those 1950-60's black & white movies while reading it.
I loved it totally & now looking forward to reading other books by Jaishankar Prasad ji.
आजादी पूर्व भारत के गांवों में बसी ये कहानी की मुख्य पात्र तितली ही हो सकती है। वैसे कहानी में और भी सभी पात्रों को समान रूप से विकसित किया गया है। मगर बचपन के भोलेपन से लेकर वयस्कता की दहलीज़ लांघने वाली वो किरदार जो अब स्वावलम्बी और आत्मसंयमी हो चुकी है बस एक तितली ही हो सकती है।
कहानी में जमींदारी और उससे जुड़े हुए लगान, कुर्की, फौजदारी, पुलिस, पटवारी, महंत इत्यादि के पृष्ठभूमि में विभिन्न पात्रों के बीच मानसिक अंतर्द्वंद, ईर्ष्या जलन, धोखा, षड़यंत्र, वीरता, आदर्शवाद, प्रेम, कामुकता और आत्मदंभ का एक कथानक है जो अवश्य पढ़ने योग्य है। ये कथा जो प्रेमचंद के किसी कहानी समान एक भारतीय गाँव की एक अभाव ग्रसित झोपडी से शुरू होती है, आगे चलकर वुदरिंग हाइट्स की तरह अवसादकारी बन बैठती है मगर अंततः एक खुशमिजाज मोड़ पर अंत होती है।
जयशंकर जी के उपन्यास पर हम क्या ही समीक्षा कर सकेंगे !
आजादी के पहले के एक गांव के परिवेश पर आधारित नायिका प्रधान कहानी है; एक नवयुवती जो तमाम मुसीबतों से अकेले लड़ते हुए सफल होती है।
कहानी में चलने वाले चक्र-कुचक्र के कारणों की सटीक व्याख्या उपन्यास के अंत की ओर लेखक की इस टिपण्णी से हो जाती है ---
" प्रेम-मित्रता की भूखी मानवता बार-बार अपने को ठगा कर भी वह उसी के लिए झगड़ती है। झगड़ती है इसलिए प्रेम करती है। मानव हृदय की मौलिक भावना है स्नेह। कभी-कभी स्वार्थ के ठोकर से पशुत्व की, विरोध की प्रधानता हो जाती है।"
एक अल्पज्ञ पाठक के तौर पर यही कहेंगे कि जिस विषयवस्तु और परिवेश पर कहानी लिखी गई है, उसपर प्रेमचंद जी का लिखा भी मैंने पढ़ा है तो न चाहते हुए भी तुलना आ ही जाती है और मुंशी जी का लिखा एकदम जीवंत लगता है जबकि इनका लिखा यथार्थ से दूर लगा। हाँ, लेकिन धन-सम्पदा को लेकर जो स्थिति अभी वृद्ध पेरेंट्स और बच्चों के बीच आए दिन देखने को मिलती है उसपर उन्होंने बहुत ही सटीक टिपण्णी की है,
"जिस माता-पिता के पास स्नेह नहीं होता, वही पुत्र के लिए धन का प्रलोभन आवश्यक समझते हैं। किन्तु यह भीषण आर्थिक युग है। जब तक संसार में कोई ऐसी निश्चित व्यवस्था नहीं होती कि प्रत्येक व्यक्ति बीमारी में पथ्य और सहायता तथा बुढ़ापे में पेट के लिए भोजन पाता रहेगा, तब तक माता-पिता को भी पुत्र के विरुद्ध अपने लिए व्यक्तिगत संपत्ति की रक्षा करनी होगी।"
3.5 titli ek aisi gain or logo is kahaani jo premchand is duniya se mail khati hai. jo ise agal banata he woh he ise likhne ka dhang. JO kafi interesting he. lakin ye perfect novel toh nai he. Mujhe iski pacing acchi nai lagi aur characters ko yaad rakhna suravat me ek hard task tha. Main often bhul jata ki kon kon he. Par iski likhayi bohot acchi thi.
One of the only two completed novels by the famous poet and playwright Jaishankar Prasad :)
तितली ‘मनुष्य बनाम समाज’ के संघर्ष का ही उपन्यास न होकर मानव मूल्यों की प्रतिष्ठा का भी उपन्यास है।इसमें तितली, शैला, माधुरी, श्यामकुमारी, राजकुमारी आदि नारी चरित्रवर्ग चरित्र न होकर ऐसी नारियाँ हैं जो अपनी कमजोरियों के कारण टूटती भी हैं और उसी से शक्ति अर्जित करके सामाजिक जीवन को बदलती भी हैं।
Story with happy ending and deep understanding of determination of women in all perspective in a world where women of village always seems to be dependent and week ,where titli proof it all wrong . Each new chapter will fulfil you with more curosity .
इस उपन्यास को पढ़ने से पूर्व मैंने जयशंकर प्रसाद की कहानियां और नाटक ही पढ़े थे. कहानी साधारण है, किन्तु ब्रितानी राज में किसानों के संघर्षों और ग्रामीण जीवन का सुन्दर चित्रण है, पात्रों के मनोभावों का भी जीवंत वर्णन है. परिस्थितियों और दैव से मिले कष्टों के विरुद्ध "तितली" की संघर्षोपरांत विजय प्रेरणादायी है. "शैला" द्वारा धीरे-धीरे भारतीय जीवन को पहले वैचारिक स्तर पर और फिर व्यावहारिक स्तर पर समझना दिलचस्प है. भाषा संस्कृतनिष्ठ हिंदी न होकर खड़ी-बोली हिंदी है, जिस कारण प्रेमचंद की लेखनी से समरूपता लगती है.