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323 pages, Kindle Edition
First published January 1, 1931
मियां की जूती मियां की चांद, तबेले की बला बदंर के सिर गई।I found this term hilarious and apt: चपर-गट्टू
दमड़ी की हंडिया खोकर कुत्तों की जात तो पहचान ली जायगी
शिवलिंग के ऊपर रखे हुए घट में क्या वह प्रवाह है, तरंग है, नाद है, जो सरिता में है?What was irritating in the Kindle version were the innumerable typographic errors – To the extent I was not sure whether they were errors or some Persian word; even the context they were found in did not elucidate the meaning.
भादों का महीना था। पृथ्वी और जल में रण छिडाहुआ था। जल की सेनाएं वायुयान पर चढ़कर आकाश से जल-शरों की वर्षा कर रही थीं। उसकी थल-सेनाओं ने पृथ्वी पर उत्पात मचा रक्खा था।
मानो प्रभात की सुनहरी ज्योति उसके रोम-रोम में व्याप्त हो रही है।
रमा की दशा इस समय उस शिकारी की-सी थी, जो हिरनी को अपने शावकों के साथ किलोल करते देखकर तनी हुई बंदूक कंधो पर रख लेता है,और वह वात्सल्य और प्रेम की क्रीडा देखने में तल्लीन हो जाता है।
भादों का महीना था। पृथ्वी और जल में रण छिडा हुआ था। जल की सेनाएं वायुयान पर चढ़कर आकाश से जल-शरों की वर्षा कर रही थीं।
दुखी के लिए स्वर्ग भी दुखी है
जीवन एक दीर्घ पश्चाताप के अलावा और क्या है?
मानो जीवन की सबसे महान घटना (मृत्यु) कितनी शांति के साथ घटित हो जाती है, वो विश्व का एक महान अंग, वो महत्वकांक्षाओं का प्रचंड सागर, वो उद्योग का अनंत भंडार, वो दुख और द्वेष, सुख और दुख का लीलाक्षेत्र, वो बुद्धि और बल की रंगभूमि कब और कहाँ लीन हो जाती है; किसी को ख़बर नहीं होती। एक आह भी नहीं निकलती।
दमड़ी की हड़िया खोलकर, कुत्ते की जात तो पहचानी जाएगी।