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मैला आँचल

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Maila Anchal by Phanishwarnath Renu is from Rajkamal Prakashan, a noted publishing house of Hindi literature.

479 pages, Kindle Edition

First published January 1, 1954

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About the author

Phanishwar Nath 'Renu' (4 March 1921 – 11 April 1977) was one of the most successful and influential writers of modern Hindi literature in the post-Premchand era. He is the author of Maila Anchal, which after Premchand's Godaan, is regarded as the most significant Hindi novel.

हिन्दी कथा-साहित्य को सांगीतिक भाषा से समृद्ध करनेवाले फणीश्वरनाथ रेणु का जन्म बिहार के पूर्णिया जिले के औराही हिंगना गाँव में 4 मार्च, 1921 को हुआ। लेखन और जीवन, दोनों में दमन और शोषण के विरुद्ध आजीवन संघर्ष के प्रतिबद्ध रेणु ने राजनीति में भी सक्रिय हिस्सेदारी की। 1942 के भारतीय स्वाधीनता-संग्राम में एक प्रमुख सेनानी की हैसियत से शामिल रहे। 1950 में नेपाली जनता को राणाशाही के दमन और अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए वहाँ की सशस्त्र क्रान्ति और राजनीति में सक्रिय योगदान। 1952-53 में दीर्घकालीन रोगग्रस्तता के बाद राजनीति की अपेक्षा साहित्य-सृजन की ओर अधिकाधिक झुकाव। 1954 में बहुचर्चित उपन्यास मैला आँचल का प्रकाशन। कथा-साहित्य के अतिरिक्त संस्मरण, रेखाचित्र और रिपोर्ताज़ आदि विधाओं में भी लिखा। व्यक्ति और कृतिकार, दोनों ही रूपों में अप्रतिम। जीवन की सांध्य वेला में राजनीतिक आन्दोलन से पुनः गहरा जुड़ाव। जे.पी. के साथ पुलिस दमन के शिकार हुए और जेल गए। सत्ता के दमनचक्र के विरोध में पद्मश्री लौटा दी।

मैला आँचल के अतिरिक्त आपके प्रमुख उपन्यास हैं: परती परिकथा और दीर्घतपा; ठुमरी, अगिनखोर, आदिम रात्रि की महक, एक श्रावणी दोपहरी की धूप तथा सम्पूर्ण कहानियाँ में कहानियाँ संकलित हैं। संस्मरणात्मक पुस्तकें हैं: ऋणजल धनजल, वन तुलसी की गन्ध, श्रुत-अश्रुत पूर्व। नेपाली क्रान्ति-कथा चर्चित रिपोर्ताज है।,

भारत यायावर द्वारा सम्पादित रेणु रचनावली में फणीश्वरनाथ रेणु का सम्पूर्ण रचना-कर्म पाँच खंडों में प्रस्तुत किया गया है।

11 अप्रैल, 1977 को देहावसान।

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Displaying 1 - 30 of 78 reviews
Profile Image for Bhavika.
4 reviews44 followers
May 8, 2016
बिहार के पूर्णिया-कटिहार जिले के गाँव मेरीगंज की ये कहानी आज़ादी की और कदम बढ़ाते भारत की तस्वीर है जो भारत के ग्राम्य जीवन के अनेकों सत्यों से साक्षात्कार कराती है. एक तरफ जातिवाद का विषवृक्ष है जिसका पोषण उसकी दूर तक फैली गहरी जड़ें ही नहीं बल्कि समाज के इन खोखले नियमों के प्रति ग्रामवासियों की अगाध निष्ठा भी करती है. दूसरी और है, भूखी-नंगी, मलेरिया-कालाआजार से पीड़ित, हर संघर्ष में देवों की दुहायी देती, "पशु से भी सीधी और पशु से भी खूंखार" जनता जिसकी बड़ी कमजोरी उसका पेट है. इस जनता में राजनैतिक चेतना का प्रयास करते कुछ सुराजी (स्वराजी) हैं और कुछ सोशलिट (सोशलिस्ट) हैं जो अपने-अपने सिद्धांतों व तरीकों की श्रेष्ठता प्रमाणित करने का प्रयास करते हैं, किन्तु आज़ादी के आने के साथ-साथ अवसरवाद, भ्रष्टाचार को पैर जमाते और नैतिक मूल्यों-सिद्धांतों का पतन होते देख खुद को असहाय महसूस करते हैं. गाँव की जनता महात्मा गाँधी को अवतार-पुरुष तो मानती हैं किन्तु ये नहीं जानती की आज़ादी का अर्थ क्या है. और इसी पृष्ठभूमि में, सामाजिक कुचक्रों के बीच प्रेम के कुछ कमल भी खिलतें हैं.

मैला आँचल के किरदार अत्यंत सशक्त हैं. बावनदास, बालदेव, कालीचरण, डागडर बाबू, कमली, लिछमी दासिन, तहसीलदार साहब, ये सभी अविस्मरणीय चरित्र हैं. और गाँव की जनता का चरित्र चित्रण तो लेखक के ये दो वाक्य ही सम्पूर्ण कर देते हैं, "गाँव के लोग बड़े सीधे दिखते हैं; सीधे का अर्थ यदि अपढ़, अज्ञानी और अंधविश्वाशी हो तो वास्तव में सीधे हैं वे. जहाँ तक सांसारिक बुद्धि का सवाल है, वे हमारे और तुम्हारे जैसे लोगो को दिन में पांच बार ठग लेंगे. और तारीफ यह है कि तुम ठगी जाने पर भी उनकी सरलता पर मुग्ध होने पर मजबूर हो जाओगी."

घटनाक्रमों का अत्यंत यथार्थ एवं जीवंत चित्रण है. इतने विषयों के होते हुए भी कथावस्तु के तारतम्य एवं कथा की रफ़्तार में कहीं कोई त्रुटी नहीं दिखाई देती.

मैला आँचल का सबसे सशक्त पहलु है इसकी भाषा शैली. मिथिला और बंगाल के बीच बसे मेरीगंज की आंचलिक भाषा न केवल प्रभावशाली है बल्कि सहज और सम्मोहक भी है. "इन्किलास जिंदाबाघ", जक्सैन (injection), और जमाहिरलाल (जवाहरलाल) जैसे कई शब्द है जो चिरकाल तक स्मृति में रहेंगे. कुछ जगहों पर तो ऐसा प्रतीत होता है कि लेखक sanskritized हिंदी पर उपहास कर रहे हैं. मैथिली लोकगीत भी बड़े मनोरंजक हैं.

ये उपन्यास हिंदी के सर्वश्रेष्ठ उपन्यासों में से है और इसे प्रेमचंद के गोदान की श्रेणी में रखना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. यदि ये अंग्रेजी या रूसी जैसी किसी भाषा में लिखा गया होता तो ये विश्व के महानतम उपन्यासों में से होता और विभिन्न भाषाओँ में इसके अनेकों अनुवाद छपते. ये बड़े दुःख की बात है कि भारत में जहाँ अंग्रेजी की औसत श्रेणी की पुस्तकों को भी लाखों पाठक मिल जाते हैं, वहीँ हिंदी के कालजयी उपन्यासों को भी किताबों की दुकानों में स्थान नहीं मिलता.
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Author 38 books80 followers
August 28, 2016
तीसरी बार यह किताब पढ़ी। इस बार खुद के लेखन को सँवारने की चेष्टा से। हर वाक्य पर गौर कर रहा था। रूक कर दुबारा पढ़ रहा था। विदापत नाच के छंदों को जोर-जोर से पढ़ रहा था। फुटनोट्स भी पढ़ रहा था। रेणु की कथाएँ न शुरू होती है, न खत्म। बस चलती रहती है। जैसे आपकी जिंदगी। बिल्कुल ही uncoventional लिखते हैं। कोई नियम-कानून follow नहीं करते। अपभ्रंस भाषा अपनी मर्जी से तोड़ी-मरोड़ी हुई, पर ऐसा भी नहीं की चालू लेखकों की तरह बोल-चाल या chat की भाषा में लिख डाली हो। भाषा उस हिसाब से बदलती है, जैसे बोलने वाला। डॉक्टर साहब की अलग, उच्च जाति और जमींदारों की अलग, और पिछड़ों की अलग। मतलब ये रेणु की अपनी नहीं, उनकी भाषा है जिन्हें वो जी रहे हैं। आजकल कुछ हद तक गिरिंद्रनाथ जी ऐसी कोशिश कर रहे हैं। मैनें उनकी छद्म-पुस्तक राजकमल प्रकाशन के माध्यम से पढ़ी है। आपलोग ढूँढें। एक पॉपुलर नाम भी है उस श्रृंखला की। खैर, वापस रेणु पर आता हूँ। जो भी creative writing या सृजनात्मक रूचि रखते हैं, वो एक guidebook की तरह पढ़ लें, बार-बार। underline करें, नोट्स बनाएँ। जो विशुद्ध पाठक हैं, उन्होंने तो पढ़ ही रखा होगा। रेणु नहीं पढ़ा तो goodreads से नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए निकल जाएँ। पढ़ कर वापस आएँ।
52 reviews29 followers
December 27, 2016
‘फणीश्वरनाथ रेणु’ कृत ‘मैला आँचल’ को गोदान के बाद हिंदी साहित्य का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास माना जाता है । इस उपन्यास के द्वारा ‘रेणु’ जी ने पूरे भारत के ग्रामीण जीवन का चित्रण करने की कोशिश की है । स्वयं रेणु जी के शब्दों में :-
इसमें फूल भी हैं शूल भी है, गुलाब भी है, कीचड़ भी है, चन्दन भी सुन्दरता भी है, कुरूपता भी- मैं किसी से दामन बचाकर निकल नहीं पाया।
कथा की सारी अच्छाइयों और बुराइयों के साथ साहित्य की दहलीज पर आ खड़ा हुआ हूँ; पता नहीं अच्छा किया या बुरा। जो भी हो, अपनी निष्ठा में कमी महसूस नहीं करता।
हिंदी के उपन्यासों की एक खास बात उनका रोचक परिचय या भूमिका होती है जैसा कि हमने गुनाहों का देवता में भी देखा है । इस उपन्यास का कथानक पूर्णिया जिले के एक गाँव मेरीगंज का है ।

कहानी का मुख्य पात्र डॉक्टर प्रशांत बनर्जी है जो कि पटना के एक प्रतिष्ठित मेडिकल कॉलेज से पढ़ने के बाद अनेक आकर्षक प्रस्ताव ठुकराकर मेरीगंज में मलेरिया और काला-अजर पर शोध करने के लिए जाता है । डॉक्टर गाँववालों के व्यव्हार से आश्चर्यचकित है । वह रूढ़ियों को नहीं मानता और जो लोग गाँव द्वारा तिरस्कृत हैं, वह उनको सहारा देता है । उसकी सच का साथ देने की और लोगों को सही राह बताने की यही आदत बाद में उसके लिए मुश्किल कड़ी कर देती है । कहानी की नायिका है कमली । किसी अज्ञात बीमारी से पीड़ित है लेकिन डॉक्टर उसको धीरे-धीरे ठीक कर देता है या यूँ कहा जाए कि डॉक्टर खुद ही उसकी बीमारी का इलाज है । कमली का हृदय विशाल और कोमल है । वह अपने अभिभावकों को किसी प्रकार का कष्ट देना नहीं चाहती । कमली के पिता विश्वनाथ मलिक गाँव के तहसीलदार हैं और फिर बाद में तहसीलदारी छोड़कर कांग्रेस के नेता हो जाते हैं । वह इस कहानी में सही मायने में ज़मींदारी व्यवस्था के प्रतीक हैं, लेकिन उनका दोहरा चरित्र उपन्यास में दिखाया गया है । घर आने पर वह एक समझदार और हंसोड़ व्यक्ति हो जाते हैं और बाहर निकलने पर जमीन की लिप्सा से ग्रस्त हो जाते हैं जिसके लिए तरह तरह के हथकंडे अपनाने से नहीं चूकते । कहानी के अन्य पात्र किसी न किसी विचारधारा के प्रतीक हैं और उनको कहानी में लाया ही गया है उस ‘वाद’ को दिखने के लिए । कोई जातिवाद , कोई समाजवाद तो कोई स्वराज्य आंदोलन का झंडाबरदार है ।

जैसा कि रेणु जी ने भूमिका में ही कहा की यह एक आंचलिक उपन्यास है। आंचलिकता से तात्पर्य है कि किसी उपन्यास में किसी क्षेत्र के शब्दों और परम्पराओं का बहुतायत में पाया जाना । इस उपन्यास में मिथिला क्षेत्र में प्रयोग किये जाने वाले अनेक शब्द मिल जायेंगे । उस से बढ़कर गाँवों की अपनी एक परम्परा होती है - अंग्रेजी नामों का क्षेत्रीकरण करने की । तो स्टेशन टीसन हो जाता है , एम.एल.ए. मेले हो जाता है और सोशलिस्ट सुशलिंग हो जाता है । गांधी जी गनही , जवाहरलाल जमाहिरलाल, स्वराज सुराज , और राजेंद्र प्रसाद रजिन्नर परसाद हो जाते हैं । उपन्यास में प्रयुक्त आंचलिक शब्दावली सिर्फ मिथिला में प्रयुक्त होती हो ऐसा नहीं कहा जा सकता । सैकड़ों किलोमीटर दूर एक अवधी भाषी को भी सैकड़ों शब्द अपने लगेंगे क्योंकि वहां भी इन्हीं शब्दों को बहुतायत में प्रयोग किया जाता है । लोगों के नामों में भी यह प्रयोग देखा जा सकता है । राम खेलावन, काली चरन, शिवशक्कर सिंह, हरगौरी सिंह, रमपियरिया, रामजुदास इत्यादि नामों ने इस उपन्यास की ग्रामीण पृष्ठभूमि को और पुख्ता कर दिया है । यदि आंचलिकता की परिभाषा को बड़ा किया जाए तो गाँव की घटनाएं भी इस दायरे में आ जाएँगी । किसी शुभ अवसर पर लोगों को भोज देने के समय बड़ी जातियों का छोटी जातियों के साथ खाने से इंकार करना, फसल कटाई-बुवाई के समय लोकगीत गाना, अखाडा होना, वाद-विवादों के निपटारे के लिए पंचायत बुलाना आदि को भी आंचलिकता का एक रूप कहा जा सकता है । उदाहरण के तौर पर :-
अभी चेभर-लेट गाडी पर लीडरी सीख रहे हैं आप ! आप क्या जानिएगा की सात-सात भूजा फाँककर, सौ-सौ माइल पैदल चलकर गाँव-गाँव में कांग्रेस का झंडा किसने फहराया? मोमेंट में आपने अपने स्कूल में पंचम जारज का फोटो तोड़ दिया, हेडमास्टर को आफिस में टला लगाकर कैद कर दिया, बस आज आप लीडर हो गए । यह भेद हम लोगों को मालूम रहता तो हम लोग भी खली फोटो तोड़ते। … गाँव के ज़मींदार से लेकर थाना के चौकीदार-दफादार जिनके बैरी! कहीं-कहीं गाँववाले दाल बाँधकर हमें हड़काते थे, जैसे मुड़बलिया को लोग सूप और खपरी बजकर हड़काते हैं । … आप नहीं जानिएगा छोटन बाबू !

उपन्यास में एक गाँव में प्रचलित जातिवाद के एक वीभत्स चेहरे को दिखाया गया है । कई सारी घटनाएं और परम्पराएँ दिखाई गई है जिससे लगता है कि ये जातिवाद का भस्मासुर कितनी गहराई में अपनी जड़ें जमा रखा है । जब डॉक्टर साहब नए नए गाँव में आते हैं तो लोग उनकी जाति जानने को आतुर रहते हैं । डॉक्टर को खुद अपनी जाति नहीं मालूम होती है क्योंकि वह अज्ञात कुल-शील था और उसने कभी अपनी जाति को महत्व नहीं दिया था । गाँव में सभी जातियों के रहने के स्थान अलग अलग थे और उनका अपना एक नेता होता था । जाति को लेकर राजनीति भी बहुत होती थी । जब कांग्रेस और सोशलिस्ट पार्टियां गाँव में आयीं तो लोगों पर उनका प्रभाव अलग अलग था । पीड़ित जातियों पर सोशलिस्ट पार्टी का एक बार में ही प्रभाव पड़ गया क्योंकि उनका तरीका बहुत ही क्रांतिकारी था और उन्होंने जो वादा किया था वह कांग्रेस के बालदेव जी ने नहीं किया था ।

रेणु जी ने इस उपन्यास का काल-खण्ड एकदम उपयुक्त चुना है । कहानी देश आजाद होने के कुछ समय पहले शुरू होती है । इस से अंग्रेजों का राज करने का तरीका देखने का मौका मिलता है और साथ ही साथ कांग्रेसी गतिविधियों को दिखाया जा सकता है। बाद में सोसलिस्ट पार्टी ने भी गाँव में अपने झंडे गाड़ दिए थे । इन दोनों पार्टियों की विचारधारा और कार्य करने के तरीकों में अन्तर को विभिन्न घटनाओं के द्वारा दर्शाया गया है । बाद में जब देश आजाद हुआ तो लोगों पर उसकी प्रतिक्रिया भी दिखाई गई । लोगों ने यह भी पूछा कि आज़ादी के कारण ज़मीनी बदलाव क्या हुए । बाद में जब भारत के लोग एम.एल.ए., मिनिस्टर, आदि पदों पर बैठने लगे तो उनके भ्रष्ट होने को भी दिखाया गया है । गांधी जी की मृत्यु पर पूरे गाँव में शोकयात्रा भी निकाली गई । गाँव के लोगों को भले ही गांधी जी के जीवन और विचार के बारे में कुछ न मालूम हो लेकिन गांधी जी महापुरुष हैं, इतना मालूम है ।

हिंदी साहित्य को पढ़ने के बाद यह भावना जरूर आती है कि लेखक को सामाजिक और राष्ट्रीय जिम्मेदारियों का एहसास होता है । शायद यह बात भारत के अन्य क्षेत्रीय भाषा के साहित्यकारों पर भी लागू होती हो । रामधारी सिंह ‘दिनकर’, विद्या निवास मिश्र, सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ जी जैसे साहित्यकारों को पढ़ने के समय भी यही लगता है । इस उपन्यास में भी रेणु जी ने कहानी के पात्रों के माध्यम से यह दर्शाने की कोशिश की है कि मनुष्य को अपने आसपास घटित होने वाली घटनाओ में अपनी जिम्मेदारी का परिचय देना चाहिए । डॉक्टर प्रशांत ने अपनी कर्मभूमि एक पिछड़े गाँव को चुना । उन्होंने वहीँ पर मलेरिया अनुसन्धान करने की ठानी । जिम्मेदारियों का यह बोध ममता द्वारा डॉक्टर को लिखे गए एक पत्र में दृष्टिगोचर होता है :-
डॉक्टर! रोज डिस्पेंसरी खोलकर शिवजी की मूर्ति पर बेलपत्र चढाने के बाद, संक्रामक और भयानक रोगों के फैलने की आशा में कुर्सी पर बैठे रहना, अथवा अपने बंगले पर सैकड़ों रोगियों की भीड़ जमा करके रोग की परीक्षा करने के पहले नोटों और रुपयों की परीक्षा करना , मेडिकल कॉलेज के विद्यार्थियों पर पांडित्य की वर्षा करके अपने कर्त्तव्य की इतिश्री समझना और अस्पताल में कराहते हुए गरीब रोगियों के रूदन को जिंदगी का एक संगीत समझकर उपभोग करना ही डॉक्टर का कर्त्तव्य नहीं!

इस उपन्यास की शैली सहज है और पूरे उपन्यास में प्रवाह बना रहता है । रेणु जी ने दो लोगों में संवाद की शैली का प्रयोग कम करते हुए प्रश्नोत्तर विधा का प्रयोग कहीं अधिक किया है । गांव में किसी का किसी बारे में सोचना या निरर्थक वार्तालापों को उन्होंने ऐसे ही व्यक्त कर दिया है । एक बानगी देखिये - “चलो! चलो! पुरैनियाँ चलो! मेनिस्टर साहब आ रहे हैं! औरत-मर्द, बाल-बच्चा, झंडा-पत्तखा और इनकिलास-जिन्दबाघ करते हुए पुरैनियाँ चलो ! … रेलगाड़ी का टिकस? … कैसा बेकूफ है! मिनिस्टर साहब आ रहे हैं और गाडी में टिकस लगेगा? बालदेव जी बोले हैं, मिनिस्टर साहब से कहना होगा, कोटा में कपडा बहुत काम मिलता है। ” पूरे उपन्यास में लोकगीतों का जमकर प्रयोग किया गया है जिनमे संयोग, वियोग, प्रकृति प्रेम इत्यादि भाव व्यक्त किये गए हैं । वाद्य यंत्रों की आवाज को रेणु जी ने जगह-जगह प्रयोग किया है और ये आवाजें कई बार कथानक बदलने के लिए इस्तेमाल की गई हैं ।

originally posted at :
http://www.yayawar.in/2015/09/book-re...
Profile Image for अभय  कुमार .
23 reviews3 followers
January 15, 2020
लेखन की जिस विधा के बीज प्रेमचंद ने बोए थे, उसको फणीश्वर नाथ "रेणु" जी बखूबी सींचते हैं। रेणू जी अपनी इस रचना के माध्यम से पश्चात् सभ्यता का लबादा ओढ़ चुकने की अग्रसर समाज को भारत की आत्मा से रूबरू कराते हैं। साथ ही सुराज ( स्वराज ) के आशावादी स्वप्न में डूबे समाज पर यथार्थ का तमाचा बड़ी ही बेबाकी से मारते है।
इस किताब की भाषा आंचलिक है, जिसमें आपको को एक अलग तरह के मिठास की अनुभूति होगी। वही दूसरी तरफ "डा-डिग्गा डा-डिग्गा ! रिं-रिं-ता धिन-ता !" जैसी ध्वनियाँ भी इस किताब को संगीतमय बनाती है। 'भारथ माता की जै', ' जै हिन्न (जय हिंद), 'गान्ही महातमा की जै' जैसे तकिया कलाम आपके भीतर एक मीठा एवं मधुर देश प्रेम भी जागृत करते हैं।
यदि आप बिना भारत भ्रमण के उसकी आत्मा का दर्शन करना चाहते हैं तो बन्धु यह पुस्तक आपका बड़ी ही तन्मयता के साथ इंतजार कर रही है।
Profile Image for Siddhartha.
Author 4 books11 followers
May 19, 2012
This book is a masterpiece describing the rural and semirural life of Bihar (an Indian state) during the time of Indian Independence struggle. Writing in the local colloquial hindi, Renu beautifully potrays the real picture of effects of Gandhism, communism, religious fundamenatalism and congress party politics on the tumultous life of the villagers. I thoroughly enjoyed reading the book.
Profile Image for Aayush Raj.
81 reviews8 followers
November 9, 2019
"मां शकुन्तला, सावित्री आदि की कथा पढ़ने में मन लगता है, लेकिन उपन्यास पढ़ते समय ऐसा लगता है कि यह देवी-देवता, ऋषि-मुनि की कहानी नहीं, जैसे यह हम लोगों के गांव-घर की बात हो।"
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"मौजूदा सामाजिक न्याय विधान ने इन्हें अपने सैंकड़ों बाजुओं में ऐसा लाचार कर रखा है कि ये चूं तक नहीं कर सकते।... फिर भी ये जीना चाहते हैं। वह इन्हें बचाना चाहता है। क्या होगा?"
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इस साहित्यिक कार्य में गज़ब का फूहड़पन और मंत्रमुग्ध करने वाली शालीनता ��ा समावेश है। मेरीगंज में स्थित इस उपन्यास कि कहानी कुछ अजब शुरू होती है और अनेक चरित्रों को एक धागे में पिरोकर पढ़ने वाले को परोसती है। धर्म, जाति, ज़मीनदारी, बंधुआ-मज़दूरी, संथालों की समस्याएं, गांवों में फैला अंधविश्वास, आज़ादी के पहले और बाद का सामाजिक परिवेश, और इन सब के बीच पनपता प्यार - इन सब को रेणु ने मानो एक ही पट्ट पर चित्रित कर दिया है। और ऐसा चित्र जो कि बस एक झलक मात्र से अमिट छाप छोड़ जाती है।

यह कहना कि इस उपन्यास का महत्व आज भी कहीं न कहीं उतना ही है जितना अपने समय में रहा होगा, अतिश्योक्ति नहीं होगा। बहुत लोग शायद इस टिप्पणी से सहमत न हों, लेकिन बिहार के कुछ इलाके आज भी इस उपन्यास की प‌ष्ठभूमी में प्रस्तुत किये गए समस्याओं की बेड़ियों में फंसे हैं। इस से भी एक कदम आगे, सामाजिक वातावरण भी कुछ वैसा ही है।

इस उपन्यास में राजनीतिक दृष्टिकोण से आ रहे बदलाव पर विशेष ध्यान दिया गया है। और यह बिहार का अभिन्न अंग रहा है। आश्चर्य बस इतना है कि इन सब का फायदा कभी भारत का यह हिस्सा उठा नहीं सका है। इस उपन्यास में इन सारी बातों को विशेष रूप से उजागर करने की कोशिश की गई है।

इन सबके बीच एक प्रेम प्रसंग और वह भी ऐसा जिसमें जन्मों की गहराई। इसके माध्यम से प्रेमी व प्रेमिका के मनोस्थिति को रेणु ने बखूबी प्रस्तुत किया है। आगे इसी शैली में समाज की त्रुटियों को उजागर किया जाता है, और आप ऐसे बंध जाते हैं इन पात्रों के साथ मानो वे सारे आपके जानने वाला कोई करीबी हो।
Profile Image for Sheetal Maurya - Godse (Halo of Books) .
324 reviews32 followers
April 22, 2017
This book travels from the era of pre independence to post independence. The author has tried to show various social, political aspects through various characters. This book give a great message but it has end number of grammatical mistakes which I think should not be there as it is the 39th edition. Overall a good read !
Profile Image for Aishwarya Mohan Gahrana.
28 reviews3 followers
April 16, 2016
प्रकाशन के साठ वर्ष बाद पहली बार किसी क्षेत्रीय उपन्यास को पढ़कर आज की वास्तविकता से पूरी तरह जोड़ पाना पता नहीं मेरा सौभाग्य है या दुर्भाग्य| कुछेक मामूली अंतर हैं, “जमींदारी प्रथा” नहीं है मगर जमींदार और जमींदारी मौजूद है| कपड़े का राशन नहीं है मगर बहुसंख्य जनता के लिए क़िल्लत बनी हुई है| जिस काली टोपी और आधुनिक कांग्रेस के बीज इस उपन्यास में है वो आज अपने अपने चरम पर हैं, और सत्ता के गलियारे में बार बारी बारी से ऊल रहे हैं| साम्राज्यवादी, सामंतवादी और पूंजीवादी बाजार के निशाने पर ग्रामीण समाजवादी मूर्खता का परचम लहराते कम्युनिस्ट उसी तरह से हैं जिस तरह से आज हाशिये पर आज भी करांति कर रहे हैं| विशेष तत्व भगवा पहन कर आज भी मठों पर कब्ज़ा कर लेते हैं और सत्ता उनका चरणामृत पाती है| गाँधी महात्मा उसी तरह से आज भी मरते रहते हैं…. हाँ कुछ तो बदल गया है, अब लोगों को ‘उसके’ मरते रहने की आदत जो पड़ गयी है|

पता नहीं किसने मुझे बताया कि ये क्षेत्रीय या आंचलिक उपन्यास है, शायद कोई महानगरीय राष्ट्रव्यापी महामना होगा| मैला आँचल भारत के गिने चुने शहरी अंचलों को बाहर छोड़कर बाकी भारत की महाकथा है; और अगर महिला उत्पीड़न के नजरिये से देखा जाये तो आदिकालीन हरित जंगल से लेकर उत्तर – आधुनिक कंक्रीट जंगल तक की कथा भी है| पढ़ते समय सबकुछ जाना पहचाना सा लगता है|

पूर्णिया बिहार की भूमि कथा का माध्यम बनी है| दूर दराज का यह समाज एक अदद सड़क, ट्रेन और ट्रांसिस्टर के माध्यम से अपने को आपको राजधानियों की मुख्यधारा से जोड़े मात्र हुए है| समाचार यहाँ मिथक की तरह से आते हैं| हैजा और मलेरिया, उसी तरह लोगों के डराए हुए है जिस तरह साठ साल बाद नई दिल्ली और नवी मुंबई के लोग चिकिनगुनिया और डेंगू जैसी सहमे रहते हैं|

कथानायक मेडिकल कॉलेज के पढ़कर गाँव आ जाता है; धीरे धीरे गाँव में विश्वास, युवाओं में प्यार, देश में नाम और सरकार में सतर्कता कमा लेता है| नहीं, मैं डाक्टर विनायक सेन को याद नहीं कर रहा हूँ| गाँव जातियों में बंटकर भी एक होने का अभिनय बखूबी करता है| अधिकतर लोग अनपढ़ है और जो स्कूल गए है वो सामान्य तरीके से अधपढ़ हैं| जलेबी पूरी की दावत के लिए लोग उतना ही उतावले रहते है जिस तरह से आज बर्गर पीज़ा के लिए; मगर हकीकत यह है कि जिस तरह से देश की अधिसंख्य आबादी ने आज बर्गर पीज़ा नहीं खाया उस वक़्त पूरी जलेबी नहीं खायी थी|

बीमारी से लड़ाई, भारत की आजादी, वर्ग संघर्ष, जाति द्वेष, जागरूकता और स्वार्थ सबके बाच से होकर उपन्यास आगे बढ़ता है| यह उपन्यास एक बड़े कैनवास पर उकेरा गया रेखाचित्र है जिसमे तमाम बारीकियां अपने पूरे नंगेपन के साथ सर उठाये खड़ी हैं| ये सब अपने आप में लघुकथाएं हैं और आसपास अपनी अनुभूति दर्ज करातीं हैं|

पुनःश्च – मेरे हाथ में जो संस्करण है, उसमें विक्रम नायक के रेखाचित्र हैं| मैं विक्रम नायक को रेखाकथाकार के रूप में देखता हूँ| उनके रेखाचित्रों में गंभीर सरलता झलकती है| इस संस्करण में उनके कई चित्र सरल शब्दों में पूरी कथा कहते हैं| बहुत से चित्र मुझे बहुत अच्छे लगे|
Profile Image for Anuj More.
2 reviews1 follower
September 7, 2016
The book explores the life of a village in North Bihar, India. The situations, living conditions, thoughts, society are as relevant today as in times when the book was written.

The folk songs in between adds flavor in the happenings of the village. After a few pages, I started feeling that I am an insider and experiencing the events first hand.

A must-read to know about the social and political life of Bihar.
Profile Image for Divya Pal.
601 reviews3 followers
January 10, 2023
स्वतंत्रता पूर्व व पश्चात के अंतर्गत बिहार के एक गांव के जीवन का वर्णन करने वाला एक अद्भुत व महान उपन्यास। इसमें प्रेम, वासना, व्यभिचारिता, अपराध, लोभ, जमीन हड़पना, छल कपट आदि सब है; जातिवाद चरम सीमा पर है । आजादी के बाद जैसे-जैसे राजनीति और पुलिस में भ्रष्टाचार घुसता है, मोह भंग असंतोष, हताशा, असंतोष लोगों में फैलता जाता है ।
ग्रामीण भाषा, जो संभवतः मैथिली होगी, समझने में और कथा का स्वतंत्रता-पूर्व सन्दर्भ समझने में थोड़ी कठिनाई हुई, क्योंकि ग्राम वासी अँग्रेज़ी और हिंदी को तोड़ मरोड़ कर बोलते हैं।'रेणु'ने यह मिश्रित बोली का प्रयोग अति सहज ढंग से किया है। कुछ रोचक उदाहरण
मलेटरी=military; कुलेन = quinine; पंडित जमाहिरलाल = Jawahar Lal (Nehru);भोलटियरी = Volunteer; डिसटीबोट = District Board; भैंसचरमन = vice chairman’ बिलेक = black; भाखन = भाषण; सरग = स्वर्ग; सोआरथ = स्वार्थ; सास्तर पुरान =शास्त्र पुराण; तेयाग = त्याग; परताप = प्रताप; मैनिस्टर = minister; रमैन = रामायण; गन्ही महतमा = Mahatma Gandhi; ललमुनिया = aluminium; रेडी = radio; इनकिलास जिन्दाबाघ = इन्किलाब ज़िंदाबाद; गदारी = गद्दारी; किरान्ती = क्रांति; गाट बाबू = guard; चिकीहर बाबू = ticket-checker; रजिन्नर परसाद = राजेंद्र प्रशाद; आरजाब्रत = अराजकता; सुशलिट = socialist; लोटिस = notice; परसताब =प्रस्ताव; कानफारम = confirm; सुस्लिंग मुस्लिंग = socialist muslin league; लौडपीसर = loudspeaker; इसपारमिन = experiment; ऐजकुटी मीटिं = executive meeting; पेडिलाभी = paddy levy; डिल्ली = दिल्ली बालिस्टर = barrister; बिलौज = blouse; कनकसन = connection; लौजमान = नौजवान; नखलौ = लखनऊ; जयपारगस = जयप्रकाश (नारायण); मिडिल = medal; लचकर = lecture; देसदुरोहित = देशद्रोही; भाटा कंपनी = Bata company; जोतखीजी = ज्योतिषीजी; कौमनिस पाटी = communist party; डिबलूकट = duplicate; मेले = MLA; बदरिकानाथ = बद्रीनाथ; टकटर = tractor
'रेणु'के व्यंग की कुशाग्र शैली
और तुरही की आवाज़ सुनते ही गांव के कुत्ते दाल बांधकर भौंकना शुरू कर देते हैं। छोटे-छोटे नजात पिल्ले तो भोंकते-भोंकते परेशान हैं। नया-नया भोंकना सीखा है न!
ग्रामीण स्तर पर सियासी बहस और मतभेद के बीच आरएसएस/हिन्दू महासभा के कार्यकर्ता का वक्तव्य
"इस आर्यावर्त में केवल आर्य अर्थात् शुद्ध हिन्दू ही रह सकते हैं," काली टीपी संयोजक जी बौद्धिक क्लास में रोज कहते हैं। "यवनों ने हमारे आर��यावर्त की संस्कृति, धर्म, कला-कौशल को नष्ट कर दिया है अभी हिन्दू संतान मलेच्छ संस्कृति के पुजारी हो गयी है। "
न्यायालय में भ्रष्टाचार व नैतिक अधमता का नमूना
कचहरी में जिला भर के किसान पेट बाँध के पड़े हुए हैं। दफा ४० की दर्खास्तें नामंजूर हो गयी हैं, 'लोअर कोट' से। अपील करनी है। अपील? खोलो पैसा, देखो तमाशा। क्या कहते हो? पैसा नहीं है? तो हो चुकी अपील। पास में नगदनारायण हो तो नगदी कराने आओ
देश के विभाजन का कटु सत्य
यह सब सुराज का नतीजा है। जिस बालक के जन्म लेते ही माँ को पक्षाघात हो गया और दूसरे दिन घर में आग लग गयी, वह आगे चल के क्या-क्या करेगा, देख लेना। कलयुग तो अब समाप्ति पर है। ऐसे ऐसे ही लड़-झगड़ कर सब शेष हो जायेंगे।
एक यादगार कहानी और पात्र, मैं फणीश्वर नाथ रेणु की इस पुस्तक को मुंशी प्रेमचंद की कृतियों से अधिक उत्तम आंकता हूँ।
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January 27, 2022
मैले को स्वच्छ करता हुआ आंचल, मैला आंचल।

पूर्णिया जिले के इस छोर से उस छोर तक का सजीव चित्रण। फूल, पत्ती,बाग शायद ही कुछ बचा रह गया हो।
टोली तो इतनी कि नाम याद ही नहीं रह जाता, राजपूत टोली,यादव टोली...फिर इन सब के भीतर टोली..।
आजादी के पूर्व व उसके पश्चात का बहुत ही स्पष्ट चित्रण किया है रेणु जी ने।
डॉक्टर प्रशांत और कमली , लक्ष्मी और बालदेव ये दोनों ही प्राण फूंकते रहते हैं उपन्यास में। कालीचरन, वासुदेव, तहसीलदार साहब, बावनदास, ज्योतिष काका सब अपने आप में ही अद्भुत हैं। पार्वती की मां जो पूरे गांव वालों के लिए डायन है वहीं डॉक्टर के लिए करुणा की मूर्ति है। खूब समझती है वो डॉक्टर और कमली की चोर नजर को।

डॉक्टर साहब उपन्यास के आधरस्वरूप कहें जाएं तो कोई गलत नहीं। जो डॉक्टर साहब हार्ट और लंग्स से प्रेम का कोई संबंध नहीं मानते, कमली को देखने के बाद वो भी महसूस करते हैं कि इस मानव शरीर में कोई दिल की आकृति जरूर है। कमली को अपने प्रशांत महासागर पर पूरा विश्वाश है,उसका प्रेम उसके यकीन पर ही खड़ा है, जो अंत तक बना रहता है। ममता को देख डॉक्डर का चित्त एक बार चंचल शायद हुआ भी हो लेकिन कमली का विश्वाश उससे कहीं ज्यादा है। प्रशांत गांव में प्यार की खेती करना चाहता है,वह आंसू से भीगी धरती पर प्यार के पौधे लहलाहेगा।

लक्ष्मी दासी के रूप में ही अपना जीवन बिताती है। पुरूष का चित्त कब चंचल हो जाए क्या कहा जा सकता है,लेकिन लक्ष्मी बड़ी ही साहसी स्त्री है। मठ में एक दफा रामदास ने उसे छूने का प्रयास किया तो पैर से उसकी छाती पर ऐसा मारा की क्या कहना। जब तक वह मठ में थी वह मठ था उसके बाद तो वह मीनाबाजार से ज्यादा कुछ नहीं। बलदेव जी लक्ष्मी के मन, बचन..सब पर मोहित हैं। लक्ष्मी भी उन पर कम स्नेह तो नहीं बरसाती। प्रेम बोल कर ही जाहिर हो,ऐसा तो नहीं।
कालीचरन अपनी सोशलिस्ट पार्टी में ही दिन रात लगा रह कर अपने जीवन को पूर्ण बनाता है। बावन दास छोटे लेकिन बड़े दमदार आदमी है। महात्मा गांधी की मृत्यु के बाद क्या होने वाला है उन्हें सब पता है।

उपन्यास पढ़ते हुए ऐसा लगता है कि उसी गांव के हम भी हैं। भाषा का जादू शुरु से अंत तक छाया है। ढोल नगाड़े, बादल,बिजली..जिस भी चीज की आवाज नहीं सुनी है,आप उपन्यास में सुन लीजिएगा।।
- तुलसी गर्ग
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July 5, 2015
so nice , i read it 4 times... Manihari Katihar Purniya .... A real story of village.. #Renu was too nicely use their pen nd create an amazing story.... #GramyAnchalkKathakar #Renu
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Author 57 books78 followers
December 15, 2017
पंचलाइट और तीसरी कसम अर्थात मारे गए गुलफाम पढ़ने के बाद रेणू जी को और पढ़ने की चाहत बलवती होती गयी। यह उपन्यास रेणू जी द्वारा लिखा गया मास्टरपीस है। पढ़ने के बाद कोई भी बिना अभिभूत हुए नही रह सकता।
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September 27, 2020
मैला आँचल का नायक पूर्णिया जिले का मेरीगंज गाँव है। आज़ादी की पृष्ठभूमि में स्थापित, ये एक गाँव के राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक self-determination की कहानी है। देश की सभी बड़ी घटनाएँ मेरीगंज के सामाजिक जीवन में भी घटित होती हैं। अपनी भूमिका को समझने में, मेरीगंज आधुनिकता और परम्परा के निरंतर मोल-तोल में भी शामिल है। कहानी में यह भी विशेष है कि ये भारत के देहात को किसी एक चश्मे से दिखाने की कोशिश नहीं करती। उदहारण के लिए जाति को देखिए, कहानी में कई जगह जाति की प्राथमिकता का ज़िक्र होता है ("जाति बहुत बड़ी चीज़ है। जात-पात नहीं माननेवाले की भी जात होती है"), पर कितनी जगह पर जाति-व्यवस्था भंग होने के भी उदाहरण है। मेरे लिए राष्ट्रवाद और धर्म का साथ मिलना भी दिलचस्प था। ये civil religion का ही एक उदहारण है। जैसे एक सत्संग में बीजक के आलावा सुराजी गीत और किराँती गीत भी गाए जाते हैं। इस तरह का समावेशता और सहिष्णुता ख़ूबसूरत है। ये गीत भी कहानी के लिए केंद्रीय हैं। यूँ भी रेणु जी इन आवाज़ों के मास्टर हैं, लोक-संगीत में उनकी गहरी आसक्ति है (मुझे उनकी कहानी "पहलवान की ढोलक" याद आती है)। और किताब की सबसे मज़ेदार चीज़ उसकी भाषा है, ये उस ऐतिहासिक क्षण का दस्तावेज़ है जब एक नई भाषा जन्म ले रही थी। गाँव के जीवन का भोलापन इस भाषा में दिखता है, पर लेखक की संवेदनशीलता की वजह से यह भोलापन सरलता है, मूर्खता नहीं। और अगर आपने बिहार के देहात को देखा है, तो आप मैला आँचल को उसमें देख पाएँगे। आपको सभी किरदार वहाँ मिल जाएँगे। मैला आँचल हमारी मेट्रो-केंद्रित सोच को चुनौती देता है और बापू के ग्रामीण स्वराज्य की याद दिलाता है।
Profile Image for Ved Prakash.
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October 16, 2017
यह रचना हिन्दी साहित्य का एक "पवित्र धर्मग्रन्थ" है तो फिर मुझ सा मूढ़ और नया पाठक इसके बारे में क्या लिख सकता है !!
लेखक ने खुद ही कहा है कि इसमें फूल भी हैं शूल भी, गुलाब भी, कीचड़ भी है, चंदन भी, सुंदरता भी है, कुरूपता भी। और हम इसमें गाँव की राजनीती, गरीबी, love, lust, incest, धोखा... सब कुछ पाते हैं।

गुलाम भारत के मिथलांचल के गाँव की कहानी है। कहानी का समय देश का आज़ादी की ओर अग्रसर होने का समय है। और गाँव की कहानी तो पुरे विश्व में एक सी है। बस समय का अंतर होता है। 1947 के भारत के गाँव की कहानी एक डेवलप्ड राष्ट्र के 18वीं सदी या फिर ऐसे ही किसी समय के आस पास के गाँव की तरह ही होगी।


लिखने का ढंग, लोकल डायलेक्ट का प्रयोग, लोक गीत का प्रयोग बहुत ही सुन्दर है।

*****

नोट :

यह उपन्यास सन् 1954 में प्रकाशित हुई थी। उससे 3 साल पहले यानि सन् 1951 में ताराशंकर बंदोपाध्याय का "हँसुली बांकेर उपकथा" प्रकाशित हुई थी। दोनों उपन्यास की पृष्ठभूमि और लिखने के तरीके की समानता बहुत ही स्पष्ठ तरीके से देखि जा सकती है। संभवतः उपन्यासकार इस बांग्ला उपन्यास से प्रेरित रहे हों।
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August 7, 2017
The books language is its style-its story telling. Speaking language. It is full of slangs used by people of Mithila area of Bihar.
Apart from it, entire life of human being is captured in it. A complete book. A Hindi Classic.
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May 24, 2020
हिंदी के सर्वश्रेष्ठ उपन्यासों में से एक
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July 30, 2022
बिहार की पृष्ठभूमि पर आधारित बहुत अच्छा उपन्यास।
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March 26, 2023
"The regional novel emphasizes the setting, speech and social structure and customs of a particular locality, not merely as local colour, but as important conditions affecting the temperament of the characters and their ways of thinking feeling and interacting": M. H. Abrams

Have you read the aforestated quotation? Well, ‘Maila Anchal’ fits the bill, according in the quotation’s framework.

The title of the novel is taken from Sumitranandan Pant's poem "Bharat Mata": खेतों में फैला है श्यामल, धूल भरा मैला सा आँचल, गंगा यमुना में आँसू जल, मिट्टी कि प्रतिमा उदासिनी।

In his preface to the novel, Renu says: "It has flowers and thorns; it has dust also rose; it has mud, sandalwood; it has beauty and also ugliness - I could not escape myself from any of them."

The village was renamed as Marygunj after Mary, wife of an English officer named Mr. Martin, who passed away precipitately in a malarial attack due to non-availability of prompt medical treatment. Mr. Martin, as a radiant compliment to the dear departed, allotted land for a malaria centre at Marygunj to avoid any such unfortunate happenings in future.

Despite his finest efforts, his wished-for centre could not materialize for many years.

It was only after independence that his long cherished dream of opening the centre could be fulfilled. Dr. Prashant was appointed as a doctor at the centre.

Marygunj is divided drastically along lines of caste, gender and wealth. There is a Kayasth tola, Rajputs who are in continuous skirmish with the Kayasths, Yadav Toli and Tatma Toli. Each Tola has a commanding leader and the novelist has quick-wittedly brought out the interconnection between these leaders at the micro level and with the nationalist parties at the macro level.

There also exists a relegated group called ‘Santhals’, located at the outskirts of the village. They are treated as interlopers by the protuberant groups of the village.

Marygunj is also intensely affected by politics. The novel presents, how people from numerous groups overlook their interior variances, and joins to revel the happy moments of the independence of India. This vision of a united village is the most extraordinary characteristic of Renu's delineation of village-life in Marygunj.

Maila Aanchal has some very inimitable ways to rejoice memorable moments of life. All content and remarkable occasions are celebrated with the beats of certain kinds of musical instruments atypical to that locality. Drum, digga, mridunga, nagada and jhanjh are the oft-used musical instruments.

In this novel, people occasionally speak a word with similar-sounding, alliterative prefixes such as kar-kachahari, mar- mahajan, far-faujdar, etc.

The language varies from person to person depending on the status of the speakers. Thus, we can say that the novel Maila Aanchal fulfils all the fundamentals meant for a regional novel – ‘anchalik upanyaas’.

To conclude, one can say with a certain degree of assurance that ‘Maila Anchal’ is a post-colonial text which critiques the independent nation by taking an upturned look at its crossbreed modernity.

The vision of a united village is a most remarkable aspect of Renu's portrayal of village-life in Marygunj. While the sky is echoing with resounding slogans-"Mahatma Gandhi ki jai" "Jawaharlal k jai" an outlandish sound comes, partly with the reacting slogan as: "Yeh aazadi jhoothi hai, desh ki janta bhukhi hai". [This autonomy is fallacious, country people are still hungry:]

This stranger is nobody else but conceivably the novelist himself who is unhappy with the tantalizing appearance of freedom where the poor are still oppressed and have no access to justice. He principally points out that Political Liberation has not wiped away their tears.

The narrative throws light on how Renu ridicules the democratic parliamentary system of the new nation called India and shows evidently how these defeated people fail to understand the real meaning of independence itself. They fail to comprehend their new cultural identity.

The process of General Election is unfathomable to them. Nor can they appreciate the meaning of census. Even after the formal decolonization, the tribal life world represents a space outside the nation. Their boundaries, their countries are still very much colonial countries, both in terms of their values and behaviours.

Renu argues that his country is still a colony, both in terms of value and behaviour. Independence did not touch the lives of these subaltern subjects. Decolonization has not reached the poor.
Profile Image for Prabhat  sharma.
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June 6, 2021
Maila Anchal by Phanishwar nath Renu- Hindi Novel- Year of publication – 1954 In Hindi first social novel is Godan by Munshi Prem Chand published in 1936, Second trend setting novel is Maila Anchal. After Premchand’s Godan, Maila Aanchal is regarded as the most significant novel in the Hindi literature tradition. Written in 1954 by Phanishwar Nath Renu, this novel immediately established him as a serious writer in Hindi Literature. The novel is set in the village of Maryganj, Purnea district of Bihar State. Maryganj is on the banks of river Kamala. The novel tells us about the lives of the villagers during the trying times between 1946-48 which saw the Indian independence, partition, assassination of Gandhi and abolition of the land-tenure system. It is the story of Medical doctor named Dr Prashant Banerjee who settles in Maryganj to serve the poor and needy patients from illness. Dr Prashant writes letters to his friend Dr Mamta that though people are poor but they are simple and kind. Kamli daughter of Vishwanath Prasad is a simple girl who is ill. She is treated by Dr Prashant and she recovers. Other characters are Kalicharan, Shiv Shankar Singh, Hargauri singh, Ramanuj who help forward the narrative. Renu gives us a balanced narrative of the social, political and romantic lives of his characters through humorous conversations full of linguistic and colloquial richness. He successfully describes the hierarchy of the caste system and the problems caused by the zamindari system. Known as the first ‘regional’ novel, the story reflects true local characteristics in its characters and descriptions, giving light to regional dialects, idiosyncrasies, colloquialism, folklores and superstitions. Interestingly, the novel also has the reference of a young doctor who took care of the masses at that time. Author has radically shifted the stereotypically prevalent narrative of the Indian villages as rigid and unchanging to a gentler, sensitive and detailed representation with rapid changes towards a modern era. Novel is based on ownership and possession of agricultural land by Zamindars. In Maryganj, ten elders are educated, 15 young men have been educated. Agricultural land is owned by Vishwanath Prasad Malik (he is Tehsildar also), Ramkirpal Singh, Khelawan Yadav. Tehsildar and his compatriots play foul with people. After independence, Vishwanath Prasad leaves Tehsildarship and joins Congress Party. Santhals are tribals and other poor work as agricultural labourers at their farms. The year is 1946, Baldev, Bawan Das, Chunni Gosain etc join Swaraj movement and bring awakening about political rights of people. Soon after independence, the same people become corrupt. Because of shortage of food items, these are rationed. Hindu temple Larasinghdas, Naga Baba, Ramdas become owners of temples and attached lands. They are people with loose character and with women Lakshmi, Rampiyaria and others they keep them as their kept women. Socialist Party leaders bring the corruption of Congress leaders to light. The novel is the story of slowly changing young India. It is a classic novel for all to read.
Profile Image for Manish Patel.
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March 12, 2022
I would consider is as one of the masterpieces of Indian Hindi literature.
This novel has all sorts of flavors- from simplicity to cunningess, from charismatic beauty to brazen ugliness, from grave injustice to solemn righteousness. Nothing is left out.
Based on the lives of people who lived in a small village in Bihar from 1945 to 1948, it describes their trials and tribulations. Though it uses a lot of regional dialect and sometimes appears hard to understand, it is definitely worth reading.
I always wondered why it has been named Maila Aanchal. Now that I recall, I think the term has been used several times over the course of the book and referred to various points in women's life like Lakshmi, Kamli and mother India. But I think the main reference was towards India which has been considered as mother and whose aanchal(decorative part of saree that is kept either over the head or hanging over the shoulder), has been spoiled because of actions of certain people in this society. These people were there before, are present now and will continue to exist in near future too. Despite them, the author wishes(by taking reference of character who is MBBS doctor) that it is worth living our lives to help clean this Aanchal of mother India.
Profile Image for Bikash Dumrakoti.
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July 23, 2024
स्वतन्त्र भारतको विहारको एउटा गाउँ 'मैला आँचल' को केन्द्रमा छ। आफ्नो अभ्यासलाई यस ग्रामीण क्षेत्रमा खर्चने अभिप्रायले झुल्किएको डाक्टर मुखपात्र छ। गाउँलेहरू डाक्टरको उपचार भन्दा ज्योतिष र झाँक्रीमा ज्यादा विश्वास राख्छन् यहाँ। तहसिलदार र जिम्दारहरूको रैतीहरूमाथि दबदबा भारी छ। जातीयता गाउँको प्रत्येक टोलमा भिजेको छ। शिक्षाबाट वञ्चित मस्तिष्कलाई राजनीतिक पार्टीहरू चाहेको आकारमा ढाल्न सफल छन्। प्रेम र वासनाको बिउ साधारण मानिस र सन्न्यासीको आवरण ओढेकाहरूमाझ समान रूपमा फैलिएको छ।
लोक संस्कृतिको महत्त्वपूर्ण स्थान छ उपन्यासमा। तर भाषाको विविधताले प्रयुक्त गीत-संगीत, नृत्य तथा रीतिरिवाज क्लिष्ट छन्। प्रत्येक अध्यायको प्रारम्भमा कोरिएका एब्स्ट्रयाक्ट रेखाचित्र सिङ्गै अध्यायको कथा कहन सक्षम छन्। अपभ्रंश शब्द पात्रहरूका लबजमा मीठा सुनिन्छन्।
व्यक्ति हुँदै सिङ्गो पार्टी, गाउँ, देश, र अन्तर्राष्ट्रिय स्तरमा महात्मा गान्धीप्रतिको आस्था झल्किन्छ उपन्यासमा। लाग्छ, सबैलाई जोडेर राख्ने सूत्र उनै थिए। उनको अस्तमा सबै चुँडिएर छरिन्छ। मैलो मन, दङ्गाफसाद, र भ्रष्टाचारमा सारा उपन्यासको कथा छरिन्छ। यस आञ्चलिक उपन्यासमा वर्णित ग्रामीण भेगको सिमाना नेपालसँग जोडिएको छ। त्यसैले पनि होला, कार्यकर्ता र सोझा जनताका टाउकामा टेकेर राजनीतिक खुड्किलो उक्लिएकाहरू हाम्रै देशका प्रतिनिधिझैँ लाग्छन्।
Profile Image for Animesh Priyadarshi.
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August 8, 2023
आजाद�� के समय के भारत की एक तस्वीर!

“मैला आँचल”, भारत माता के आँचल के एक टुकड़े मेरीगंज की दुनिया में उस समय घट रही ऐतिहासिक घटनाओं का एक साहित्यिक दस्तावेज (काल्पनिक किंतु वास्तविक!?) है। फणीश्वरनाथ रेणु सिर्फ़ इसी उपन्यास की बदौलत (यदि वो और कुछ न भी लिखते परवर्ती जीवन में फिर भी) हिन्दी कथा साहित्य की चोटी पर पहुँच जाते हैं।

“...वेदान्त...भौतिकवाद...सापेक्षवाद...मानवतावाद !...हिंसा से जर्जर प्रकृति रो रही है। व्याध के तीर से जख्मी हिरण-शावक-सी मानवता को पनाह कहाँ मिले ?... हा-हा-हा ! अट्टहास ! व्याधों के अट्टहास से आकाश हिल रहा है। छोटा-सा, नन्हा-सा हिरण हाँफ रहा है। छोटे फेफड़े की तेज धुकधुकी! नहीं-नहीं ! यह अँधेरा नहीं रहेगा। मानवता के पुजारियों की सम्मिलित वाणी गूँजती है-पवित्रा वाणी ! उन्हें प्रकाश मिल गया है। तेजोमय ! क्षत-विक्षत पृथ्वी के घाव पर शीतल चन्दन लेप रहा है। प्रेम और अहिंसा की साधना सफल हो चुकी है। फिर कैसा भय ! विधाता की सृष्टि में मानव ही सबसे बढ़कर शक्तिशाली है। उसको पराजित करना असम्भव है, प्रचंड शक्तिशाली बमों से भी नहीं...पागलो ! आदमी आदमी है, गिनीपिग नहीं।...सबारि ऊपर मानुस सत्य!”
Profile Image for Shekhar Kumar.
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December 23, 2022
मैला आंचल हिंदी साहित्य के इतिहास में प्रेमचंद के गोदान के बाद का श्रेष्ठ आंचलिक उपन्यास है। उत्तर पूर्वी बिहार के पूर्णिया जिले के मेरीगंज के ग्रामीण जीवन को दर्शाता यह उपन्यास भारत के उस हिस्से को पाठक के समक्ष रखता है जहां जात-बिरादरी है, अंधविश्वास है, व्यभिचार है, गरीबी है, रोग है, शोषण आदि है। साथी ही रेणु ने गांव के छोटे-छोटे उत्सव, भजन-कीर्तन, सभा, राजनीति इत्यादि को भी बखूबी दिखाया है। रेणु ने इस उपन्यास के माध्यम से ऐसा चित्र प्रस्तुत करने की कोशिश की है जो पाठक को कहानी से पूरी तरह से जोड़ देता है। भाषा शैली का ऐसा प्रयोग किया है की कहानी पढ़ते पढ़ते पाठक कब उस क्षेत्र में पहुंच जाता है, उसे खुद पता नहीं चलता। फणीश्वरनाथ रेणु ने जीवन के यथार्थ को परत-दर-परत खोलकर पाठक के सामने रख दिया है। वह खुद कहते हैं "इसमें फूल भी हैं शूल भी, धूल भी है, गुलाब भी, कीचड़ भी है, चन्दन भी, सुन्दरता भी है, कुरूपता भी-मैं किसी से दामन बचाकर निकल नहीं पाया।"

धन्यवाद
Profile Image for Bhanupratap Niranjan.
2 reviews
October 1, 2023
This was Renus first novel but one of the best in Hindi literature.
Reality depiction of an Indian village of Bihar in 1940s. An interesting story of the dynamics of the village. As the name suggests it have a feminine vibe but not only focused on Women. Even in those times women were capable of going beyond and making their own journey, they could take their own decisions.
Story is interesting, writer have kept fair share of romance and comic vibe as well. During the story writer develops the character and how the characters actions creates a turmoil in the village but in the end village is settled again but not as it was in the beginning .
In the end, Renu closed the storylines of characters very efficiently, good things happen for few and unfortunate for others. 4/5
(Lot of rural Hindis words, many times ask you to read again)
3 reviews
December 25, 2025
an unflinching portrayal of rural India, exposing the grim realities of gender oppression, superstition, religious hypocrisy, and political manipulation. The novel shows how women suffer sexual and economic exploitation, how blind faith and fear govern everyday life, and how religion often becomes a cover for power and property. Alongside this social decay, Renu captures village politics, ideological conflicts, and the moral rot behind electoral democracy. Interwoven love stories add emotional depth without romanticizing rural life. In scale and seriousness, Maila Aanchal stands as the most significant Hindi novel after Godaan, making it a landmark work that confronts, rather than comforts, the reader
Profile Image for Vishal Sharma.
88 reviews14 followers
September 20, 2021
वास्तविक, मार्मिक, रोचक और जटिल।

कहानी ग्रामीण परिवेश पर आधारित है। कहानी बड़े ही रोचक तरीके से आगे बढ़ती है। इसमें एक कहानी न होकर बहुत सी कहानियां हैं, जो सामानांतर चलती हैं, और आपस में जुडी हुई हैं।

कहानी भारतीय समाज और गांव देहात की बहुत सी सचाई से अवगत कराती है। साथ ही सही और गलत के दर्शन को भी सम्मिलित करती है।

लेखनी बड़ी ही लाजवाब है। मालूम नहीं होता कहानी किसकी चल रही है, परन्तु फिर भी सब समझ आ रही होती है। बस पढ़ते जाइये। एक ख़राब बात शायद यही है कि भाषा बहुत ही देहात की है, जो समझ में नहीं आती। कहानी में बहुत से गीत भी चलते हैं, जो समझ में नहीं आते।

यह उपन्यास अवश्य ही हिंदी साहित्य की अद्भुत धरोहर है। इसे अवश्य पढ़ें। यह आपको कई नए आयाम पे ले जायेगा।
Profile Image for Yashovardhan Sinha.
191 reviews3 followers
February 22, 2024
A beautiful story set in the years leading to Independence and the months thereafter in a small village, Meriganj, in a remote corner of Bihar. The language carries the aroma of earth after the first showers of monsoon. 


One encounters patriotism, politics, caste, hypocrisy, exploitation, sincerity- a whole potpourri of traits through a wide variety of characters. And running through the book the love between an idealistic doctor and the landlord's daughter. 


As Independence dawns, one sees idealism evaporate and hopes belied. But Renu doesn't leave you in the dark. He shows a glimmer of light at the edge of the darkness. 
Profile Image for Pallavi Shukla.
188 reviews3 followers
April 1, 2025
यह कहानी बिहार के पूर्णिया जिले के मेरीगंज गांव में स्थित है, जो कोसी नदी की बाढ़ से प्रभावित है। गांव में एक अस्पताल खुलता है, जिससे गांव के लोगों के जीवन में बदलाव आते हैं। गांव के लोग अंधविश्वासी और जातिगत भेदभाव में डूबे हुए हैं। वे शिक्षा, मानसिकता और बुनियादी सुविधाओं में पिछड़े हुए हैं।

कहानी में तीन मुख्य पात्र हैं- बालदेव, डॉक्टर प्रशांत और दासी लक्ष्मी। बालदेव एक कांग्रेस कार्यकर्ता है, जो जेल भी जा चुका है। लक्ष्मी एक दासी है, जो कम उम्र से ही मठ में शोषण का शिकार होती रही। बालदेव लक्ष्मी की मदद करता है और दोनों के बीच पवित्र प्रेम पनपता है।

डॉक्टर प्रशांत एक अनाथ बच्चा था, जिसे एक आश्रम में शरण मिली। वह डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी करने के बाद विदेश जाने के बजाय अपने देश में ही रहकर पिछड़े गांवों के लोगों की बीमारियों का इलाज करने का फैसला करता है। लेकिन जब वह गांव पहुंचता है, तो उसे पता चलता है कि गांव वालों की असली बीमारी गरीबी और अज्ञानता है। गरीब और विवश किसानों की स्थिति जानवरों से भी बदतर है।

इस उपन्यास के माध्यम से ‘रेणु’ जी ने पूरे भारत के ग्रामीण जीवन को दर्शाने की कोशिश की है। इस उपन्यास की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह बहुत ही सरल और सहज भाषा में लिखा गया है। इसमें शामिल लोकगीत इसे और भी खास बनाते हैं। ये गीत आज के समय में कहीं खो से गए हैं। भारत को समझने के लिए यह उपन्यास बहुत महत्वपूर्ण है।

“इसमें फूल भी हैं शूल भी है, गुलाब भी है, कीचड़ भी है, चन्दन भी सुन्दरता भी है, कुरूपता भी- मैं किसी से दामन बचाकर निकल नहीं पाया”
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March 4, 2025
डॉक्टर, बावनदास , कालिदास जैसे अनोखे पात्रों से भरा ये उपन्यास न केवल राजनीति, जमींदारी, संथाली लोगों का संघर्ष, कमला, लक्ष्मी के माध्यम से स्त्री संघर्ष को उजागर करने के साथ गांव से संबंधित हर समस्या गांव का वातावरण हर एक चीज का सत्यलेखन ही नहीं बल्कि हमें अपने आप को उस गांव का एक पात्र बनकर किताब पढ़ने को मजबूर क���ते है रेणु जी। कहानी का अंत दुख सुख और निराशा आशा सभी प्रकार के भावनाओं से भरा है,।
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