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कंकाल Kankaal

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जयशंकर प्रसाद बहुआयामी रचनाकार थे। जिनकी लेखन और रंगमंच दोनों पर अच्छी पकड़ थी। कवि, नाटककार, कहानीकार होने के साथ-साथ वह उच्चकोटि के उपन्यासकार भी थे। जयशंकर प्रसाद ने तीन उपन्यास लिखे, तितली, कंकाल और इरावती। अंतिम उपन्यास इरावती उनके निधन के कारण अधूरा रह गया। कंकाल में लेखक ने हिन्दू धर्म के ठेकेदारों की सच्चाई को उद्घाटित किया है। सत्य और मोक्ष की खोज में लगे धर्म के अनुयायी कैसे अपनी वासना में खुद फँस जाते हैं और औरों को इसका शिकार बनाते हैं। धार्मिक स्थानों के बंद दरवाज़ों के पीछे काम और वासना का यह खेल कैसे लोगों को, विशेषकर मासूम और निर्दोष लड़कियों की जि़ंदगी को तबाह कर देता है, इन सबका बहुत ही मार्मिक ताना-बाना बुना गया है इस उपन्यास में।

178 pages, Paperback

Published January 1, 2018

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About the author

Jaishankar Prasad

208 books13 followers

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Community Reviews

5 stars
134 (41%)
4 stars
92 (28%)
3 stars
59 (18%)
2 stars
26 (8%)
1 star
12 (3%)
Displaying 1 - 23 of 23 reviews
Profile Image for Sudhanshu Raj Singh.
19 reviews5 followers
August 19, 2017
This is a very weak story full of outrageous coincidences and predictable plot points. There is no build up of characters. Their arcs are too dramatic to be anywhere close to reality. Ornate language and unfettered criticism of society and religion are only saviours of this book.
Profile Image for Deepak Pitaliya.
80 reviews10 followers
March 16, 2017
The only good thing about the book is its language. Story is very weak and it is difficult to connect with characters and India of that time.
Profile Image for Ankita Jain.
Author 37 books61 followers
April 10, 2019
एक किताब जिसके बारे में लिखना चाहती हूँ लेकिन लिखने की सोच ही ना जाने कितने ख़यालों के पैबंद बना देती है कि कोई शब्द बाहर ही नहीं आ पाता।
Profile Image for Satendra Thakur.
32 reviews2 followers
May 9, 2021
Gets boring at times as it is filled with random coincidences. It shows the social conditions prevailing in the country during that time, but (maybe) complex relationship web could've been avoided.
Profile Image for Priyanka Lal.
Author 5 books11 followers
February 7, 2017
So much to learn from in terms of writing, plotting etc
Profile Image for Aadya Dubey.
289 reviews29 followers
March 1, 2021
How do you even rate a book like this?

Surprisingly feminist but at its own convenience?

Par ek baat toh hai. 1928, jab yeh kitaab likhi gayi thi, tabse aaj tak na yeh desh badla hai, na samaaj aur naa dharm. Chaahe jo bhi dharm ho.

Atheists wouldn't be able to stand this book, neither would extreme right wingers. Kaafi questions par intellectual discussions aaj bhi chal hi rahe hai, bas discussions karne waale aaj kal anti-nationals hai.
Profile Image for Arun Mishra.
41 reviews
January 14, 2021
छायावाद के चार स्तंभों में से एक और महाकव्य "कामायनी" के रचयिता श्री जयशंकर प्रसाद जी ने अपने जीवनकाल में गिनती के उपन्यास रचे, यह उपन्यास उनकी पहली ओपन्यासिक कृति थी और सन 1930 ई में प्रकाशित हुई थी। इस उपन्यास के माध्यम से लेखक ने उस युग के भारत में फ़ैल रहे सामाजिक, जातिगत आडंबरों पर तीखा प्रहार किया है। लेखक ने उस युग के बहुत से ज्वलंत मुद्दों को कहानी के पात्रों, कथानक आदि का सहारा लेकर पाठक के सामने रखा है।

कहानी के पात्र :- कहानी बहुत लंबी है और इसमें ढेर सारे पात्र हैं। कहानी के पात्र समाज के हर वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं। कहानी में जहाँ निरंजांदास जैसे ढोंगी साधु हैं जो धर्म और शुद्धता की आड में अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं, साधु होकर भी जिनका स्वयं की इन्द्रियों पर कोई वश नहीं, वहीं कृष्णशरण जैसे धर्मात्मा योगी भी हैं जो मानते हैं कि मानव सेवा से बढ़कर कोई धर्म नहीं। श्रीचन्द्र, किशोरी जैसे अमीर युगल जोड़े भी हैं जो धन रहते हुए भी सुखी नहीं, अपने पथ से भ्रष्ट हो जाते हैं और तनिक भी मलाल नहीं करते। तारा जैसी अबला लडकी है जिसने सिवाय दुख के जीवन भर कुछ नहीं देखा। सब त्याग कर भी उसे सुख की प्राप्ति नहीं होती , वहीं घंटी जैसी अबला लड़की को अपनी खोयी हुई माँ और जीवन जीने का एक दूसरा मौका भी मिलता है। मंगलदेव जैसा पात्र है जिसे अपनी गलतियों को सुधारने का अवसर भी मिलता है और एक नई ज़िंदगी शुरु करने का भी। वहीं, विजय जैसे पात्र को बिना कोई बड़ी भूल किये अत्यन्त कठोर जीवन गुजारने का अभिशाप मिलता है । इसी तरह बाथम का पात्र भी है जो धर्म से ईसाई है और किसी भी हद तक जाकर अपने धर्म का प्रचार और भोले भाले लोगों को धर्मांतरण के लिए प्रेरित करता है। इसी तरह लतिका, सुशीला, गाला आदि स्त्री पात्र हैं जो पुरुषों के ऊपर आश्रित हैं और अपने अस्तित्व को ढूँढते रहते हैं। कहानी उत्तर भारत के महत्वूर्ण धार्मिक स्थल जैसे काशी, मथुरा, हरिद्वार, वृंदावन आदि में संपन्न होती है।

कथानक पर चर्चा :- कहानी हरिद्वार के पवित्र घाट से शुरु होती है जब युगल जोड़ी श्रीचन्द्र और किशोरी संतान प्राप्ति का वर मांगने एक पहुँचे हुए साधु मुनि के पास आते हैं। गुरु निरंजनदास अपनी बालसखा किशोरी को पहचान लेते हैं। गुरु की तपस्या भंग हो जाती है और अनैतिक संबंध स्थापित करके किशोरी के पुत्र विजय का जन्म होता है। धर्म और कर्मकांड के नामपर उस वक्त किस तरह का ढोंग फैला हुआ था, ये हमारे सामने प्रकट होता है। अंधविश्वास और पुत्र मोह की आड़ में कितने ही अनैतिक धंधे चल रहे थे l
दूसरी ओर तारा की कहानी है जो तीर्थ स्थलों पर रहने वाले गिरोह के हत्थे चढ़ जाती है, माता पिता का साथ छूट जाता है और वैश्यावृति के धंधे में धकेल दी जाती है। मंगल जो एक स्वयंसेवक है उसे इस नर्क से बचा लेता है लेकिन समाज के डर से तारा के पिता उसे वापस से स्वीकार नहीं करते हैं। मंगल आर्य समाजी बन जाता है और तारा के कल्याण को अपना लक्ष्य बना लेता है। दोनों में प्रेम पनपता है और शादी की तैयारियां भी की जाती हैं। नियति को यद्यपि कुछ और मंजूर होता है, मंगल के हाथ पैर फूल जाते हैं और वो सब कुछ छोड़कर भाग जाता है। इधर तारा अनेक कष्ट सहकर एक पुत्र को जन्म देती है, उसे त्याग कर वो ख़ुदकुशी करने का विफल प्रयास भी करती है और अन्ततः भीख मांगते हुए काशी नगरी में किशोरी के द्वार पर आ खड़ी होती है। किशोरी का पुत्र विजय मन ही मन घर के काम करने वाली यमुना (तारा का बदला हुआ नाम) से प्रेम करने लग जाता है। इधर विधि का विधान भी मंगल को काशी के उसी स्कूल में दाखिला दिला देता है जिसमें विजय पढ़ता है। दोनों गाढ़े दोस्त बन जाते हैं और एक समय मंगल अपना ठिकाना विजय का घर ही बना लेता है। मंगल और यमुना का आमना सामना भी होता है परंतु दोनों एक दूसरे के भेद प्रकट नहीं करते हैं। इधर, विजय बाबू का प्रणय निवेदन यमुना अस्वीकार कर देती है जिससे वो आहत होते हैं।

कुछ ही समय बाद विजय बाबू को वृंदावन जाकर एक बाल विधवा "घंटी" मिल जाती है जिसके साथ उनका प्रेम प्रसंग चालू हो जाता है। बाल विधवाओं की दुर्दशा का विषय भी बख़ूबी उकेरा है लेखक ने। काशी, मथुरा, वृंदावन आदि में ये बाल विधवाएँ घर वालों द्वारा त्याग दी जाती थीं और यहाँ का कुलीन समाज इनका खूब शोषण करता था। विधवा पुनर्विवाह की स्वीकृति ना होने के कारण कितनी ही अबला औरतें अत्यधिक कष्टप्रद जीवन जीने को विवश थीं। विजय का अपनी माता किशोरी और निरंजन दास से धर्म के विभिन्न विषयों पर गहरा मतभेद रहता है। विजय युवा है और मानता है कि समयानुसार हिन्दू धर्म के अंदर बहुत सी कुरीतियों ने अपना घर बना लिया है। इसका कारण हमारी सदियों पुरानी जाति प्रथा और मनुष्य का मनुष्य से बेहतर होने की आकांक्षा ही है। मंगल ने भी मथुरा में एक आश्रम खोलकर निर्धन बच्चों को पढ़ाने का कार्यक्रम चालू कर दिया है और भिक्षा लेने किशोरी के द्वार आ पहुंचता है। किशोरी से मतभेद के कारण विजय और घंटी घर छोड़कर निकल जाते हैं और संयोगवश एक इसाई व्यापारी बाथम के यहां शरण पाते हैं। बाथम की संगिनी लतिका मूल रूप से हिन्दू होती है पर उसे ये कहकर ईसाइयत कबूल करवायी जाती है कि इसाई धर्म में औरतें ज्यादा स्वंतत्र हैं और उनके अधिकार भी सुरक्षित हैं। कहानी में बाथम के किरदार के माध्यम से लेखक ने बताया है कि किस प्रकार लालची लोग भोले मनुष्यों को बहला फुसलाकर उनका धर्मांतरण करने में लगे थे। बाथम और गिरिजाघर का पादरी लोगों से कहते हैं कि इसा��� बन जाओगे तो मसीह तुम्हारे सारे गुनाह माफ करेगा। इसपर एक बार एक गाँव वाला उठकर बोल पड़ा कि हमारे हिन्दू धर्म में तो ऐसे लफड़े हैं ही नहीं, यहां तो जो जैसा करता है, वो वैसा भरता है। सो, यहां अच्छे कर्म की ही प्रधानता है। निरुत्तर होकर बाथम और पादरी दूसरी तरफ चल पड़ते हैं। यह सब इसलिए संभव हुआ था क्योंकि हिन्दू धर्म में उस काल में इतनी सड़ांध फ़ैल गई थी जिससे निजात पाना अत्यंत आवश्यकत था। समाज में फेले हुए अंधविश्वास और विद्रूपताओं पर भी लेखक ने तीखा व्यंग्य किया है। उस समय के समाज में स्त्रियों की दुर्दशा पर भी लेखक ने बहुत कुछ लिखा है l फ़िर चाहे वो स्त्री पात्रों के बीच के संवाद हों या फ़िर स्त्री पात्रों के अन्य पात्रों से वार्तालाप, शिकायत आदि। इधर अबला यमुना(तारा) को कृष्णशरण महाराज के आश्रम में आश्रय मिल जाता है। मंगलदेव अब गूजर बालकों को शिक्षित कर रहा है और उसे गाला नामक एक यवनी गूजर बालिका का सहयोग भी मिलता है। धर्म में फैली विसंगतियों का निवारण करने और दबे कुचलों की सहायता हेतु मंगल भारत संघ की भी स्थापना करता है। इस संघ के माध्यम से हिन्दू धर्म के प्राचीन सिद्धांतों का प्रचार प्रसार भी किया जाता है। अन्य सभी पात्रों का जीवन किस दिशा में अग्रसर होता है, ये रहस्य आप उपन्यास पढ़कर खत्म कर सकते हैं।

लेखक की भाषा में तत्सम शब्दों की भरमार है। कहानी की भाषा अत्यंत प्रावाहमयी है । इतने सारे पात्रों और जगहों में घटने वाले घटनाक्रम के बावजूद पाठक ऊबता या कंफ्यूज नहीं होता है। मुझे कहानी में पैदा हुए इत्तेफाक कई बार ज़रा काल्पनिक से लगे, जैसे पात्रों का एक दूसरे से एक ही जगह पर मिलना , एक दूसरे के साथ उनके परस्पर संबंध इत्यादि। कुछेक घटनाएं ऐसी थी जिन की वास्तविकता पर यकीन करना भी ज़रा मुश्किल लगा। उपन्यास का शीर्षक "कंकाल" रखने का कारण मुझे अंत तक कचोटता रहा और मेरी समझ के मुताबिक हमारे समाज की ओर इशारा है जो पुराने रीति रिवाजों की बेड़ियों में फंसकर ढ़ांचा (कंकाल) मात्र ही रह गया है। यह उपन्यास धर्म, समाज, स्त्री विमर्श आदि विषयों में रुचि रखने वाले मित्रों के लिए जरूर पढ़ी जाने लायक किताब है।

- अरुण मिश्रा
Profile Image for Sankalp.
3 reviews
July 12, 2017
Great work. Provides an insight on the reality of Indian society. Authors good understanding of human psyche is also evident in this work. A must read. Writing is so gripping it can make you visualise and actually feel the soul of characters. 5 stars.
Profile Image for Sais Shishir.
66 reviews2 followers
August 8, 2017
Some good arguements about social reforms but story itself is too overloaded with coincidents to feel serious enough. Kankal appears great at times because of the arguments but then an uber coincident comes up again ruining the build up.
34 reviews
May 17, 2025
जयशंकर प्रसाद का उपन्यास ‘कंकाल’ हिंदी साहित्य की एक ऐसी रचना है जो अपने समय के समाज को एक स्पष्ट और निर्भीक दृष्टि से देखती है। यह कृति धर्म, नैतिकता और स्त्री जीवन से जुड़े उन प्रश्नों को उठाती है जिन्हें अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है। तीर्थस्थलों की पवित्र भूमि को केंद्र में रखकर प्रसाद ने दिखाया है कि जब धर्म आडंबर में बदल जाता है, तब वह शोषण का माध्यम बन जाता है।

उपन्यास का शीर्षक ‘कंकाल’ प्रतीक है उस समाज का, जो बाहर से जीवंत और धर्मपरायण दिखाई देता है, पर भीतर से खोखला और संवेदनहीन हो चुका है। यह खोखलापन विशेषकर उस समय प्रकट होता है जब स्त्रियों के साथ अन्याय होता है और समाज उसे धर्म की आड़ में स्वीकार कर लेता है।

कथानक में निरंजन नामक एक साधु है, जो अपने बचपन की मित्र किशोरी से जुड़ा होता है। किशोरी, एक ऐसी नारी पात्र है जो समाज द्वारा त्यक्त की गई है, परंतु भीतर से वह भावनाओं और आत्मबल से परिपूर्ण है। वह भारतीय नारी की उस छवि को प्रस्तुत करती है जो अपने मन की पीड़ा को शब्दों में नहीं कह पाती, पर अपने आचरण से बहुत कुछ कह जाती है। विजय और तारा के माध्यम से प्रेम, विवाह और सामाजिक स्वीकृति जैसे विषयों पर विचार किया गया है, जो इस कथा को और अधिक मानवीय बनाते हैं।

प्रसाद की लेखन शैली में इस उपन्यास में एक खास तरह की सरलता और प्रवाह है, जो उनके नाटकों की गूढ़ भाषा की तुलना में अधिक सहज है। उन्होंने व्यंग्य और यथार्थ का सहारा लेकर समाज के दिखावे, झूठे गौरव और पाखंड को सामने रखा है। यह शैली भले ही प्रसाद की अन्य रचनाओं से भिन्न हो, लेकिन यथार्थ को स्पष्ट रूप से कहने के लिए यह रूप अत्यंत प्रभावी बन जाता है।

यह उपन्यास पढ़ते हुए पाठक केवल कथा में नहीं, बल्कि समाज के अंदर झाँकता है उस अंधेरे में जहाँ धर्म का मुखौटा लगाकर शोषण किया जाता है, जहाँ स्त्री की वेदना को उसकी नियति मान लिया जाता है। कंकाल एक मौन लेकिन सशक्त प्रतिरोध है उस व्यवस्था के विरुद्ध, जो स्त्री को केवल सहनशीलता और त्याग की प्रतिमूर्ति मानती है।

यह रचना न केवल साहित्यिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी विचारणीय है। यह पाठक को झकझोरती है, सोचने पर मजबूर करती है और उस समय के यथार्थ को सामने लाकर एक सवाल छोड़ जाती है क्या हमारा समाज सचमुच उतना धार्मिक और नैतिक है, जितना वह स्वयं को दिखाता है?
Profile Image for Divya Pal.
601 reviews3 followers
January 14, 2023
James Bond के रचनाकार Ian Flaming ने लिखा था
Once is happenstance. Twice is coincidence. Three times is enemy action
इस उपन्यास के संदर्भ में फ्लेमिंग के कथन में यह और जोड़ूंगा: Four times is divine intervention, and any more is a novelist bereft of ideas. यद्यपि कथा रोचक है और समाज की त्रुटियों व धार्मिक गुरुओं का पाखंड और आडंबर दर्शाती है, परन्तु इस जटिल व उलझा हुआ आख्यान में इतने अधिक संयोग होते हैं पात्रों के जीवन में, वह अस्वाभाविक लगता है।

लेखक के शुद्ध हिंदी का प्रयोग अति मनभावन है। कुछ उदाहरण
खरस्रोता जाह्नवी की शीतल धारा उस पावन प्रदेश को अपने कल-नाद से गुंजरित करती है।

... सुन्दर शिलाखंड, रमणीय लता-विदान, विशाल वृक्षों का मधुर छाया, अनेक प्रकार के पक्षियों का कोमल कलरव वहाँ एक अद्भुत शांति का सृजन करता है। आरण्यक-पाठ के उपयुक्त स्थान हैं।

रात बीत चली, उषा का आलोक प्राची में फैल रहा था। उसने खिड़की से झांक के देखा, तो उपवन में चहल-पहल थी। जूही की प्यालियों में मकरंद-मदिरा पीकर मधुपों की टोलियाँ लड़खड़ा रहीं थीं, और दक्षिण पवन मौलश्री के फूलों की कौड़ियां फ़ेंक रहा था। कमर से झुकी अलबेली बेलियाँ नाच रहीं थीं।

उसकी छाती में मधु-विहीन मधुचक्र-सा एक नीरस कलेजा था, जिसमे वेदना की ममाछियों की भन्नाहट थी।

मरकन्द से लदा हुआ मरुत चन्द्रिका-चूर्ण के साथ सौरभ-राशि बिखेर देता था।

वह यौवन, धीवर के लहरीले जाल में फंसे हुए स्निग्ध मत्स्य सा तड़फड़ाने वाला यौवन, आसान से दबा हुआ पंचवर्षीय चपल तुरंग के सामने पृथ्वी को कुरेदने वाला त्वरापूर्ण यौवन, अधिक न सम्हल सका.
सुन्दर भाषा के लिए ���ी यह पुस्तक अमूल्य है।
8 reviews
August 11, 2021
This books speaks about a l0t of things. A heart and strong women, men society, love, mother love and many other things.
At first it takes few pages to connect all the character but after those you will not be able to stop yourself. This shows how the society did not accept the women who fell in love and believed a man, not even his own family.
4 reviews
July 6, 2024
I think story is precisely defining the society norms, how they change based on social status or capability of person. Although story lacks continuity and sometimes it feels that we are reading another story.
Profile Image for Kshitij.
3 reviews
August 1, 2018
Good book

Tells a lot about life, how life takes turn and how your decisions can trouble you in your life. Nice one.
Profile Image for Deepak Rao.
122 reviews26 followers
May 31, 2020
A failed audible experiment. I just couldn't connect to the book though I can't really place the blame. One thing is sure that I am not going to read another book on audible.
115 reviews7 followers
June 12, 2021
Story could have been more interesting if the writer had not made characters more complex. They were mixed up and didn't go well.
1 review
November 2, 2021
अद्भुत

कहानी जो सारे संयोगों को सहज ही मानने को विवश कर देती है क्योंकि इसका हर भाग अर्थपूर्ण है । हिंदी पढने का सुख ऐसी ही रचनाओं से मिलता है।
Profile Image for Prince Raj.
531 reviews21 followers
October 5, 2020
कुछ भेद ऐसे होते है जिन्हे भेद ही रहने देने चाहिए, आप क्या कहते है में सही कहा रहा हूं ना ।
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एक सफ़र उपन्यास संग
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उपन्यास :- कंकाल
लेखक: - जयशंकर प्रसाद
प्रारूप :- पुस्तक
पृष्ठ : - 215
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जयशंकर प्रशाद की यह उपन्यास उनकी लिखी सभी उपन्यास में अत्याधिक लोकप्रिय है ।

हिंदी उपन्यासों में अधिकतर लेखकों ने समाज को नए राह दिखाने के लिखा है और यह उपन्यास भी समाज की नीचता और उसकी वास्तविकता रूप को दिखलाती है जो उस समय थे और कहीं ना कहीं आज भी है ।

इस उपन्यास की कहानी मुख्यत: समाज की अज्ञानता और महिलाओं के जीवन पे आधारित है जो हमें सोचने पे मजबूर कर देती है क्या हम सच में ऐसे हुआ करते थे और है ।

सभी पात्र कहीं ना कहीं एक जगह मिलते है और इस समाज की धारणा और नीचता को सेहन कर जीते है ।

एक कहानी जहां खत्म होती है वोही से दूसरी शुरू होती है और फिर मिल जाती है उसी कहानी से जहां वो खत्म हो जाती है और कहानी का अभिन्न अंस बन जाती है ।

अगर आप हिंदी भाषी है और हिंदी उपन्यासों से आपको प्रेम है तो आप ये उपन्यास जरूर से जरूर पढ़िए ये आपको समाज की कुछ अभिन्न भाग से आपको अवगत कराएंगे ।

कैसे कोई व्यक्ति धन का लोभ, इज्जत की भूख से लोगों का जीवन नष्ट करते है ये उपन्यास आपको बखूबी उस से अवगत कराने में सक्षम है ऐसा मुझे लगता है ।

👉👉झलकियां👈👈

कहानी शुरू होती है किशोरी और श्रीचंद से को एक साधु से मिलने जाते है ताकि उन्हें संतान सुख का आशीर्वाद पाने के लिए क्योंकि वो साधु सिद्धि प्राप्त है ।

साधु उनका परिचय पूछता है और जैसे ही किशोरी का नाम सुनता है वो अचंभित हो जाता है ।

एक और यमुना अपनी करुणा और एक जीवन को त्याग दूसरा जीवन जी रही है जो उसे मंगल देव के द्वारा मिला था पर उसने भी तारा जो चांद से खूबसूरत और चंचल थी उसे यमुना बन ने पे मजबूर कर दिया ।

घंटी और मंगल देव दोनों बचपन में ही अपनी अपनी मां से अलग हो गए थे अब एक विधवा हो गई है और दूसरा ज्ञान प्राप्त करने को आतुर है ।

विजय किशोरी का पुत्र है जो साधु के आशीर्वाद से हुआ था समाज और अपने आप से व्यंग कर रहा है ।

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राही हूं किताबों के दुनिया में जिंदगी बसर कर रहा हूं ।
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आंनद से पढ़े और पढ़ाए
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Displaying 1 - 23 of 23 reviews

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