ख़ुशी ख़ुशी घर से निकली छबीली और उसकी बेटी मोनी को क्या पता था कि जब वो लौटकर घर को आएँगी तब तक उनका सब कुछ उनसे छिन चुका होगा? कोई उनके ही गाँव का, उनकी ही पहचान का उनके साथ दरिंदगी कर देगा? दोनों को क्या पता था कि माँ के सामने बेटी को और बेटी के सामने माँ को नोंच खएगा? कुछ और करने गयीं लेकिन जब लौटीं तो कुछ और हो गया. ख़ुशी की खबर तो मिली लेकिन इस दरिंदगी के बाद से उसका ध्यान तक मन में न आता था. छबीली तो घर से गयी थी कि अपने मायके से अपनी बेटी की शादी के लिए कुछ मदद मांग लेगी. मदद तो मिली लेकिन रास्ते में कुछ ऐसा हुआ कि सारा अरमान ही बिखर गया. मोनी को तो कोई अपने घर की बहू बनाने तक को तैयार न था. क्योंकि उसका बलात्कार हो गया था. सोच थी और है भी कि ऐसे लडकी को कौन घर में लाये जिसका बलात्कार हो चुका है. और वो बिंदी जो अभी जूनियर स्कूल में पढ़ती थी? उसे तो सपने में भी इस बात का आभास न था कि चंद ही दिनों में उसकी जिन्दगी अर्श से फर्श पर पढ़ी सिसक रही होगी. एक तूफानी हवा का झोंका आएगा और उसकी जिन्दगी मिटटी हो जाएगी. कोई बाप की उम्र का आदमी, जो खुद भी बिंदी की उम्र की लडकी का बाद था. वो उसके साथ ऐसी दरिंदगी कर बैठेगा? मोहल्ले की लड़कियां उसके साथ खेलने न आयेंगी क्योंकि उसके साथ दरिंदगी हो चुकी है. फिर वो छोटी सी उम्र में ही ब्याह दी जाएगी. सारे सपने और खेलने के दिनों में वो दो बच्चों की माँ बन जाएगी. जबकि अभी तो वो खुद एक बच्ची थी. ये सब हुआ उस हैवान की वजह से जो उसकी जिन्दगी को बड़े आराम से मसल कर चला गया. क्या करतीं ये लड़कियां? जो होता रहा उसे सहती चली गयीं. मानो उनके नसीब में ये सब लिखा था. वे तो इसी को अपना नसीब मान बैठीं थी.