निदा फ़ाज़ली उन दिनों से हिन्दी पाठकों के प्रिय हैं, जिन दिनों हिन्दी के पाठक मीर, ग़ालिब, इकबाल फ़िराक़, आदि के अलावा शायद ही किसी नये उर्दू शायर को जानते हों। आठवें दशक के आरम्भ में ही उनके अनेक शेर हिन्दी की लाखों की संख्या में छपने वाली पत्रिकाओं धर्मयुग, सारिका आदि के माध्यम से हिन्दी पाठकों के बीच लोकप्रिय हो चुके थे और अधिकांश हिन्दी पाठक उन्हें हिन्दी का ही कवि समझते थे। 'दुनिया जिसे कहते हैं', में उनकी प्रसिद्ध और प्रतिनिधि ग़ज़लों और नज़्मों को शामिल किया गया है। बहुत-सी रचनाएँ हिन्दी के पाठकों को पहली बार पढ़ने को मिलेंगी। प्रयास किया गया है कि उनकी श्रेष्ठ रचनाओं का एक प्रामाणिक संकलन देवनागरी में सामने आए।
"दुनिया जिसे कहते हैं" निदा फ़ाज़ली की ग़ज़लें, नज़्में, अशआर, दोहे और फ़िल्मी नग्मों का संकलन है। निदा फ़ाज़ली के लेखन की अलग ही पहचान है - वो खरा सच बोलते हैं, जिसको पसंद आता है वो उनका कायल हो जाता है और जिसको पसंद नहीं आता वो भी सोचने को मजबूर हो उठता है। निदा फ़ाज़ली ने मकान, परिंदे, किसान, खेत, धरती, आस्मां, भगवान्, अल्लाह, नदी, बादल, सफर, दुनिया इत्यादि सभी विषयों को अलग नज़रिये से देखा और कागज़ पर उतारा है। "फासला हर पत्थर को चाँद बना देता है" - जो चाँद को पत्थर कह दे, ऐसी सोच को इज़ाद करने के लिए काफी तजुर्बा चाहिए। "हसने लगे हैं दर्द, चमकने लगे हैं गम, बाजार बन के निकले तो बिकने लगे हैं हम" - मानवीय संवेदनाओं पर भी उनकी लिखाई अतुलनीय है। "सीधा-साधा डाकिया, जादू करे महान, एक ही थैले में भरे, आंसू और मुस्कान" - जीवन की रोजमर्रा और आसपास की घटनाओं को अलग ही चश्मे से देखा है। "पहले पूरा मोहल्ला एक आँगन में समा जाता था पर आज लोग काम पड़ गए हैं", "पहले कच्ची छतों पे एक घर से दुसरे घर लाँघ कर जाया जा सकता था पर आज छतों पर ईंटों की सीमाएं बन गयी हैं", "ताला, चाबी, चटखनी, दरवाज़ा, दीवार एक दूजे के खौफ से, बना है यह संसार" - बदलते वक़्त के साथ बदलते परिवेश को भी समझा है
निदा फ़ाज़ली की कई सरंचनाएं फिल्मों के गानों में भी संकलित हुईं। सरफ़रोश फिल्म का गाना - "होशवालों को खबर क्या बेखुदी क्या चीज़ है, इश्क़ कीजिये फिर समझिये, ज़िन्दगी क्या चीज़ है"(https://www.youtube.com/watch?v=hZuwe...) काफी मशहूर है। चाहत फिल्म का गाना - "दिल की तन्हाई को आवाज़ बना लेते हैं, दर्द जब हद से गुज़रता है तो गा लेते हैं"(https://www.youtube.com/watch?v=8mwei...) भी निदा फ़ाज़ली का लिखा हुआ है।
जैसे हर कवि की कुछ रचनाएँ काफी प्रसिद्ध होती हैं और कुछ औसतन होती हैं, वैसे ही इस संकलन में शुरुआत में उनकी प्रसिद्ध ग़ज़लों का संकलन है। थोड़े समय बाद मुझे कुछ ग़ज़लें, दोहे और नज़्म नीरस से लगे पर यह मेरी निजी राय है।