जोरावर सिंह वर्मा एक सफ़ेदपोश अपराधी था। जब वो अचानक देवराज चौहान और जगमोहन के कमरे में आया तो दोनों का हैरत में पड़ना लाजमी था। वो उन दोनों को एक काम देना चाहता था। जयप्रकाश नायक, एक सेना से रिटायर्ड अफसर था, जो फिलहाल क्लर्क का काम करता था। उसके पास एक घड़ी थी जिसके पीछे जोरावर पड़ा था। वो कई बार कोशिश कर चुका था लेकिन जयप्रकाश उसे हमेशा गच्चा देकर चला जाता था। देवराज को जोरावर के लिए वही घड़ी लानी थी। इसके एवज में देवराज को 5 लाख मिलने थे। आखिर उस घड़ी में ऐसा क्या था ? क्या देवराज काम के लिए राजी हुआ?
एक मनोरंजक उपन्यास। कहानी पठनीय है और तेज रफ़्तार से भागती है। हाँ, थोड़ी बहुत बातें ऐसी है जो मुझे खटकी थी लेकिन वो इतनी बड़ी नहीं है कि उपन्यास के एंटरटेनमेंट कोशेंट में ज्यादा कमी लायें। मेरे हिसाब से तो एक बार पढ़ा जा सकता है। मेरे विस्तृत विचार आप मेरे ब्लॉग पर निम्न लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं : जान के दुश्मन