मां के दिल में सेकड़ो बाण लग गये, जैसे बाणो की शैय्या पर सोये, महाभारत के पितामह भिष्म, हर बाण की चूभन से उत्पन्न दर्द की अनुभूती कर प्रलाप करते हुए, स्वयं को दोषि करार दे रहें थे, कि यदि मैं एक बार मना कर देता तो युद्ध यह नहीं होता। मां को विद्या की हर बात चूभती थी, आज वह समझ गई थी कि, विद्या की शादी, हमारी बहुत बड़ी गलती थी। पिता की शान अभी तक तन कर बैठी थी मगर आज उसे भी शर्म से झुकना पड़ा।