'अभी बिल्कुल अभी' केदारनाथ सिंह का प्रथम काव्य-संकलन है जो सन् 1960 में प्रकाशित हुआ था यानी आज से कोई पचपन वर्ष पहले। यह वह समय था जब 'नई कविता' का दौर समाप्त हो रहा था और उसके बाद की कविता की आहटें सुनाई पडऩे लगी थीं। इस संग्रह की कुछ कविताओं-जैसे 'रचना की आधी रात' तथा 'हम जो सोचते हैं' में उसकी धीमी-सी प्रतिध्वनि को सुना जा सकता है। इस कवि के पूरे विकास-क्रम को जानने के लिए इस कृति का दस्तावेज़ी महत्त्व है। पर केवल इसलिए नहीं-बल्कि इसलिए भी कि कविताओं से थोड़ा हटकर किस तरह यह कवि यह एक नए काव्य-प्रस्थान की ओर अग्रसर हो रहा था। लम्बे समय तक बाज़ार में अनुपलब्ध रहने के बाद इस कृति का पुनप्र्रकाशन निश्चय ही समकालीन कविता के पाठकों और शोधार्थियों के बीच एक अभाव की पूर्ति करेगा और शायद यह आधुनिक काव्येतिहास की उस सन्धि-बेला में झाँकने के लिए एक उत्तेजना भी दे।
Slightly difficult to understand than “Yaha se dekho”. Nevertheless, gave words to undefined feelings in me. Absolutely beautiful. I understood little of some poems but the overall “bhav” (I don’t know what English word can replace this one) is very moving.