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तुम मेरी जान हो रज़िया भी | Tum Meri Jaan Ho Raziya Bi

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Poetry

80 pages, Paperback

Published October 24, 2018

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About the author

Piyush Mishra

33 books174 followers

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Community Reviews

5 stars
17 (24%)
4 stars
24 (34%)
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22 (31%)
2 stars
5 (7%)
1 star
2 (2%)
Displaying 1 - 7 of 7 reviews
Profile Image for Arjit Anand.
31 reviews4 followers
July 14, 2021
The master of words that Piyush Mishra is, he says complicated things so simply and drops truth bombs in every other lines. Loved it. Will re read it many a times
Profile Image for Reading Diet.
27 reviews
December 31, 2023
पीयूष जी को जिन्होंने पहले सुना है उन्हें यकीनन मालूम होगा की वे अपने वाक्यों में कई सारे उर्दू शब्द इस्तेमाल करते है। यहाँ पर भी आपको यह बात देखने को मिलेगी। यह कविताये हिन्दी और उर्दू का मिश्रण है। हालाकि मुजे उर्दू की ज़्यादा समझ नहीं है। मेरा मानना है की यहाँ पर किसी एक भाषा की शुद्धता से ज़्यादा कवि की भावनाओं और अल्फ़ाज़ों पे ध्यान केंद्रित होना चाहिए।

कहने को तो हम इसे कविताये कह सकते है पर मुजे लगता है यह कविताओ के लहजे में बयान की गई कहानीया है। ज़्यादातर कविताये सभ्य समाज में पनपते दूषणों जैसे की राग, द्वेष, कटुता, दंभ, मिथ्याभिमान पर है। यह सब कविताये हमारे सभ्य समाज को आईना दिखाती है। यहाँ तत्वज्ञान और ईश्वर के साक्षात्कार पर भी नोंधपात्र कविताये आपको देखने को मिल जाएगी।

पता नहीं क्यों, पर में इस कविताओं को सिर्फ़ पढ़ नहीं रहा था पर मन ही मन इसे पीयूष जी के लहेज़े में गुनगुना रहा था। शायद मेरे दिलो-दिमाग़ में पीयूष जी और उनकी बातें बयान करने की रीत पहले से बड़ी अच्छी तरह से अंकित है।

मेरा एक निज़ी मंतव्य यह भी है की इन कविताओं में मुजे मंटो दिखे है। बातें इतनी तेज तर्रार जो हमारा सभ्य समाज बोलने या स्वीकारने की हिम्मत नहीं करता पर जानते सब है।

तक़रीबन यह एसा है की खुले में संभोग का नाम मात्र लेने को पाप समझने वाले अक्षर कोठे पर घूमते दिखाई पड़ते है। अगर गली, मोहल्ले, समाज, दोस्त, रिश्तेदारों में आपकी छाप एक सभ्य और चुस्त रूढ़िवादी की है तो यहाँ अनगिनत बार आपकी भावनाए आहत होती दिखेगी।

यहाँ कुछ पंक्तियाँ एसी है जो हमेशा के लिए मेरे ज़ेहन में उतरी रहेगी।
“फिर दिन बीते फिर साल गए की काश कुछ हाथ आ जाता
ये वक़्त नाम है बड़ा हरामी ये सब कुछ ही खा जाता।”

“इस कायनात के कारीगर को समझ सका ना कोई
ज्यो ही बोलेंगे सँभल गए त्यो ही भूकंप मिलेगा।”

पुस्तक के तक़रीबन अंतिम चरण में एक कविता है जिनका शीर्षक है “नामुमकिन”। इसके आगे, इसके बारे में मुझे कुछ नही बताना बस इतना ही कहूँगा की यही वह कविता है। जाकर पढ़ लीजिये। अगर यह पढ़ना व्यर्थ लगे तो आप और में मिल बैठ कर यह तय करेंगे के हम मैं से किस की वैचारिक शक्ति सुन्य हो चुकी है।

बाक़ी यह बहुत ही छोटी पुस्तक है। तक़रीबन ८० पन्नो के आस पास। तो किसी दिन शाम को माहोल बनाइए और बैठ जाइए। और यकीनन आप इसे एक ही बैठक में समाप्त कर पायेंगे।
Profile Image for Nitin Akarsh.
40 reviews
October 25, 2023
एक से निचे की कोई रेटिंग का ऑप्शन नहीं है l पीयूष मिश्रा की आरंभ है प्रचंड न सुना होता तो समझता प्रकाशक ने अपने लड़के की किताब छपवा ली है l तुम ऐसा तो न लिखो रजिया बी माना की किताब की कीमत कम है लेकिन उससे कम कीमत पे एनिमल फार्म उपलब्ध है जो क्लासिक का स्थान रखती है l
Profile Image for Amit Kumar.
24 reviews
March 17, 2024
आपने पीयूष जी को मूवीज, यूट्यूब पर देखा ही होगा यदि आप किताबो के शौकीन है तो उनको पढ़े भी होंगे। मैने इनको गैंग्स ऑफ वासेपुर से जाना और फिर यूट्यूब पर इनकी कविता कुछ इश्क किया कुछ काम किया को सुना मुझे बहुत ही अच्छा लगा तो सोचा किताब को मंगवा लिया जाए पर उस समय किताबो का शौक उतना नही चढ़ा था कि किताबे खरीदी जाए तो मैने किंडल अनलिमिटेड का एक महीने का फ्री ट्रायल लेकर उसे पढ़ा और यकीन मानिए मुझे किताब बहुत ज्यादा पसंद आई थी। उसके बाद मैने कुछ और poetry को पढ़ा। कुछ दिन पहले मेरे किंडल पर सर्च करते करते पीयूष जी का ये किताब मिला नाम देख कर पढ़ने की उत्सुकता जागी तो मैने इस किताब को पढ़ना शुरू किया और इसका पहला कविता जिस नाम से किताब भी है मुझे बहुत बहुत बहुत ज्यादा अच्छी लगी और मैं तो पीयूष सर की लेखनी का फैन हो गया।

इस किताब को पढ़ते हुए मुझे मंटो को पढ़ने की भी अनुभूति हुई।

मै इस किताब को आप सभी को पढ़ने का सुझाव दूंगा मुझे पूरा यकीन है की आप इस किताब को पसंद करेंगे साथ ही पीयूष सर के प्रसंशक भी ही जाएंगे।
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