The moment a soldier gets posted at the border, his family gets shifted to the Separated Family (SF) Quarters where there's Army life all around but no Army men. This system has been going on ever since the Army was established. Chaudhary Vihar is one such SF Quarter. After the posting of her husband, Kusum enters the world of Chaudhary Vihar where like her, all around women are residing with their children. Houses there are allotted under a soldier's name, but no soldier can be found living in that house. Women residing in these houses have taken on the role of a 'single mother', fighting on many fronts singlehandedly while battling issues like loneliness, internalized casteism, mental illness and infidelity. 'Kitne Morche' is the first novel of its kind that explores the lives of Army wives.
Inspired by real life events, 'Kitne Morche' is a fictional account of women that are cut off from society while technically being a part of it. It presents the many struggles and joys of SF life, alongwith giving a rightful space to the sacrifices these women have made for the nation.
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सैनिक के बोर्डर पर पोस्टिंग जाते ही उसके परिवार को सपरेटेड फैमिली क्वार्टर्स में शिफ्ट कर दिया जाता है। जब से सेना का गठन हुआ है, यह व्यवस्था चली आ रही है। कैंटोनमेंट के भीतर इस अलग तरह की दुनिया में कुसुम अपने सैनिक पति की पोस्टिंग के बाद रहने के लिए पहुंचती है। यहाँ सब ओर उसके जैसी महिलाएं अपने बच्चों के साथ रह रही हैं। चौधरी विहार, यानी सपरेटेड फैमिली क्वार्टर्स। ऐसे घर जो सैनिकों के नाम पर अलॉट तो किए जाते हैं मगर वहाँ सैनिक नहीं रहते। दरअसल कहा जाए कि यहाँ सैनिकों के जीवन की असली "हीरो" रहती हैं, तब सही होगा। यहाँ रहने वाली महिलाएं 'सिंगल मदर' की भुमिका में अनेक मोर्चों पर बिल्कुल अकेले संघर्षरत हैं। आबादी के बीच रहते हुए, अकेलेपन से जूझती सैनिक पत्नियों के जीवन पर हिन्दी साहित्य में पहली बार इस विषय की उपस्थिती दर्ज करवाता है, वन्दना यादव द्वारा रचित "कितने मोर्च" उपन्यास। समाज में रहने वाली, समाज से कटी हुई इन अद्भुत जीवट वाली महिलाओं के जीवन संघर्षों, देश के लिए दिए गए त्याग और बलिदान का लेखा-जोखा है 'कितने मोर्च' उपन्यास।
Vandana Yadav is a Hindi language writer, motivational speaker and social worker. She was born in Bikaner, Rajasthan and currently resides in New Delhi.
Alongwith novels like 'Kitne Morche' and 'Shuddhi', she has also written a travelogue on Sikkim, published 3 poetry collections, contributed in children's literature among many other literary pursuits. Urdu Dost Foundation translated her poetry collection titled 'Kaun Aaeyga' in 2010.
She has also published short stories like 'Curfew', 'Middle Man' and 'Sugli' in literary magazines and regularly writes for leading newspaper, Jansatta alongwith publications like Purwai, addressing issues ranging from women's rights and self improvement to mental health and preservation of heritage. Her short story 'Middle Man' was translated by her daughter and published in literary journal, Kitaab in February 2024.
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लेखक, मोटिवेशनल स्पीकर, और समाज सेविका वन्दना यादव का जन्म 9 सितंबर को बीकानेर, राजस्थान में हुआ। हरियाणा की रहने वाली वन्दना जी का वर्तमान निवास स्थान दिल्ली है।
'कितने मोर्चे' और 'शुद्धि' उपन्यास के साथ यात्रा वृत्तांत, कविता-कहानी और बाल साहित्य की लगभग एक दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। आप आधा दर्जन से अधिक पुस्तकों की एडिटर रही हैं। 'पुरवाई' अंतरराष्ट्रीय पत्रिका में साप्ताहिक कॉलम लिखने वाली वन्दना जी आकाशवाणी पर रचना पाठ एवं समाचार-पत्र, पत्रिकाओं में मानसिक स्वास्थ्य, महिला अधिकारों और अन्य सम-सामयिक विषयों पर निरंतर लेखन कर रही है।
If you are a literature lover, don't think twice before getting this book because I guarantee you'll love it. Everybody always talk about fauji men, and deservedly so, but this novel takes an intimate look at their families, especially wives, who sacrifice their identity so that their husbands can stand at the border. The novel tackles everything from loneliness, mental illness, infidelity, institutionalized casteism, single parenthood and so much more. Not only will you get to know about Army lives, but probably even find yourself in one of the characters. Give it a read!
सेना की बात और उनसे जुड़े मुद्दे चाहें फिर उनकी वीरता, त्याग और बलिदान की बात हों इन सब पर आपने ढेरों किस्से,कहानियां और लेख पढ़ें होंगे कभी न कभी किसी न किसी जगह जो की छपे और पढ़े भी जाने चाहिए मगर किसी सैनिक को उससे और आगे बढ़कर शायद बहुत ही कम बार देखा गया है। एक सैनिक और उसका परिवार कैसे चलता है और कैसे सरहदों पर अपने अपने घरों से दूर रहने वाले सैनिकों के परिवार में उनकी पत्नी और बच्चे किस तरह रोजमर्रा के जीवन की चुनौतियों से निपटने का प्रयास करते हैं और कैसे पार पाते हैं इन्हीं सब विषयों को केंद्र में रखकर आपके सामने प्रस्तुत करता है ये उपन्यास " कितने मोर्चे" जिसे लिखा है वन्दना यादव जी ने और प्रकाशित किया है अद्विक पब्लिकेशन ने। उपन्यास में कुसुम नाम का एक किरदार जो स्वयं भी एक सैनिक (संदीप जी) की पत्नी है उन्हीं के नजरिए से आपकों चौधरी कॉलोनी में रहने वाले आसपास के सैनिक परिवारों के जीवन में आने वाली छोटी बड़ी चुनौतियों के बारे में बताया जाता है साथ ही कुसुम के किरदार के साथ भी इस बीच किस किस तरह की समस्याएं आती रहती है और वो कैसे उन समस्याओं से जूझती हुई अपना जीवन यापन करती है उसी की कहानी है ये उपन्यास। उपन्यास को 24 अलग अलग भागों में बांटा गया है हर भाग में एक नए समस्या के साथ कुसुम का किरदार रूबरू होता है और उससे जुड़े संघर्षों पर बात करता है फिर चाहें वो सरकारी घरों का मुद्दा हो, सैनिकों की पोस्टिंग की बात हो, किसी परिवार में आपसी मतभेद (एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर की बात हो), बच्चों की पढ़ाई को लेकर चिंता हो, या अपने मोहल्ले में आपसी सहयोग और मेलमिलाप की चर्चा हो ऐसी सभी मुद्दों पर एक सैनिक परिवार को संभालने वाली महिलाओं के नजरिए से टटोलने की कोशिश करती है ये किताब , और साथ ही पाठक को भी कहीं न कहीं अचंभित भी करती है की कैसे हमने कभी इस हिस्से पर गौर ही नही किया या कम किया की एक सैनिक के पीछे उसके परिवार किन समस्याओं से हमारी ही तरह रोज दो दो हाथ करता हैं खासकर उन्हें चलने वाली महिलाएं जिनके ऊपर पहले से समाज ने अपनी हिस्से की भी जिम्मेदारी उनके कंधों पर बिना मांगें डाल रखी हो। उपन्यास की भाषा शैली की बात करें तो इसे काफ़ी सरल रखा गया है जो पाठकों को अपने साथ बांधे रखने में सफल रहती है और जिस तरह से 24 अलग अलग भागों में इसे लिखा गया है वो भी इसे दूरदर्शन पर आने वाले क्लासिक टीवी सीरियल जैसे "नुक्कड़" "सर्कस" "हम लोग" के फॉर्मेट में टीवी पर लाया जा सकता है जहां हर भाग आपको एक नए परिवार और एक नई चुनौती को आपके सामने रखता हो, जो मुझे काफ़ी पसंद आया। उपन्यास में सामाजिक चुनौतियों के बीच लोगों के दोगलेपन पर भी बात की गई है जैसे एक जगह कुछ महिलाएं कैसे अपने घर पर काम करने आने वाली महिलाओं के बारे में विचार रखती हैं जब वो भी शाम को वॉक करने निकलती है वहां उन महिलाओं के बीच के संवाद उनकी मानसिक कुंठा और घटिया सोच पर प्रकाश डालती है की इन्सान अपनी अपनी क्लास के गुरुर में कितना ज्यादा चूर हो सकता है। इसका आखिरी भाग ( 24 ) आपकों सैनिक परिवारों के सबसे बड़े डर से भी अवगत करवाता है और जिस तरह से इसे लिखा गया है वो आपकों भी पढ़ते हुए भावुक अवश्य करेगा। अब अगर कमियों की बात करें तो मुझे बस इसकी पेसिंग थोड़ी धीमी लगी।अगर आप भी कुछ नया पढ़ने के इच्छुक है तो आपकों जरूर इस उपन्यास को एक मौका देना चाहिए। आप इसे ऑनलाइन ऑर्डर कर सकते है। वन्दना जी को उनके इस महत्वपूर्ण और संवेदनशील प्रयास के लिए शुभकामनाएं।
अगर आप भी इसे पढ़ना चाहे तो जरूर इसे ऑर्डर करें और पढ़ें।
भारतीय सेना पर लिखा गया उत्कृष्ट और अद्वितीय उपन्यास.... क्योंकि भारतीय सेना और उनके परिवार पर अभिनय कोई उपन्यास नहीं लिखा गया है... हिंदी साहित्य जगत में ऐसे उपन्यास विरले ही मिलते हैं
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