कृष्ण बलदेव वैद शब्द और अर्थ के बीच पसरे संशय के रचनात्मक तनाव को जीने वाले हिन्दी के अकेले लेखक हैं। 'डुबोया मुझको होने ने' के पन्नों पर यह रचनात्मक तनाव डायरी के शिल्प में व्यक्त हुआ है। 1991-1997 के बीच का समय संक्षिप्त व सघन होकर वैद की लेखनी से दर्ज हुआ है।