पर कौन सुनेगा मीरा की कथा है। यह आधुनिक समय की मीरा है जो पितृहीन बचपन का दंश लिए बड़ी हुई है और ठीक चित्तौड़ की राजरानी मीरा की तरह ससुराल में उपेक्षा और यंत्रणा की शिकार हुई है। उसका लौटना त्रास से भरा है किन्तु वह किसी सहानुभूति की अपेक्षा में टूट नहीं जाती। उपन्यास का अंत मीरा के आत्मनिर्णय के उजास से भरा है जहाँ वह अपना संसार खुद निर्मित कर सकेगी। वह आगे बढ़ना जानती है। आगे और आगे, जहाँ से उसका रास्ता प्रारम्भ होता है। प्रसिद्ध लेखिका अनामिका की कलम से मीरा की यह गाथा जितनी मार्मिक है, उतनी ही स्त्री की निजी, अलहदा और तेजस्वी आवाज़ भी है। सिद्धहस्त लेखिका की नायाब कृति।.
3.5/5 लालटेन बाज़ार अनामिका जी का पहला उपन्यास है जो कि अब 2019 में पुनः नये नाम से प्रकाशित हुआ है। 1983 में छपा यह उपन्यास पहले 'पर कौन सुनेगा' शीर्षक से प्रकाशित हुआ था। उपन्यास मुझे पसंद आया। उपन्यास के प्रति मेरी राय आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं: लालटेन बाज़ार
किशोर वय की रूमानियत की भावनाओं को बेहद असंवेदनशील पांडित्यपूर्ण दंभी भाषा में लिखने की कला का बेहतरीन नमूना है यह पुस्तक। १९७७ की इमरजेंसी की पृष्ठभूमि का इस्तेमाल कान्त के व्यक्तित्व को महिमा मंडित करने के औजार के अतिरिक्त और कुछ नहीं जान पड़ता। लगभग साल भर पहले पहली बार पढ़ा था। सालभर बाद दुबारा धीरज धरकर पढ़ा। अब कोई संशय नहीं रहा। मेरे आकलन में यह बहुत खराब लिखी गई किताब है। किसी बड़े लेखक को पढ़कर इतनी निराशा नहीं हुई कभी।