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किस्सा किस्सा लखनउवा

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लखनऊ के नवाबों के किस्से तमाम प्रचालित हैं, लेकिन अवाम के किस्से किताबों में बहुत कम मिलते हैं. जो उपलब्ध हैं, वह भी बिखरे हुए. यह किताब पहली बार उन तमाम बिखरे किस्सों को एक जगह बेहद खूबसूरत भाषा में सामने ला रही है, जैसे एक सधा हुआ दास्तानगो सामने बैठा दास्तान सुना रहा हो. खास बातें नवाबों के नहीं, लखनऊ के और वहाँ की अवाम के किस्से हैं. यह किताब हिमांशु की एक कोशिश है, लोगों को अदब और तहजीब की एक महान विरासत जैसे शहर की मौलिकता के क़रीब ले जाने की. इस किताब की भाषा जैसे हिन्दुस्तानी ज़बान में लखनवियत की चाशनी है

184 pages, Paperback

Published March 20, 2019

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Displaying 1 - 29 of 29 reviews
Profile Image for Ravi Prakash.
Author 57 books78 followers
February 24, 2020
लखनऊ में एक गर्लफ्रैंड थी। लेखक की जबान में बयाँ करूँ, तो महबूबा। उसकी मोहब्बत के चलते लखनऊ से भी मोहब्बत हो गई। खूब घूमे उसके साथ लखनऊ के गलियों में। शहर को और करीब से जानने के लिए योगेश प्रवीन की दो किताबें भी पढ़ डाली। किताबें पढ़ने के बाद मोहब्बत और बढ़ गई।
.
खैर, इस बात को तक़रीबन दो साल हो गए। उसकी शादी भी हो गई होगी, लेकिन लखनऊ से मोहब्बत अभी भी है।
.
उसी के चलते इस किताब को पढ़ने के लिए मंगवाया। जबरदस्त किस्सागोई है। छोटी किताब, छोटे-छोटे किस्सों से भरी हुई । बिल्कुल भी ऊब नही लगी। पढ़े तो बस पढ़ते ही चले गए। उम्मीद है कि हिमांशु वाजपेयी की कलम से और भी किताबे लखनऊ की शान में लिखी जायेंगी।
Profile Image for Praveen Kumar.
Author 38 books80 followers
June 10, 2019
इस क़िताब के लिए एक माहौल बनाना होता है कि इन क़िस्सों का लुत्फ़ लिया जा सके। यह क़िस्सागो के क़िस्से हैं, जो दरअसल बोल कर कहा जा रहा है, और हमें लिखे हुए मिले हैं। इसे पढ़ना भी उसी अंदाज़ में चाहिए। या तो खुद ही बोल कर, या यूँ सोच कर कि क़िस्से कोई सामने बैठा सुना रहा है। लाइव। लख़नवी अदब के साथ।
Profile Image for Saraswati.
131 reviews3 followers
June 20, 2020
यह कोई आम किताब नहीं बल्कि आम लोगों की ज़िंदगी पर लिखी गई किताब है जो लखनऊ शहर को बड़ी ही सरलता से खुद में समाए है। . .

लखनऊ के किस्से पूरे देश में काफ़ी चर्चित रहे हैं और आज तक उनकी बातें लोगों में होनी काफ़ी आम है , तो उन्हीं कुछ किस्सों को हिमांशु बाजपायी ने अपने अल्फाजों में इस किताब में अपने अंदाज़ मे इस किताब में उतारा है। . . .

ये किस्से लखनऊ की ज़मीन से जुड़े तो हैं ही मगर बड़ी गज़ब लहज़े में आवाम को यह भी बताते हैं कि किस तरह तब के लोग सप्रेम मिल जुलकर रहते थे। आज की युवा पीढ़ी जो बोलने का सलीका तक भूल गई हो उनको जरूरत है इन किस्सों से वह ज़बान सीखे जो लखनऊ वालों की पहचान रही हो। .

बहुत ही लाजवाब किस्सागोई हिमांशु की कलम में , बेहतरीन वर्णन ।
Profile Image for Himanshu Rai.
72 reviews57 followers
April 10, 2019
Qissa Qissa Lakhnauwa is a fascinating read, full of cultural history, and one of the very best Hindi books of this year. This book is a collection of small tales (Qissa) that will navigate readers in the heart of Lucknow. This book has taken me into cultural landscape of Avadh region that is as important as the physical one. Author must have dived deep with old hands for collecting nostalgic and historic pieces. Kudos to him for furnishing people's history of bygone Lucknow packed with vivid details and telling quotations (shayari) !
Profile Image for Pradeep Rajput.
105 reviews6 followers
January 25, 2022
शहर

हर शहर अपने अंदर लाखों क़िस्से लिए जीवित है, उन्हीं में से कुछ चुनिंदा किस्सों को यहाँ पढ़ सकते हैं।
Profile Image for Raj Mehta.
11 reviews
April 10, 2019
lakhnau ke aam insano ke khas qisse...
must read book...
Profile Image for Arun Mishra.
41 reviews
May 24, 2021
🌻घर के बड़े बुजुर्गों से अक्सर लखनऊ के गुजरे ज़माने की कहानियां खूब सुनी हैं। कैसे दस पैसे में तांगा वाला आपको चारबाग से हजरतगंज ले आता था, हजरतगंज में आप बहुत कम खर्च में बेहतरीन खाने और सैर का लुत्फ उठा सकते थे। बड़ा मंगल पर होने वाला विशाल भंडारा, ईद के मौके पर अमीनाबाद गड़बड़झाला में सजने वाले बाज़ार की बेमिसाल रौनक, पुलियाबाज़ी की कहानियां, तफ़री काटने वाले शोहदे और ना जाने ऐसे कितने मशहूर किस्से .. ये किस्से दरअसल हमारी धरोहर हैं, अगर ये एक जेनरेशन से दूसरी तक ना पहुंचे तो समझिये आप अपनी विरासत का जरूरी हिस्सा पीढ़ी दर पीढ़ी खोते जा रहे हैं। किस्सों को समेटने और पिरोना वैसा ही है जेसे कि एक जर्जर होती इमारत को दुरुस्त रखने के लिए उसकी मरम्मत करना। लेखक, दास्तानगो, समाजिक कार्यकर्ता और हर दिल अजीज़ हिमांशु भाई की यह किताब किस्सों को एक सूत्र में पिरोने का काम बखूबी करती है।

🌻आश्चर्य है कि ये किताब कुछ दो साल से मेरे किंडल में पड़ी हुई थी और मैंने ना जाने कितने किस्से कई कई बार पढ़ रखे थे, कुछेक तो मुहजबानी याद भी हो रखे हैं लेकिन अफसोस व्यक्त करता हूं कि आज तक इस कमाल किताब के बारे में लिख नहीं पाया। कल जब एक सेशन में कहानियों, किस्सों पर चर्चा हुई तो फिर इस क़िताब का नाम आया और जहन में आया कि अब तो लिख ही डालूं। "किस्सा किस्सा लखनउवा" उन नवाबों के किस्से नहीं हैं जिन्होंने नफासत और नज़ाकत के इस शहर को उसकी विशेष पहचान दी बल्कि ये कहानियां हैं लखनऊ के आवाम की। वही आवाम जिसने बदलते समय में बदलती सरकारें देखी लेकिन फ़िर भी धक्कमपेल भरी दुनिया में "पहले आप" के कायदे को खोने नहीं दिया। अवधी संस्कृति का गढ़ कहे जाने वाले इस शहर के रंग भी अनोखे हैं। गंगा जमुनी तहज़ीब की मिसाल ये शहर तेज़ी से भागने में नहीं बल्कि आराम से चलने का आदी है। इन्हीं बातों से निकले किस्सों की दास्तान है ये किताब।

🌻किस्से पूरे पूरे सच हों ऐसा भी जरुरी नहीं लेकिन किस्से ऐसे जरूर होने चाहिए कि पढ़ने वाले को मज़ा आये और लंबे समय तक दिमाग़ में बने रहें। किस्सागो होने के कारण लेखक ने इस बात का पूरा खयाल रखा है। हिमांशु भाई इस शहर को जीते हैं और इसी बात का सबूत हैं ये दिलचस्प किस्से। किताब की भाषा शानदार है। ऊर्दू, हिंदी के शब्दों के साथ ही ख़ालिस लखनवी (चाशनी वाली) ज़बान के लब्ज़ भी किताब में कहीं कहीं छिटके हुए मिल जाते हैं। किस्से छोटे छोटे हैं और आप आराम से दो तीन सिटिंग्स में किताब निपटा देंगे। उम्मीद करता हूं कि ये किस्से आपको मेरे शहर के चरित्र से रूबरू होने का एक शानदार मौका देंगे।


🌻मुझे बहुत से किस्से पसंद हैं लेकिन कुछ जो बेहतरीन लगे उनको यहां संक्षिप्त में दर्ज़ कर रहा हूं : -


1. एक किस्सा ऐसा भी हैं जब यहां के रईस अपने लडके को तहज़ीब सीखने तवायफों के कोठों पर भेजते हैं।
2. 2. उस्ताद विलायत अली खां साहब का किस्सा
3. 3. पढ़ीस का किस्सा, इन्हें अमृतलाल नागर और निराला अपना गुरु कहते थे
4. 4. नवाब साहब और उनके पेट के दर्द वाला किस्सा
5. 5. लखनऊ बनाम देहली का किस्सा और बहुत से...
अमा फ़िर इंतजार किसका कर रहे ? किताब खरीदने में पहले आप, पहले आप करेंगे क्या ? आज ही पढ़ डालिये शहर-ए-लखनऊ के ये किस्से । अंत अमीर मीनाई के इस शेर से : -

दावा सुख़न का लखनऊ वालों के सामने
इज़हारे बू-ए-मुश्क ग़ज़ालों के सामने

अर्थ : - लखनऊ वालों के सामने साहित्य की बात करना, गुफ़्तगू की बात करना, ज़बान की बात करना, बयान की बात करना, सुख़न की बात करना...ये वैसा ही है जैसा कि आप कस्तूरी मृग के सामने ख़ुशबू की बात करें।

लेखक : हिमांशु बाजपेयी
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन
34 reviews
September 7, 2025
शनिवार-रविवार का दिन हो और आप क़िस्सा क़िस्सा लखनउवा के पन्ने पलट रहे हों तो लगता है कि आप किताब नहीं पढ़ रहे, बल्कि चौक की किसी तंग गली में चलते हुए बाजपेई साहब को सुन रहे हैं। हिमांशु खुद को उसी चौक यूनिवर्सिटी का छात्र मानते हैं, जिसके वाइस-चांसलर अमृतलाल नागर हुआ करते थे। और सच कहिए तो उनकी लेखनी में वही चौक की गंध, वही आवाज़, वही ठहाका है।

हिमांशु कहते हैं, लखनऊ की गलियों में यूं ही भटकना ऐसा है जैसे महबूबा की ज़ुल्फ़ों के ख़म खोलना। और ये किताब पढ़ते हुए बार-बार लगता है कि हम उसी इश्क़ के हिस्सेदार हैं।

इस किताब की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसमें न कोई नवाब है, न कोई बादशाह। इसमें हैं आम लोग पानवाड़िनें, रिक्शेवाले, दुकानदार, डिप्टी कलेक्टर, तवायफें, शायर। वही लोग जिनसे शहर की असली पहचान बनती है। बाजपेई बार-बार याद दिलाते हैं कि असल इतिहास इन गलियों में लिखा गया है, उन लोगों की ज़ुबानी, जो रोज़ सुबह से शाम तक इस शहर को जीते हैं। यही वजह है कि किताब पढ़ते हुए लखनऊ किसी स्मारक या हवेली में नहीं, बल्कि छोटी दुकानों, भीड़भाड़ वाले चौक और आम लोगों की हंसी में सांस लेता दिखाई देता है।

हिमांशु की फिक्र सिर्फ किस्सा कहने तक सीमित नहीं है। वो उस लखनऊ को बचाना चाहते हैं जो वक्त की धूल में दबता जा रहा है। वो लखनऊ जहाँ मेल-जोल था, तहज़ीब थी, मोहब्बत थी और मज़हबी तासुब का नामोनिशान नहीं। यह किताब उसी तहज़ीब का दस्तावेज़ है।

और जब खाने-पीने की बात आती है किताब से ही पता चला कि लखनऊ सिर्फ़ टुंडे कबाब तक नहीं हैं । हिमांशु उस बावर्ची का किस्सा बताते है जो नवाब आसफ़ुद्दौला के लिए बस दाल पकाता था। लखनउवा खान-पान की यही विविधता और सादगी किताब में उतनी ही जगह पाती है जितनी उसके ठाट-बाट वाली कहानियाँ।

इस किताब की भाषा उसका सबसे बड़ा तिलिस्म है। न हिंदी, न उर्दू, बल्कि एक प्यारी-सी हिंदुस्तानी ज़ुबान, जो चौक और नखास की गलियों में गूंजती थी। इसमें मुहावरे हैं, इस्तलाहें हैं, वो लहजा है जिसमें लखनउवा अदब और नफ़ासत घुली हुई है। पढ़ते हुए लगता है जैसे लेखक सामने बैठा है और हर पन्ना किसी दास्तानगो की महफ़िल का हिस्सा बन गया है।

2021 में साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार से नवाज़ा जाना किताब की अहमियत का सबूत ज़रूर है, मगर सच कहूँ तो ये किताब किसी इनाम के लिए नहीं लिखी गई। यह किताब उस शहर की यादें बचाने के लिए लिखी गई है, जो वक्त के साथ कहीं “फना” और कहीं “फरामोश” हो रहा है।

हाँ, एक छोटी-सी इल्तिज़ा है अगर फुटनोट में उर्दू अल्फ़ाज़ के मायने भी मिल जाते तो हम जैसे पाठकों का सफ़र और आसान हो जाता। मगर शायद यही तो हिमांशु बाजपेई का हुनर है कि उलझाकर भी वो हमें उसी लखनऊ में खींच ले जाते हैं जहाँ हर किस्सा हमारी रगों में उतरने लगता है।
Profile Image for Amrendra.
344 reviews15 followers
April 19, 2025
यह किस्सागोई की किताब है। ये सिर्फ किस्से नहीं हैं बल्कि इन किस्सों में लखनऊ की वो तहजीब जो कभी थी, उसका इजहार बड़ी दिल नशीनी के साथ किया गया है, और पूरी दिलजमई के साथ इन किस्सों को जमा किया गया है। ये सिर्फ नवाबों के किस्से नहीं हैं बल्कि आम आदमी के - मेहनत मजदूरी करने वाले, खाना पकाने वाले, रिक्शावाले, नृत्य संगीत वाले, सभी के अफसाने हैं। इसमें लखनऊ के अवाम जलवानुमां हैं जिससे यहां के समाज और संस्कृति को पेश करने की कोशिश भी की गई है।

लखनऊ पर दीवानावार लीखने वाले दास्तानगो, हिमांशु वाजपेई को इस किताब के लिए साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार 2021 से भी नवाजा गया है। हिमांशु के मुताबिक पुराने लखनऊ की गलियों में बेसबब भटकना ऐसे है जैसे महबूबा के जुल्फ के खम निकालना। इसी इंतहाई शिद्दत से उन्होंने इन किस्सों को इस किताब में पिरोया है जो इसे किस्सा किस्सा लखनऊवा बनाती है। साथ ही बेहद खूबसूरत शेरों से भी इन किस्सों को सजाया गया है।

सुखन मुश्ताक है आलम हमारा, बहुत आलम करेगा ग़म हमारा
पढ़ेंगे शेर रो रो लोग बैठ, रहेगा देर तक मातम हमारा ~ मीर
Profile Image for Ritika.
43 reviews11 followers
August 9, 2022
Every place has an inherent culture it is known vastly for. With each passing generation some part of it loses. If the culture has something to be proud of, it definitely needs to be preserved or at least documented for future. Himashu has done his part and I hope that he will not stop here. I am expecting multiple volumes of this book and many similar yet different books/Daastaans/plays whatever interests him.
I cannot be unbiased here for 2 reasons: my love for Lucknow, and Himashu who I have known closely and dearly for years. But, all the biases apart, this is still a very good book with interesting anecdotes, and the way those are presented in is something to be appreciated.
I am proud and happy.
5 reviews
November 8, 2022
लखनऊ वासियों के लिए बेहतरीन

लेखक की पहली पुस्तक है इसकी छाप दिखती है। लेखक पाठकों को प्रभावित करने हेतु कुछ क्लिष्टता का सहारा लेता दिखाई दे रहा है। जो बात सरल हिंदी अथवा उर्दू में कही जा सकती थी उसको क्लिष्ट उर्दू से सजाया गया है। दूसरी बात यूं तो गुजशता 50 सालों से हम भी लखनऊ में रहते आ रहे हैं परंतु लेखक के विवरणों से ऐसा प्रतिबिंबित होता है कि लखनऊ के सारी कलाएं सिर्फ़ मुस्लिम समाज के इर्द गिर्द ही घूमती रही हैं। मात्र एक या दो कलाकार ही अन्य समाज से हैं वर्ना सभी महानुभव मुस्लिम समाज से ही है। जबकि ऐसा कदापि नहीं है।
लेखक ने लखनउवा संस्कृति को केवल नवाबों के काल का काल ही चित्रित किया है मुला इसके न आगे कोई संस्कृति है और न पीछे रही होगी?? पुनर्समीक्षा करें।
Profile Image for Khyati.
230 reviews1 follower
February 3, 2024
An enchanting homage to Lucknow.

Lucknow has always been called a city of Etiquette and famous for its alluring stories weaved in and around the Nawabs who resided in the city. However, this book inches ahead by including the stories of “common people” braided with simplistic humor, satire and love. The author provides an explicit set of examples justifying the fact that Lucknow indeed is the city of Etiquette.

Each tale is encapsulated in lucknowi accent which every resident of Lucknow shall identify with and others will enjoy reading about it. The charm and novelty of every tale reflects the lifestyle of the citizens and it’s not only about the bygone era that the book talks about but an amalgamation of every period Lucknow has witnessed till date.

One of the best part is the varied list of people and their anecdotes handpicked by the author ranging from a vegetable seller, a rickshaw puller to the famous Sitar player Vilayat Khan. Some of my favorite stories are Kissa sabzi walon ka, Aarzu hai mauj ke sahil se takrane ka naam, Hakim banda mehndi ka karishmai pulav.

The part where I felt a bit of discomfort is the usage of Urdu words in the stories. Readers who are acquainted with the language may find it more amusing.

This book proficiently glosses over many cliches and phrases we often have heard about a particular city and its people; in this case Lucknow. Read it for the love and nostalgia associated with the city.
8 reviews
September 1, 2020
Being brought up in Lucknow, my opinion of the book is slightly biased.

But I can honestly rate the book 5 stars because the stories and people in the stories bring out that uniqueness ingenuity of the city. A mix of Hindi and Urdu languages makes the stories very enjoyable, clever and informative.
Profile Image for Manish Kumar.
53 reviews31 followers
November 7, 2022
अगर आपका संबंध किसी भी तरह से लखनऊ शहर से रहा है तो एक बार किताब जरूर पढ़नी चाहिए आपको। इसके सारे किस्से एक जैसे नहीं हैं। कुछ तो बेहद दिलचस्प हैं, तो कुछ चलताऊ और कुछ थोड़े नीरस भी।

इस किताब की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह नवाबी लखनऊ के ज़माने में आम लोगों के किस्सों को पाठक तक पहुंचाती है। किताब में प्रस्तुत किस्से इस बात की पुरज़ोर वकालत करते हैं कि लखनऊ की तहजीब के जो चर्चे इतिहास की किताबों में मिलते हैं उनका श्रेय सिर्फ लखनऊ के नवाबों को नहीं जाता बल्कि उसके सच्चे हक़दार वहां के हर वर्ग के लोग थे जिनके आचार व्यवहार ने लखनऊ को वह पहचान दिलाई।

उस समय के माहौल को पढ़ने वाले के मन में बैठाने के लिए लेखक ने खालिस उर्दू का इस्तेमाल किया है जो वाज़िब भी है पर उर्दू के कठिन शब्दों का नीचे अर्थ न दिया जाना इस किताब की सबसे बड़ी कमजोरी है जो शायद आज के युवाओं को इसका पूरा लुत्फ़ उठाने में अवश्य बाधा उत्पन्न करेगी। आशा है कि किताब के अगले संस्करण इस बात पर ध्यान देंगे।
Profile Image for Syed Jamal.
Author 6 books1 follower
Read
November 1, 2022
bahot umdaa...

do lafz ... maza agaya..
is kitaab ko padhna isliye bhi zaroori hai taaki lucknow k bhaichaare aur ham aahangi se rubaru ho sake.. aur jo asal hindostaan hai use pehchaan sakein.
Profile Image for Amitesh Sufi.
3 reviews
April 28, 2020
दास्तान ए लखनऊ

बहुत शीरी ज़बान में लिखी किताब है , अदब और रवायतों से इश्क़ रखने वाले जरूर पढ़ें। दायरा थोड़ा और बड़ा किया जा सकता था , इसपे बाजपाई जी सोचें।
Profile Image for Mayank Joshi.
1 review30 followers
October 30, 2022
लखनऊवी आवाम के किस्सों की एक उम्दा पेशकश॥
पढ़िए और मुस्कुराइये 😀
6 reviews
March 6, 2024
All the qissas (short story) in this book left a smile on me, probably because I am a Lucknowite and proud of it!!
1 review
March 17, 2024
Great Read

Very interesting stories.
However if translation is provided along with difficult Urdu words then it would make mote sense.
Thanks
Profile Image for Abhishek Pandey.
59 reviews
December 30, 2020
लखनऊ के किस्से, लखनऊवी अन्दाज में

इस किताब के माध्यम से लखनऊ के किस्सों को पढ़ कर वहा कुछ दिन बिता लेने का जी करने लगता है, "नवाबों की तरह"।
Profile Image for Vivek Singh.
2 reviews17 followers
December 30, 2020
वो कहते हैं ना अंदाज- ए बयां और, बस यही है वो किताब
इस किताब को पढ़ने के बाद आप उस लखनऊ से वाकिफ हो जाएंगे जिसके लिए लखनऊ जाना जाता है।
Profile Image for Mohit Somani.
29 reviews14 followers
June 21, 2020
Good attempt to tell stories of Lucknow. Though I felt editing could've been better. Would like to have a audiobook for this one.
6 reviews
May 28, 2019
Nice short anecdote of Lucknow and its culture. A bit of Urdu words at places create disturbances in the flow for non-Urdu people like me. Though the presence of Urdu words makes this book unique because the stories are dated back to around 1857 or before and in the regime of Mughals where Urdu was very common language.

I would suggest two things for the new edition:
1. Include a short vocabulary in the appendix
2. Include a map of Awadh and Delhi.
Profile Image for Durgesh Deep.
40 reviews16 followers
April 3, 2022
I'm glad to know that author has recently received "Sahitya Akademi Yuva Puraskar 2021" for this amazing book on Lucknow. Himanshu's acceptance speech is here.
Displaying 1 - 29 of 29 reviews

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