भारत में वैज्ञानिक रोज़ जनमते होंगे और कहीं खो जाते होंगे। वे खो कर कहाँ जाते होंगे? लेखक एक क़स्बे से अमेरिका के विश्वविद्यालयों में गुजरते हुए एक विज्ञान गल्प यात्रा पर ले जाते हैं। वहीं कहीं इरोदोव से मुलाक़ात होती है।
विज्ञान और इंजीनियरिंग का ऐसा कौन सा छात्र है जिसने भौतिकी के क्षेत्र में इरोदोव का नाम नहीं सुना होगा। कई वर्ष पहले इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी करते समय इरोदोव की किताब में दिए हुए भौतिकी के जटिल प्रश्न हमेशा से ही मेरी नींद उड़ाते थे। इस कहानी का शीर्षक इसलिए भी रोचक लगा। किंडल पर कोई नई किताब ढूंढते हुए लेखक प्रवीण कुमार झा की यह कहानी हाथ लगी। समकालीन लेखकों में कथेतर गद्य के सुपरस्टार माने जाने वाले लेखक की मैंने यह दूसरी किताब पढ़ी। इस से पहले नीदरलैंड पर लिखा इनका यात्रा वृत्तांत "नास्तिकों के देश में" पढ़ा था।
यह मात्र ३४ पन्नों की कहानी है। मैं यह ज़रूर कहूंगा कि छोटी होकर भी यह अपने आप में पूर्ण है और इसमें कहानी कहे जाने वाले सारे गुण मौजूद हैं। बिहार के छोटे से गांव से शूरू होकर यह कहानी पाठक को अमेरिका तक की सैर कराती है। गांव में रहकर पढाई करने वाले दो अबोध बालक जिनके जीवन में एक गुरु का प्रवेश होता है जो आम लोगों से जरा हटकर हैं। गुरुजी ने अमेरिका के कॉर्नेल से पढ़ाई की पर अभी गांव में ज़मीन जायदाद के प्रपंच में फंसे हुए हैं। ये लड़कों को एक नया नज़रिया देते हैं। चीज़ों को देखने, सुनने, सोचने, समझने, परखने की एक नई दिशा दशा। शूरू में बच्चों को यह अटपटा लगता है लेकिन धीरे धीरे आदत बन जाती है। इरोदोव की किताब से प्रश्न हल करने का आग्रह सुनकर गुरुजी बालकों से पूछते हैं कि बताओ इरोदोव कौन था ? उत्तर सबको विस्मित करता है और मैं इस प्रश्न का उत्तर ढूंढने की जिम्मेदारी पढ़ने वालों पर ही छोड़ता हूं । एक और बात जिसपर लेखक ज़ोर डालते हैं कि सभी विषय एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, पुराने समय में संगीत, दर्शन, भौतिकी, रसायन, राजनीति आदि विषयों की जानकारी एक व्यक्ति को होती थी, उदाहरण के लिए दार्शनिक अरस्तू। पर आज का युग विज्ञान के क्षेत्र में "स्पेशलाइजेशन" का युग है। अमेरिका की कहानी भी रोचक है जहां बचपन वाले बालकों में से एक नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक से रूबरू होते हैं। कहानी का अंत सुखद कहा जायेगा।
कहानी की भाषा सरल, प्रवाहमायी और रोचक है। विज्ञान के गूढ़ सिद्धांतों को भी आसानी से समझाने लायक बनाया और बताया गया है। मुझे नहीं लगता कि इस कहानी का कोई संस्करण प्रिंट हुआ है, यह सम्भवतः किंडल के लिए ही लिखी गई है। किंडल अनलिमिटेड वालों के लिए तो यह बिना किसी शुल्क के ही उपल्ब्ध है। मौका मिले तो यह कहानी ज़रूर पढ़ें।
Nice . Author has written is a true tribute to iridov who was neglected like tesla only because he was from russia.
Physics and literature connection Author has I spired students not to solve any problem directly but to think of what is the application of this problem in real world.
दसवीं के बाद विज्ञान लेने वाले भारत के सभी छात्र इरोडोव के भौतिकी के प्रश्नों से तो परिचित होंगें ही। इस किताब में लेखक ने किस्सा और संस्मरण सुनाने के अंदाज में बहुत सारी गूढ बातें पाठकों के अवचेतन मन में डाल दी हैं जिसका एहसास पाठकों को बाद में होता है।