पारिवारिक और सामाजिक उपन्यासों की जो धारा मुंशी प्रेमचंद से हिंदी में चली और जिसे फणीश्वरनाथ 'रेणु' ने कथा-संगुफन की अपनी अद्भुत क्षमता से उत्कर्ष प्रदान किया, उसी धारा का आधुनिकतम उपन्यास है.. वरुण पाण्डेय कृत 'नेत्रा'.. ।। इसमें परम्परा और आधुनिकता का अनूठा मेल है | 'नेत्रा' की कथावस्तु 20 वीं सदी के आखिरी दशक में एक उत्तर भारतीय युवा के स्वप्न - संघर्ष का आख्यान है, जिसमें 21वीं सदी की आहट भी सहज सुनाई देती है। आदमी में से उसका स्वप्न और मकड़ी में से उसका जाला घटा देने पर सिफर के अलावा कुछ नहीं बचता। स्वप्न ही मनुष्य की जीवनी शक्ति है पर इसे जीने में घर-परिवार, सामाजिक ताना-बाना और न जाने क्या क्या दरकता है। इस आपाधापी में आदमी आदमी न रहकर संवेदन-शून्य यंत्र हो उठता है, इसी द्वंद का दस्तावेज है यह युवा केंद्रित उपन्यास।। पिछले तीन-चार दशकों से हिंदी में सामाजिक और पारिवारिक भावभूमि के उपन्यासों की जो कमी खलती रही है यह उपन्यास इसी कड़ी में पाठकों की चेतना और चिंता के विस्तार को व्यापकता देनेवाला है। इसे पढ़ने वाले पाठकों के लिए एक वैधानिक चेतावनी यह है कि यह पूरी तरह आपको अपने आगोश में लेकर संवेदना के उस शिखर तक पहुंचा देने में समर्थ है जहाँ से सामाजिक क्रांति जन्म ले लेती है।।