"हाय रे विधाता तुमने नारी को किस माटी से बनाया है ,जो पुरुष उसके रोम-रोम को तिरस्कृत करता है । वह उसी के शुभ की कामना करती है । तुम्हारी इतनी प्रेम मई ,इतनी महान रचना को मैं क्या नाम दूं। जिसमे कायनात के हर शै के लिए प्यार ही प्यार है ।मेरे आंखों से बहते आंसू उसके उलझे लटों में खोते जा रहे थे। वह मेरे बाहों में बेहोश पड़ी थी ,पर मैं तिरस्कृत था, अपमानित था , विधाता ने मेरी बच्ची का ये मोल आँका था । उसका बचपन मां की ममता के बिना अधूरा था और विवाहित जीवन में उसकी तड़प चरम सीमा पर थी। " जिंदगी , रिश्तों का चक्रव्यूह ही तो है ।जिसमे उलझ कर इंसान अपने जीने का मकसद तलाशता है। ये कहानी यथार्थ की घटनाओं पर आधारित है। नारी के विभिन्न रूपों को दर्शाती ये कहानी वास्तविकता के धरातल पर गहरी चोट है। यहाँ लेखिक
The content is really good. The whole plot is engaging with perfect portrayal of characters. The description of the situations faced by the protagonist and the way she overcomes with the adverse situations, keeps you hooked for the entire time. If you are looking for something close to realities of life, then, this book is for you.