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स्वधर्म परधर्म

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भारत स्वधर्म पर केंद्रित रहा, किन्तु बाहरी लोगों की मान्यताओं, इस अर्थ में पर-धर्म को जानने-समझने पर ध्यान नहीं दिया। सदियों से इस कर्तव्य की उपेक्षा हुई। फलतः इसे भयंकर हानियाँ उठानी पड़ीं। कई रूपों में वह आज भी जारी है। इसलिए भी वह जानना महत्वपूर्ण है। केवल सीमित अर्थ में सभी धर्म समान हैं और एक ही लक्ष्य तक पहुँचने के विभिन्न मार्ग हैं। अन्यथा भारत के ‘धर्म’ शब्द को पश्चिम के ‘रिलीजन’ का पर्याय समझना गंभीर भूल है। जिस से दूसरी बड़ी-बड़ी भूलें होती हैं। इन का अंतर जानना भारतवासियों के लिए अनिवार्य है। धर्म आत्मा, परमात्मा, योग-साधना और सदाचरण पर केंद्रित है। रिलीजन में अनुयायी-विस्तार, सत्ता-संगठन, दूसरों को पराजित करना, मिटाना भी शामिल है। इसे वह अपना फेथ कहता है। इस फेथ की रीति-नीति, घोषित कार्यक्रम, आदि जानना आवश्यक है। क्योंकि इन की सैद्धांतिक ही नहीं, दैनिक व्यवहारिक निष्पत्तियाँ भी बड़ी गहरी हैं। वह निरपवाद रूप से सब का जीवन प्रभावित करती हैं। अतः भारत के लोगों को स्वधर्म के साथ-साथ परधर्म को भी सही-सही जानना चाहिए। यह पुस्तक इन्हीं बातों को बिन्दुवार स्पष्ट करती है, जिसे मुख्यतः महर्षि श्रीअरविन्द की शिक्षाओं पर आधारित किया गया है।

Paperback

First published January 1, 2020

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Shankar Sharan

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