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स्वाँग [Swaang]

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'स्वाँग' ज्ञान चतुर्वेदी का नया उपन्यास है, एक गांव के बहाने समूचे भारतीय समाज के विडम्बनापूर्ण बदलाव की कथा इस उपन्यास में दिलचस्प ढंग से कही गयी है। यह बुंदेलखंड पर आधारित उनकी उपन्यास त्रयी की अंतिम कृति है। 'त्रयी' के पहले दो उपन्यास 'बारामासी' और 'हम न मरब' पहले ही प्रकाशित हो चुके हैं।

'स्वाँग' में ज्ञान चतुर्वेदी ने कोटरा गांव के जनजीवन के जरिए दिखलाया है कि किसी समय मनोरंजन के लिए किया जाने वाला स्वांग अर्थात अभिनय अब लोगों के जीवन का ऐसा यथार्थ बन चुका है जहां पूरा समाज एक विद्रूप हो गया है। सामाजिक, राजनीतिक, न्याय और कानून, इनकी व्यवस्था का सारा तंत्र ही एक विराट स्वाँग में बदल गया है।

410 pages, Kindle Edition

Published June 1, 2021

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Gyan Chaturvedi

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Profile Image for Afaq Qureshi.
6 reviews1 follower
August 13, 2025
"स्वाँग" महज़ एक उपन्यास नहीं, बल्कि हमारे ज़माने की रूह का आईना है —
"स्वाँग" बुंदेलखंड के कोटरा गाँव की पृष्ठभूमि पर लिखा गया एक बेहतरीन सामाजिक-व्यंग्यात्मक उपन्यास है, जिसमें पूरा सिस्टम — सियासत, अदालत, अफ़सरशाही — सब कुछ एक विरान और फ़रेबी तमाशा है, जिसे लेखक ने स्वाँग कहा है।
लेखक ने किरदारों जैसे पंडितजी, गजानन बाबू, मास्टर, पत्रकार और पटवारी के ज़रिए समाज के दो-मुँहेपन और बेईमानी को बड़ी हुनरमंदी से दिखाया है। जुमले और डायलॉग इतने असरदार हैं कि हँसाते भी हैं और सोचने पर मजबूर भी करते हैं — जैसे कि,
“बेईमानी के सिस्टम को चलाने के लिए कुछ नपुंसक किस्म के ईमानदार भी ज़रूरी होते हैं।”
भाषा में देसीपन, बुंदेलखंडी रंग और कटाक्ष का तड़का है। ये किताब सिर्फ़ मनोरंजन नहीं बल्कि आईना है जिसमें हम अपना ही समाज देखते हैं — मज़ाह के साथ हक़ीक़त भी।
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