इस कहानी का बीज मेरे सामने बोया गया था और आज कहानी फसल बन कर लहलहा रही है, CODE काकोरी को दिल से मुबारकबाद— साजिद नाडियाडवाला
काकोरी अस्पताल के वॉर्ड में एक डेड बॉडी पड़ी है, जो पूरी तरह काली पड़ चुकी है। लाश पर सोने-चांदी के ब्रिटिश कॉइंस पड़े हैं। हर सिक्के पर क्वीन विक्टोरिया की तस्वीर छपी है। क़ातिल ने लाश के सीने पर पीतल की थंब पिन से एक ए फोर साइज़ का कागज़ टैग किया है, जिस पर लिखा है—हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन। आख़िर क़ातिल का इशारा क्या है? क्यों छोड़े हैं उसने ये सुराग़? पुलिस को क्यों चैलेंज कर रहा है ये क़ातिल?
असल में ये वही विक्टोरियन कॉइंस हैं, जो 1925 के ‘काकोरी कांड’ में लूटे गए थे। ये वही हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन है जो 1924 में चंद्रशेखर आज़ाद ने बनाई थी। तब मक़स&#
"I agree to die thousands of times for my motherland, without thinking about the pain I’ll be getting. Oh, God! Allow me to be born again multiple times. even after dying continuously," - Pandit Ramprasad Bismil
Inspector Ashfaq is the leading protagonist of this story, corruption is like his shadow. Things were going fine, one of his sons is working for NASA while the other is an entrepreneur. But as they say, time is the most variable thing in this world. It changed and a murder is introduced in the story. While he is investigating the case, a series of murders took place.
The murderer has tagged an A four size paper on the chest of the corpse with a brass thumb pin, on which it is written - Hindustan Republican Association. These are the same Victorian coins, which were looted in the "Kakori Train Action" of 1925.
The Kakori Train Action, was a train robbery, committed by the revolutionaries of the Indian independence movement against the British Raj on August 9, 1925, in a village called Kakori near Lucknow. This robbery was carried out by 10 revolutionaries including Hindustan Republican Association's revolutionary Ram Prasad Bismil, Ashfaqullah Khan, Rajendra Lahiri, Keshav Chakraborty, Mukundi Lal, Banwari Lal.
"Don't see others doing better than you, beat your records every day because success is a fight between you and yourself,” - Chandra Shekhar Azad
Manoj Rajan Tripathi has been in journalism for almost thirty years. Started with Dainik Jagran and then went on to become the editor of News18 Network, India News, and ETV through the Hindustan Times Group. He is the dialogue writer of Ajay Devgan, Paresh Rawal, Karthik Aryan's superhit film Atithi Tum Kab Jaoge - Part Two (Guest in London). Along with awards in journalism, he also won many awards as a singer on national platforms like Zee TV's singing reality show Sa Re Ga Ma Pa, Antakshari, Sur Shringaar, Sangam Kala.
Coming back to the story: It is full of twists and turns, the characters are well established, it's a PAGE TURNER in the true sense.
बॉलीवुड के मसालों से भरी पुस्तक, नायक चुलबुल पांडे, सिम्बा आदि जैसा है और सिंघम मूवी से प्रेरणा लेता है। रोहित शेट्टी की पुलिस वर्स के लिए आदर्श कहानी। मस्तिष्क पर जोर डाले बिना पढ़ी जाने वाली पुस्तक। नायक का नाम "अशफ़ाक उल्ला बिस्मिल" रखा जाना जमा नहीं । अच्छा मुसलमान और भटका हुआ मुसलमान की अवधारणा पर चलते हुए पुस्तक में बॉलीवुड मूवी की तरह आतंकी भी मुस्लिम है और हीरो भी।
कोड काकोरी किताब से लेखक मनोज राजन त्रिपाठी जी ने साहित्यिक लेखन में पदार्पण किया है। यह उनका पहला उपन्यास, जो कि थ्रिलर एवं रहस्य से भरपूर है, लगभग 258 पृष्ठों का है। कोड काकोरी कहानी घूमती है काकोरी जगह के आस पास। क्षेत्रफल एवं आबादी की दृष्टि से तो काकोरी छोटा सा है, लेकिन यहां का इतिहास बहुत बड़ा है। जैसे काकोरी में जन्मा, बड़ा प्रख्यात "काकोरी कबाब", 9 अगस्त 1925 को काकोरी काण्ड हुआ, और 19 दिसंबर 1927 को रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, राजेंद्रनाथ लाहिड़ी और रोशन सिंह को फांसी दी गई थी। इस वजह से यह जगह ऐतिहासिक दृष्टि से काफ़ी प्रसिद्ध है। लेखक ने कहानी को इस तरह पिरोया है, कि कहानी के धागे वर्तमान समय में चलते हुए, अतीत के धागों से कुछ मेल खाते एवं गूथे हुए नज़र आते हैं।
लेखन की दृष्टि से मनोज जी ने इस उपन्यास को काफ़ी रोमांचक एवं दिमाग के घोड़ों को चुस्त दुरुस्त करने लायक लिखा है। कहानी कब शुरू होकर कब ख़त्म हो जाती है पता ही नहीं चलता। लेखन का जो प्रवाह है, वह इसकी विशेषता है। जिस प्रकार नदी जब पर्वत से निकलकर समद्र तक का रास्ता नापती है, और जो रास्ते में कभी धीमी, कभी तेज़, कभी शांत, कभी विकट रूप लेते हुए, अपने गंतव्य तक पहुंचती है, बस यह कहानी भी कुछ इसी तरह आगे बढ़ती है। शुरू में कहानी नदी की तरह अपना रास्ता तलाशती हुई जहां आगे बढ़ती है, बीच बीच में वह कभी एकदम तेज़ हो जाती है और कहीं धीमी पड़ जाती है, पर अंत तक आते आते अपने साथ एक अलग किस्म का एहसास और तजुर्बा लाते हुए, अपनी मंज़िल तक पहुंच जाती है।
यूं तो मनोज जी ने लेखन प्रणाली से पाठक के रोमांच की रगों को बखूबी पकड़ा है। कहानी रोमांच, सस्पेंस और सशक्त किरदारों से भरपूर है। लेकिन कहानी में मुस्लिम किरदार बहुत अधिक है, यह इसकी परेशानी नहीं है, लेकिन इन किरदारों के नाम आपस में बहुत मिलते जुलते है, जिसकी वजह से पढ़ने में थोड़ी मुश्किल होती है और बीच बीच में कहानी के सिरे कहीं उलझे हुए लगते हैं। बाकि अगर पूरी किताब देखी जाए तो एक शानदार किताब है, जो मनोरंजन के लिए भरपूर है।
कहानी शुरू होती है काकोरी के एक आम के बाग से जहां आधी रात को एक कत्ल होता है, और फिर कहानी में एंट्री होती है काकोरी के सबसे बड़े विलेन की या यूं कह लें कि सबसे बड़े हीरो (क्योंकि काकोरी में जो सबसे बड़ा विलेन होता है वही सबसे बड़ा हीरो होता है) इंस्पेक्टर अश्फ़ाक़ उल्ला बिस्मिल की। इंस्पेक्टर अश्फ़ाक़ की एक खासियत है कि वो केस को सॉल्व करके खत्म करने की जगह सेटलमेंट करके खत्म करना ज्यादा पसंद करते हैं (केहने का मतलब हैं की रिश्वतखोर हैं)। घटना के दो तीन दिन बाद ही इस केस के मामले में एक गिरफ्तारी होती है और सारे सबूत भी मैच कर जाते हैं यहां तक कि आरोपी ने गुनाह कबूल भी कर लिया, लेकिन केस बंद नहीं हुआ है क्यूं? और सिर्फ यही नहीं जैसे जैसे कहानी आगे बढ़ती है एक के बाद एक और कत्ल होते जाते हैं और हर कत्ल के बाद एक ऐसा सुराग मिलता है जो कई साल पहले हुए काकोरी कांड की याद दिलाता है, तो क्या हैं ये गुत्थी ?
सुनने में सीधी सादी थ्रिलर कहानी की तरह लगता हैं मगर यकीन मानिए कहानी बिल्कुल भी साधारण नहीं है। 1925 में हुए काकोरी काण्ड से लेकर 1921 में जन्मे काकोरी कबाब दोनों का जिक्र है कहानी में। एक परफेक्ट थ्रिलर जैसी होनी चाहिए बिल्कुल वैसी है। आधी किताब पढ़ने के बाद मुझे ऐसा लगने लगा कि आगे की कहानी प्रिडिक्टेबल है मगर अंतिम पन्नों में जो ट्विस्ट आए वो सच में हैरान करने वाले थे। कहानी के किरदारों की बात करें तो सारे किरदारों के नाम और उनका अंदाज बहुत ही दिलचस्प है। कहने को तो ये थ्रिलर है मगर किरदारों के बीच जो संवाद है वो बहुत ही मजेदार और हंसाने वाले हैं और लेखक ने जो भाषा का इस्तेमाल किया है वो भी बहुत ही मजेदार है और सरल भी है जो हर किसी के समझ में आ जाए। और साथ ही साथ कहानी के जरिए लेखक ने कई अच्छे संदेश देने की भी कोशिश की है। तो कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि यह किताब एक अच्छा सा मिश्रण है जिसे हर किसी को पढ़ना चाहिए। अगर आप थ्रिलर कहानियां पढ़ना पसंद करते है तो इसे जरूर पढ़ें।
Kakori, where famous Kakori Kand taken place. Story starts with the rape and murder case of a girl, and this horrific crime make everyone stunned. Inspector Ashfaq, a policeman who wants to solve cases in adjustments with money, and his team is also like him, totally corrupted. Ashfaq tries to solve the girl’s case but as soon as he tries to get deep in the case, he finds himself in the web of mysteries. Whenever he solves one mystery, another was always standing Infront of him. The case led to him through numerous feeling and reader will also feel those feelings. The case was very predictable in the end but then the story takes a spin which make the reader feel a taste of defeat. The language used in the book is local and it makes the reader feel the real language of Kakori and the book Is full of one liner jokes. But it has just a paragraph about Kakori Kand which is disappointing for us and this doesn’t have a single thing about history, this whole book is just about the case which is related to current timing issues and terrorism which makes it more gripping book. I liked this book and the language.