सत्ता की हिस्सेदारी के लिए कुछ तबकों के बीच ठनी वर्चस्व की लड़ाई, जिनकी तरफ देश की आम जनता बड़ी उम्मीदों से ताकती रहती है।एक बलात्कार को राजनीति की बिसात बना देने वालों की कहानी, जिनसे लोग न्याय के लिए साथ की अपेक्षा रखते हैं।धर्म, जाति, मीडिया और राजनीति के नेक्सस की एक ऐसी आपराधिक कथा जो किसी काल्पनिक या दूर की दुनिया की बात नहीं; बल्कि हमारे आसपास रोज़ घट रही घटनाओं का कच्चा चिट्ठा है।छल-प्रपंच और निजी सम्बन्धों के भीतर चल रहे राजनीतिक समीकरणों की एक ऐसी कथा जो चौंकाती तो है, लेकिन बेभरोसे की नहीं लगती।‘ढाई चाल’ उपन्यास इस समय की राजनीति की रोमांचक कथा है। राजनीति जो घर और रिश्तों में जड़ें पसार चुकी है, राजनीति जो हमारे समय का सबसे बड़ा मनोरंजन है, राजनीति जो कि अब थ्रिल
बिहार के मधुबनी जि़ले के रुद्रपुर गाँव में 31 जुलाई, 1978 को जन्मे नवीन चौधरी राजस्थान विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में परास्तानक हैं। पढ़ाई के दौरान छात्र-राजनीति में खूब सक्रिय रहे। इन्होंने एमबीए की डिग्री भी हासिल की है। 'दैनिक भास्कर’, 'दैनिक जागरण’ और आदित्य बिड़ला गु्रप के ब्रांड और मार्केटिंग डिपार्टमेंट में विभिन्न पदों पर रह चुके नवीन फोटोग्राफी, व्यंग्य-लेखन एवं ट्रैवलॉग राइटिंग भी करते हैं। इनकी ट्रेवल तस्वीरें गेटी-इमेजेज द्वारा इस्तेमाल होती हैं। इनका लोकप्रिय फेसबुक पेज 'कटाक्ष’ और ब्लॉग 'हिन्दी वाला ब्लॉगर’ के नाम से है। इनके कई व्यंग्य वायरल हुए और कई न्यूज़ वेबसाइट पर भी प्रकाशित होते रहे हैं। नवीन के पुराने आर्टिकल उनकी वेबसाइट www.naveenchoudhary.com पर पढ़े जा सकते हैं।
वर्तमान में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, नोएडा में मार्केटिंग हेड और दिल्ली एनसीआर में रहनेवाले नवीन चौधरी से सम्पर्क का ज़रिया है—naveen2999@gmail. com
कहानी वहीं है जो, सामान्यता हर अपराधिक परिवेश पर आधारित उपन्यासों में होती है जहां कहानी के अंत मे पाठक चौक जाता हैं जब अपराध का मुख्य कर्ता-धर्ता केंद्र बिंदु से इतर का कोई किरदार निकलता है ;
लेकिन इस उपन्यास को कुछ तत्व विशेष बनाते हैं जैसे -राजनीति एवं लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के गठजोडों पर प्रकाश साथ ही मीडिया का भविषयगामी पथ। उपन्यास में विगत वर्षों की वास्तविक राजनीतिक घटनाओं की झलक। और अंत में सबसे खास बात जो प्रथम उपन्यास में मेरे विचार से नदारद रही एवं वह इस उपन्यास में बखूबी दिखाई दी : वह है, "वक्तव्य" या कहें विचार (पंचलाइन) जो पढ़े जाने एवं व्यावहारिक अनुभव में शामिल करने योग्य हैं ।
नवीन जी के समस्त पात्र जो प्रथम उपन्यास 'जनता स्टोर' में बुलेट ट्रेन की भांति भाग रहे थे वहीं अब उनकी चाल पैसेंजर ट्रेन की भांति हुई है अर्थात परिस्थिति के अनुकूल कभी तीव्र चलते हैं तो कभी मंद हो जाते है अर्थात अब चरित्रों का विकास एवं उनके क्रियाकलाप वास्तविकता के धरातल पर बने लाइट हाउस की तरफ आगे की ओर बढ़ते प्रतीत हो रहे हैं जो कि पाठक को घटनाओं से जुडे रखने में मदद करते हैं।
This book is second part of book "Janta Store". I read this book after reading Janta store and before reading that i was having slight idea about the kind of shi* which happens in politics but after reading this book i got to politicians can go to any extent to save their asses/post. Dhai chaal is somewhat about it... Partly inspired from true incidents..the story seems like movie and the kind of twist in end is unpredictable.
लेखक ने गजब का content दिया हैं, जिन्हे पॉलिटिक्स पसंद हैं उनके लिए तो ये एक परफेक्ट किताब हैं. काश मैं इसका paperback पढ़ता, kindle पर पढ़के regret हो रहा हैं..... Great work by author.
ये किताब paperback पढ़ने लायक हैं लेकिन एंटरटेनमेंट की कमी हैं, थोड़ा बहुत मस्ती मजाक होना चाहिए था.
कहानी यूं तो जनता स्टोर का दूसरा भाग लगती है पर अलग से भी पढ़ सकते हैं। आज मुझे समझ आया की क्यों एक राज्य का मुख्यमंत्री कॉलेज चुनावो में इतनी रुचि लेता हैं। कॉलेज चुनाव आगे की तैयारी करवाते हैं।
बहुत परते है इस कहानी में पर आपको बांधे रखती है, मीडिया और नेता अलग रह ही नहीं सकते और जनता पिसती ही रहती हैं।