श्रीमद्भगवद्गीता का ज्ञान कोई शब्दिक चर्चा या सैद्धांतिक ज्ञान नहीं बल्कि रणक्षेत्र में खड़े एक योद्धा के लिए कहे गए शब्द हैं। भगवद्गीता का जन्म किसी शान्त, मनोरम जंगल में नहीं, बल्कि कुरुक्षेत्र के मैदान में हुआ था। अर्जुन के सामने एक तरफ धर्म था तो दूसरी तरफ नात-रिश्तेदार और गुरुजनों का मोह। बड़ा कठिन था अर्जुन के लिए निर्णय लेना। अर्जुन कोई जीवन से विरक्त शिष्य नहीं था, जो संसार का मोह त्यागकर कृष्ण के पास आया हो। वह युद्ध के मैदान में खड़ा था। उसे निर्णय करना था कि युद्ध करे कि ना करे। अर्जुन ने धर्म नहीं बल्कि मोह और स्वार्थ चुना था। कृष्ण के समक्ष एक ऐसा हठी शिष्य था जो सुनने को राजी नहीं था क्योंकि अर्जुन का भी मन एक साधारण मन ही था, अपनों पर बाण चलाना उसके लिए आसान नहीं था। श्रीमद्भगवद्गीता के अट्ठारह अध्याय कृष्ण द्वारा हठी अर्जुन को मनाने का प्रयास हैं। हमारी भी स्थिति अर्जुन से अलग नहीं है। हमारे भी जीवन में ऐसे क्षण आते हैं जहाँ निर्णय लेना आसान नहीं होता। यदि हमें कृष्ण का साथ नहीं मिला तो जीवन के कुरुक्षेत्र में हम हार ही जाएँगे क्योंकि कृष्ण के बिना जीत अंसभव है। आचार्य प्रशांत की यह पुस्तक 'श्रीमद्भगवद्गीता' आपके लिए इसीलिए प्रकाशित की गई है ताकि आप अपने जीवन में कृष्ण का संग पा सकें।
First chapter se hii bahut engaging hai aap ko iska jo tarika hai samjhane ka bahut pasand aayega and isme jo questions hai woo bahut hii achhe level ke hai or unka acharya ji ne jis tarike se answer diya hai woo bahut hii achha hai for example woo bolte hai ki sanskriti chalti hai sidhhantoo par or naitikta par, paramparao par or rorio par, lekin Dharm chalta hai sirf satya par. Ek baar jarur pare iss book ko iska second part bhi hai
गीता से मेरा प्रेम जब आचार्य प्रशांत द्वारा लिखी ये पुस्तक पढ़ने पर और प्रगाढ़ हो गया। इस पुस्तक में श्लोकों की जो व्याख्या है वो व्यवहारिक जीवन में प्रभावपूर्ण तरीके से सकारात्मक परिवर्तन लाती है। मेरे गीता की यात्रा आचार्य प्रशांत चलाई जा रही गीता समागम श्रृंखला के साथ जारी है। पूरी मौज है।🤩🤩