हमारे देश में शादी और प्यार पर बॉलीवुड की बड़ी छाप है। लेकिन असल ज़िन्दगी सुनहरे परदे की कहानियों से बहुत अलग होती है। कई बार राम-रावण अलग-अलग नहीं होते बल्कि वक़्त और हालात के साथ एक ही व्यक्ति किरदार बदलता रहता है। ‘बेहया’ कहानी है सिया और यश की कामयाब और खूबसूरत ज़िन्दगी की। यह कहानी है रूढ़िवादी सोच से उपजे शक़ और बंधनों की। यह कहानी है उत्पीड़न और डर के साये में जीने वाले मुस्कुराते और कामयाब चेहरों की। यह कहानी है समाज के सामने सशक्त दिखने वालों की मजबूरी और उदारता का जामा ओढ़े हैवानों की भी। बार-बार कहने पर, देखने पर भी जो बातें जीवनसाथी नहीं समझ पाते; कैसे वही दर्द और टीस एक अनजान व्यक्ति बस आवाज़ सुनकर समझ जाता है? कैसे मुस्कुराते चेहरे के पीछे की उदासी को वह पल भर में भाँप लेता है? आत्माओ&
अमूमन औरत को पुरुष की कमज़ोरी बताया जाता है और औरत की कामयाबी को लोग चरित्रहीनता घोषित करने लगते हैं।
पुरुष की कामयाबी का मीटर मेहनत से नापा जाता है, लेकिन औरत की कामयाबी का हिस्सा उसे चरित्रहीन मलिन बना देता है।
विनीता जी द्वारा लिखी गई किताब 'बेहया' नाम सुनकर और कवर पेज देख आप अंदाज़े लगायेंगे कि यह आख़िर किस तरह की कहानी होगी?
यह समाज की नज़रों में बनाई गयी एक वैश्य की कहानी है, जो रेड लाइट एरिया में नहीं रहती बल्कि यह घर से बाहर जाकर काम करती है।
यह 4 मर्दों के साथ कॉन्फिडेंट होकर बात करती है, ये वो है जो अपने हक में बोलना जानती हैं।
बस इन्हीं चंद ख़ूबियों को खामियाँ बताकर हमारा समाज इसे वैश्या, बदचलन, और *बेहया* कहता है।
अगर किसी औरत ने अपनी जिंदगी में कामयाबी हासिल की है तो मतलब वह न जाने कितने मर्दों के साथ सोई होगी।
" ये सिर्फ नज़रिए का फर्क है, हम वही दिखाई देता है जो हक देखना चाहते हैं।"
इस कहानी के तीन मुख्य पात्र हैं: सिया, अभिज्ञान और यश। सिया यश की पत्नी है।
सिया अपने करियर में सफल है, उसका पति यश एक अमीर बिजनेसमैन है जो सिया को अपने वश में रखना चाहता है। उसके चरित्र को शक भरी नज़रों से देखता है उसपे अपशब्द भी कहता है। सिया अपनी शादी को बचाने के चक्कर में उसके सभी जुल्म सहती रहती है। यश के खिलाफ़ कुछ नही बोल पाती।
यह एक प्रेम कहानी है, साथ ही औरत की ज़िंदगी में घट रही कुछ अजीब लेकिन वाजिब घटनाओं का संगम है। सिया, अभिज्ञान, के प्लेटोनिक रिश्ते की कहानी है बेहया।
सिया को अपनी शादी बचाने की व्यर्थ कोशिश कर रही है वहीं सिया के पति का उस के प्रति बर्ताव भी बर्दाश्त से बाहर है।
वो यश जो पहले सिया से बहुत प्यार करता था लेकिन अचानक किसी अनचाहे शक की वजह से उससे नफरत करने लगा और नफरत कब अत्याचार की कहानी बन गई, ये पता ही न चला।
वह शक जो बहुत पहले क्लियर हो चुका था फिर भी वो सिया को टॉर्चर करता है....
ये सब जानने और सहने के बाद सिया यश को छोड़ने का फैसला लेती है,
I picked up this book after watching author's extensive interview on a Youtube channel. The fact that this is a true story of an extremely meticulous, studious, outgoing, full of life lady, who succumbed to a monster in the name of love, and for her children, shattered my heart.
This is an extremely beautiful story. So near to reality, yet so full of awe. Siya is the managing director of an MNC in India. She is intelligent, successful, and empathetic towards her employees. However, there is a silent animosity towards her, among few of her team members. Siya is not making any effort to break away from her peers' prejudices. Abhigyan is a new addition to the team, who has his own past, but comes across as someone with full of life. He finds Siya reserved and distant. He wants Siya to break away from her cocoon and live life to the brim. Mentioning anything more will be giving away too much.
Note - story has some extremely disturbing incidents of domestic valence, and male dominance mentions.
I do have one complaint from the author. Although there is an English original of this book also available, in fact which was published before this book, I deliberately choose to read Hindi version, to feel the tale in more intimate and delicate manner. The use of Hinglish words and expressions, is the only put down in this book.
An extra star for an absolutely adorable book cover.
यह किताब पिछले 6–7 महीने से मेरी TBR लिस्ट में धूल खा रही थी। मैं इसे इसलिए टाल रहा था क्योंकि मुझे पूरा यक़ीन था कि यह “टिपिकल फ़ेमिनिस्ट” किस्म की किताब होगी — जिसमें सारे मर्द खलनायक और सारी औरतें बेचारी पीड़ित!
लेकिन शुक्र है, ऐसा नहीं निकला। यहाँ बराबरी से दिखाया गया है कि ज़हर भरे रिश्तों में फँसने का ठेका सिर्फ़ औरतों ने ही नहीं लिया है, मर्द भी शिकार हो सकते हैं।
कहानी शुरू होती है सिया से, जो एक बड़ी कंपनी में ऊँचे ओहदे पर है। प्रोफ़ेशनल लाइफ़ झकास, लेकिन पर्सनल लाइफ़ का तो राम नाम सत्य है। पति यश से लेकर बच्चों आदित्य और अनन्या तक सब कुछ अस्त-व्यस्त। यश जी सिया को हर तरह से टॉर्चर करते हैं, शक करते हैं, लेकिन फिर भी सिया उस शादी में अटकी रहती है—बच्चों के भविष्य के डर से।
फिर एंट्री होती है अभिज्ञान की। अमरीका से आया हुआ, मालिक के रिश्तेदार, और आधी उम्र पार करने के बावजूद ऐसा लगता है जैसे बॉलीवुड का हीरो गलती से इस कंपनी में आ गया हो। ऑफिस में काम से ज़्यादा गाना-बजाना, फ्लर्टिंग और रोमांस ही करता रहता है। सच कहूँ तो कई जगहों पर कहानी इतनी फ़िल्मी हो जाती है कि किताब फेंकने का मन करने लगता है।
आख़िरकार वही ‘हीरो’ सिया को समझा-बुझाकर उसकी ज़हरीली शादी से बाहर निकाल देता है… और बस, कहानी यहीं खत्म।
फ़ैसला: अगर आपके पास बिल्कुल खाली 2–3 घंटे हैं और OTT सब्सक्रिप्शन भी ख़त्म हो गया है, तभी इस किताब पर हाथ डालें। वरना और भी बहुत कुछ पढ़ने को है।
Vineeta has presented a balanced picture of the issues many women face around us. Domestic violence, doubting, over possessive attitude, marital rape... These are not uncommon but not many books discuss in such detail and that too written in a nice narrative that keeps the reader engaged and one keeps guessing what next. The book surprises when it deviates from popular expectations of the plot. Some parts of the story felt a bit weak but overall a good, must read.
बहुत ही सोच के साथ लिखी गई ये पुस्तक आपको कई सफ़र में लेके चली जायेगी मानो आप एक यात्री हो। पर ये पुस्तक आपके कई मूलों को फिर से प्रश्न करेंगी। और अगर आपका जवाब सही है तो फिर सही वरना आपको भी जूझना पड़ेगा अपने आपसे और जवाब खोजने की आस तो रखनी ही पड़ेगी। बहुत खूब कहानी बाकी कई जगह आवश्यकता है सुधार की, ख़ैर सही पुस्तक हैं। सुंदर पुस्तक हैं।
After listening to one of the interview of the writer i read this book.and it's worth it.so deeply she has understood and written about the situation and reactions of the characters.loved it.finished it on one go.
बेहया विनीता अस्थाना का एक उपन्यास है जिसे मैंने तब पढ़ना शुरू किया जब मैंने एक इंटरव्यू में उन्हें इसकी चर्चा करते हुए सुना। उपन्यास का विषय अच्छा है - खासकर महिलाओं के साथ घर, समाज और कार्यस्थलों पर होने वाले भेदभाव और संघर्षों को लेकर। यह बात सच है कि किताब उन सच्चाइयों को उजागर करती है जिनसे महिलाएँ अक्सर चुपचाप गुज़रती हैं।
लेकिन जहाँ तक मेरी व्यक्तिगत राय है, मुझे कहानी उतनी ज़्यादा पसंद नहीं आई। स्टोरीलाइन थोड़ी सीधी और सपाट सी लगी, उसमें वो गहराई नहीं थी जिसकी मुझे उम्मीद थी। खासकर 'प्रेम' जैसे भाव को केवल एक शारीरिक स्तर तक सीमित कर देना - ये मुझे थोड़ा खटकने वाला लगा। कहानी की एंडिंग भी बस ठीक-ठाक ही थी, न कुछ बहुत चौंकाने वाला, न ही बहुत भावनात्मक।
हाँ, एक बात जो अच्छी लगी, वो ये कि भाषा बहुत सरल है और किताब ज़्यादा लंबी भी नहीं है, इसलिए अगर आप हल्की-फुल्की पढ़ाई करना चाहते हैं, तो एक बार पढ़ सकते हैं।