नई बात कहने की तलाश में किसी भी कहानी के पहले एक लंबी गहरी चुप होती है। हम उसे सन्नाटा नहीं कह सकते हैं। कोरे पन्ने और भीतर पल रहे संसार के बीच संवादों का जमघट लगा होता है। बहुत देर से चली आ रही चुप में संघर्ष नई बात कहने के आश्चर्य का चल रहा होता है। इस चुप और शांत दिख रहे तालाब के भीतर पूरी दुनिया हरकत कर रही होती है। नया कहने में कुछ नए शब्द मुँह से निकलते हैं, पर उन शब्दों में जिए हुए का वज़न कम नज़र आता है। कुछ भी नया कहाँ से आता है? हमारे जिए हुए से ही। पर हमारे जिए हुए की भी एक सीमा है। हमारे जिए हुए के तालाब का दायरा छोटा होता है शायद इसीलिए किसी भी क़िस्म के नए अनुभव का टपकना कभी हमारे कहे में बड़े वृत्त नहीं बना पाता है। (इसी किताब से)
कश्मीर के बारामूला में पैदा हुए मानव कौल, होशंगाबाद (म.प्र.) में परवरिश के रास्ते पिछले 20 सालों से मुंबई में फ़िल्मी दुनिया, अभिनय, नाट्य-निर्देशन और लेखन का अभिन्न हिस्सा बने हुए हैं। अपने हर नए नाटक से हिंदी रंगमंच की दुनिया को चौंकाने वाले मानव ने अपने ख़ास गद्य के लिए साहित्य-पाठकों के बीच भी उतनी ही विशेष जगह बनाई है। इनकी पिछली दोनों किताबें ‘ठीक तुम्हारे पीछे’ और ‘प्रेम कबूतर’ दैनिक जागरण नीलसन बेस्टसेलर में शामिल हो चुकी हैं।
तितली • मानव कौल की किताबें मेरे लिए एक ऐसी गर्म चाय की तरह होती है जिसे मैं गर्म रहते ही पूरा पी लेना चाहता हूं, किताब का पहला पन्ना पलटने और आखिरी पन्ने तक पहुंचने में मुझे ज्यादा देर नहीं लगती, और फिर जब किताब अपने आखिरी पन्नों पर होती है तो एक अजीब सा दुख मुझे घेर लेता है, इच्छा होती है की फिर से पूरी किताब शुरू से पढ़ ली जाए और आखिरी पन्ने पर आने से पहले फिर से वही चीज़ दोहराई जाए लेकिन आखिरी पन्ना ना पढ़ने के लिए जो साहस चाहिए वो मुझमें अभी नहीं पनपा है, मेरी कायरता और लालच अधूरेपन में संतोष करना नहीं जानती और इसी लालच में आखिरी पन्ने तक बिना रुके पहुंच जाता हूं…
मानव कौल का यह तीसरा उपन्यास है जो मुझे अधिकतर समय एक यात्रा वृत्तांत की तरह लगा। पहला भाग उत्तराखंड के लैंडूर का और अंतिम भाग डेनमार्क के कोपेनहेगन में व्यतीत होता है जिससे पढ़ने वाला स्वतः ही उन सारी गलियों, पहाड़ों, रास्तों, कैफे आदि जगह पर खुद को विचारते पाता है। इस किताब में मानव कौल ने मृत्यु के बारे में लिखा है। उन्होंने एक दानिश लेखिका Naja Marie Aidt की बेस्टसेलिंग किताब When Death Takes Something From You Give It Back के बारे में और इस किताब के अपने ऊपर प्रभाव को बहुत ही सुंदर ढंग से अपनी शैली में प्रस्तुत किया है। मानव कौल एक ऐसे लेखक है जो अपनी किताबों में ढेर सारे लेखकों और किताबों को साथ लिए चलते हैं। मुझे इनकी किताबे इसलिए भी प्रभावित करती हैं क्योंकि ये अपनी लगभग हर किताब में निर्मल वर्मा और विनोद कुमार शुक्ल जैसे लेखकों का एक बार परिचय अवश्य देते हैं। मानव कौल कि एक किताब पढ़कर आपको लगता है की आपने थोड़ा थोड़ा कई सारी किताबो को पढ़ लिया है, अब जब आप उन दूसरी किताबों को पढ़ेंगे तो वो आपको अजनबी से नहीं लगेंगे, उनके पात्रों से आप पहले ही मिल चुके होते हैं। जिस तरह शर्ट का तीसरा बटन उपन्यास पढ़ने के बाद जब मैने चित्रलेखा पढ़ी थी तो मुझे ऐसा लगा था जैसे मैं पहले से ही चित्रलेखा और कुमारगिरी को जनता हूं। जब कभी मैं When Death Takes Something From You Give It Back पढूंगा (अगर मैंने कभी पढ़ा तो) तो मुझे नहीं लगेगा की इस किताब के साथ यह मेरी पहली मुलाकात है, मैं फिर से कोपेनहेगन पहुंच जाऊँगा और उनके पात्रों से फिर से मुखातिब होऊंगा, अगर कुछ छूट जायेगा तो लैंडूर के पहाड, शायर और तितली।
आईये! स्वागत है आपका मानव के संसार में। मानव दरवाज़े पर खड़े हैं, न्यौता दे रहे हैं आप को उनके संसार में जीने का। आप उनके कमरे में उनकी कुर्सी-मेज़ पर बैठ जाईऐ, वह चाय बना रहे हैं। आप चाहें तो उनकी किताबों की अलमारी टटोल सकते हैं। 'तितली' को पढ़कर समझ आया, जब आप लेखन की पराकाष्ठा पर खड़े होते होंगे तो, जीने और लिखने का अंतर, शायद ध्वस्त हो जाता होगा। एक विशुद्ध लेखक के अंतस् से, निजी कोनों से जो कविता उठती वह 'तितली' के जैसी होती होगी।
लेखक होने का अर्थ क्या है? हर गुज़रते लम्हे को रोककर, उसका हाल पूछने की जुर्रत! क्या यथार्थ की धारा से कुछ अलग होकर एक दूसरे फ्रेम से, आप घट रहे क्षणों को देख सकते हैं?! देख भी सकते हैं तो क्या यह जोखिम उठाएंगे?! क्योंकि जो घटित हो रहा है उसके साक्षी तो आप हैं ही, उसके पूर्ण होने में हिस्सेदार भी हैं। फिर अलग हटकर देखना इतना सरल हो नहीं सकता।
लेखन, कल्पना और वास्तविकता के मध्य कोहरे की दीवार है। कोहरे की खास बात होती है कि जितनी दूर तक देखो, वह घना होता जाता है। पर जैसे ही पास देखो वह नहीं होता! 'तितली' में कल्पना और वास्तविकता बरसों बाद मिली सहेलियों जैसी गले में लग रही हैं! कोहरा है पर इस निकटता में उससे फर्क़ नहीं पड़ता। मेरे लिए 'तितली' एक अंडरवाॅटर अनुभव जैसी है। सब कुछ मद्धम पड़ चुका है। साँसे गहरी और लंबी हो चलीं हैं। दृश्य धुंधले हैं और सारी इंद्रियां बस इस क्षण को जी लेना चाहती हैं। बस, मैं हूंँ, शब्द हैं और यह क्षण है! इससे सुखद अनुभव कुछ नहीं। समय रबर की तरह खिंचकर लंबा हो गया है। ये उस तरह की किताब कतई नहीं जहां आप फटाफट पन्ने पलट-पलट कर दो-ढाई घंटे में किताब खत्म कर देते हैं। यह उस तरह का लेखन है जहांँ हर कुछ पन्नों के अंतराल के बाद, आप छाती पर किताब को औंध रख, आंँखें मूंदे, शब्द, घटना ख़्वाब, यह सब जज़्ब करने लग जाते हैं। ऐसे लेखन को पढ़ते समय महज़ आपकी बुद्धि संलग्न नहीं रहती, आपका समग्र अस्तित्व, समय, जगह, कल्पना सब संलग्न हो जाते हैं।
'तितली' उन किताबों में से है जो दरवाज़ों की तरह होती हैं। दरवाज़े के इस तरफ और उस तरफ की दुनिया में क्या फर्क़ होगा, आप यह कह नहीं सकते। अक्सर पढ़ते-पढ़ते आपका यह अंदाज़ा धूमिल हो जाता है कि आप किस तरफ से किस तरफ आए हैं।आप अचानक समझ नहीं पाते इसमें से आपके हिस्से की वास्तविकता वाली तरफ कौन सी है।
कितना सुखद है कि जिनसे हम कभी मिले नहीं, जिन्हें कभी वास्तव में देखा नहीं, बस उनका लिखा कुछ पढ़ लिया है और इतने से पढ़े का जुड़ाव ऐसा लगता है मानो हमेशा से उन्हें जानते हैं। वार्तालापों में उनका जिक़्र आ जाए तो हम बड़े हक़ के साथ उनके लिए बोलना शुरू कर देते हैं। यह कोई fan होने वाली बात की वजह से नहीं। Fan होना तो शायद दूरी को और ज्यादा ही स्थापित कर देता है। यह तो इंसान की किसी दूसरे इंसान के प्रति सहज प्रतिध्वनि है। मिले बिना, बात किए बिना, आप उनको जानते हैं। यह कोई बहुत अचंभित करने वाली बात नहीं, बड़ी सुकून देने वाली बात है जैसे मानव नाय्या को जानते हैं वैसे हम मानव को।
"हम अपने जीवन में, अपने कहे में कभी भी बहुत ईमानदारी से वो सब कुछ नहीं कह पाते जो हमारे भीतर गुज़र रहा होता है। बहुत अपने के बग़ल में भी हम अक्सर चुपचाप बैठे रहते हैं। ये कला ही है, जिसमें हम उस चुप के भीतर के उबाल को लिख सकते हैं। इसलिए ये लेखक, फिल्ममेकर, पेंटर बहुत ही भाग्यशाली होते हैं कि उनके पास वो चीज़ है जिससे वे अपने भीतर के सारे विस्फोट की कतरनों को अलग-अलग करके दर्ज कर सकते हैं। और हम जैसे लोग जब उस फ़िल्म, पेंटिंग या क़िताब के सामने होते हैं तो लगता है कि इन्होंने वो सब कह दिया है जो हम कहने से चूक गए थे।"
(तितली - मानव कौल )
कुछ लेखक होते हैं जिनके शब्द इतने भीतर घर कर जाते हैं कि उनके लिखे को, उनके होने को आप अपने से अलग चाह कर भी नहीं कर पाते। आप हर बार उनके लिखे में अपने जिए हुए को देख ही लेते हैं।
मानव को पढ़ना मेरे लिए एक बहुत अलग अनुभव रहा है। जब "बहुत दूर कितना दूर होता है" से मानव के लेखन को पढ़ने की शुरुआत हुई मुझे लगा नहीं था की उस साल सबसे ज्यादा मैं उन्हीं की लिखा पढूंगा, उनको इतना करीब से देखूंगा!
हर व्यक्ति या तो एक लेखक को धीमे धीमे अपने दिल में जगह बनाता हुआ देखता है या तो वह उसकी तलाश में अपना सफर जारी रखता है। जिस तरह मानव अपने करीबी लेखकों के बारे में पूरे प्रेम से बताते हैं वैसी ही मुलाकात मेरी मानव से होगी ऐसा मैं सपने देखता रहता हूं।
"शुरुआती पन्ने पढ़ते ही लगा कि ये बहुत कमाल की किताब होगी, लेखक ने हर वाक्य बेहद निजी जगह पर जाकर लिखे हैं। मैं इस किताब को अभी नहीं पढूंगा, मैं इसे कुछ वक्त तक सहेजकर अपने पास रखूंगा। मेरी इच्छा है कि पहाड़ के किसी छोटे टुकड़े पर, अलसाई सुबह में, ठंड की नर्म धूप में तुम मुझे ये किताब पढ़कर सुनाओ। मैं उस दिन का इंतज़ार करूंगा। तुम्हारा दोस्त।"
कार्ल। सपना। मौत। ये किताब में हैं और बाकी सब कुछ आप के भीतर। इसे पढ़ते वक्त बहुत मुश्किल है किसी अपने को न याद करना जिसे आप खो चुके हो। आप बहुत बार रोयेंगे और उतनी ही बार आप किताब को दुबारा उठाकर पढ़ेंगे। आप ढूंढेंगे नय्य्या को और उस किताब को भी जिस पर ये सब कुछ आधारित है। खूबसूरत एक तितली की तरह। जिसे कितनी भी कोशिश करो पकड़ा नहीं जा सकता वो हमेशा ही उड़ जाएगी, आप उसे हमेशा ही खो देंगे l
"मानव! मानव! दरवाज़ा खोलो बेटा।" ये सुनते ही मैंने तितली का 100वा पन्ना पढ़ना छोड़कर "जंगल कैंप" के दूसरे माले की तरफ़ देखने लगा। दो लोग दरवाजे पर दस्तक दे रहे थे। अगले ही पल दरवाज़ा खुला और वे दोनों अंदर चले गए। मानव सुनते ही मैं मुस्कुरा दिया। एक पल के लिए हुआ कि उनसे जाकर कहूं कि मेरे हाथ में जो किताब है उसे मानव ने लिखा है। वो इस क़िताब में एक यात्रा पर है। और आप भी यात्रा में हैं। और हम भी। लेकिन मैंने ऐसा कुछ नहीं किया। बस इस बात को लिखने की कल्पना की।
फ़कीर चंद (ख़ान मार्केट, दिल्ली) से तितली लेकर बिहार के वाल्मीकि नगर पहुंचा। शैलेंद्र से जेएनयू में जब मिला तब किताबों को लेकर बहुत सी बातें हुई जिसमें एक बात गहरे दिल में रह गई "मेरे बैग में हमेशा दो किताबें रहती ही थी।" आने वाले कुछ दिनों शायद ये बात भूल जाऊं। या ये बात मेरे जीवन से अपने होने को धुंधला करने लगे। लेकिन इस समय तितली को एक पल के लिए भी अपने से अलग न करना इसी बात की उपज थी।
नाय्या की किताब when death takes something from you give it back- CARL'S Book पढ़ने के बाद आए सपने से लेकर, landour उत्तराखंड में शायर का मिलना, और फिर नाय्या से मिलने की ख्वाहिश से शुरू होती तितली जब कोपेनहैगन पहुंचीं तबतक मानव के हम भी मानव के सपने का हिस्सा हो चुके थे। शायर से मिलने पर कविता की याद से भर जाना और फिर उसे खोने की एहसास को नाय्या की किताब के हर पन्ने पर महसूस करना ठीक तितली के कई रंगों को अपने में समेटता सा है।
मैंने मृत्यु को जब भी देखा है दूर से देखा है। ये मालूम होते हुए भी कि वो मेरे किसी अपने के लिए दरवाजे पर दस्तक दे रही है। खुद को दूर किया है मैंने। जब मानव ने कविता के जाने के समय अपने कमरे में सोता हुआ लिखा ठीक उस पन्ने को पढ़ते हुए मैने ख़ुद को भोपाल में पाया। जब घर से दादी के चले जाने की ख़बर मिली। हम सभी ने कभी न कभी किसी को खोया है। लेकिन उसके जाने के समय कौन सी याद हमारे पास रह जाएगी यही मायने बाक़ी रहती है।
मानव ने लिखा कि वो नाय्या की क़िताब पढ़ते हुए अपने आपको हर जगह पाया था। हॉस्पिटल जाते हुए। हॉस्पिटल के कॉरिडोर में। तब ऐसा लगा जैसे ठीक उस जगह थोड़ी सी जगह बाक़ी है जहां तितली का हर पाठक आकर बैठेगा। मैंने भी यही किया। कोपेनहैगन के कैफे Nodric Roasting Co. में हर बार एक दूसरे टेबल पर मानव को देख रहा था। लोगों को देखते हुए। बातें करते हुए। लैपटॉप पर तितली लिखते हुए।
इस वक्त तितली का आख़िरी पन्ना पढ़ने के बाद। शायर के मेल आने का इंतज़ार नहीं है। लेकिन मैं इस बारे में सोचता हूं कि जिस किताब को मानव ने दो साल से ज़्यादा अपने साथ हर वक्त रखा उसे किसी अंजान के लिए छोड़ जाने का एहसास कैसा होगा। कैसा होगा जब हम किसी अनजान से किसी अनजान नाम से मिलेंगे। चाहे जो हो तितली के एहसास को अगर महसूस कर सकते होंगे हम तो ये सारा एहसास ऐसे ही रंगों से भरा होगा। जिसमें सपने होंगे, भविष्य के सपने से पहले बीत चुके पलों में जी पाने का सपना। एक सपना कहानी हो जाने की।
किताब के शीर्षक से मैंने सोचा की ये तितली के बारे में है, हालाकि मुझे ख़रीदने से पहले पता है ये किस बारे में है। ये मौत के बारे में, तुम्हारे अंदर और बाहर कुछ मर जाने के बारे में। जैसे मैं लिखता था। कभी कभार ही सही पर लिखता था पर अब वो लिखावट मर गई है। ये मेरे पढ़ने की भावना के बारे में जो आख़िरी साँसे ले रही है। अब चलते पड़ते कोई पन्ना किसी किताब का आँखों के सामने से निकल जाता है बस।
ये किताब उस बारे में ही है की कैसे आपके जीवन से लोग ही नहीं जाते, आपके अंदर से कुछ भी छोड़ के चला जा सकता है, मर सकता है। जैसे आपकी हँसी, आपके गाने की इच्छा, आपके घूमने की तिलबिलाहट या कुछ और।
ये किसी के चले जाने के बारे में भी है। कैसे हमारे साथ टहले, बैठें, गुनगुनाये लोग एक दिन चले जाते है, कभी इच्छायें, परिस्थिति, ईश्वर, समाज या दो लोगो में से किसी एक व्यक्ति का साथ नहीं रहने का निश्चय, दो लोगो को दूर केर देता है, ये उस बारे में है।
ये इस बारे में भी है की कैसे कोई लेखक ईमानदार नहीं हो सकता है क्यूकी आप कुछ भी लिख ले कभी वो नहीं लिख सकते जो आप सोचते है या महसूस करते है, कम से कम पूरा के पूरा वैसे के वैसा तो नहीं। ये मेरे बारे में है जहाँ किसी का जाना आपके अंदर से कितना कुछ साथ ले जाता है। कैसे तुम्हारा सब, उसका होके उसके साथ गायब सा, धूमिल सा हो जाता है। ये शुरुआत के बारे में है जहा आप कुछ कहना चाहते है, लिखना चाहते है पर कैसे बस आप कलम तक ही उठा पाते है पर पन्ने पर कुछ उकेरा नहीं जाता, काग़ज़ को शब्दों से भर नहीं पाते ये उसी बारे में है।
ये मृत्यु के बारे में है। हालाकि इसके हर पैरा (अनुच्छेद) में आप लगभग असली मौत का ही जिक्र है, जिसमे इंसान मर जाता है। लेकिन आप टोह टटोल करोगे तो आप बस किसी मर जाने के बारे में पाओगे। जैसे इसमें जिक्र है कविता का, शायर का और कार्ल का, जिनके जाने पे जो किताब लिखी गई ये उस किताब के बारे में है साथ ही और सब के जाने के। सब क्षण में बीत जाने के बारे में । ये मेरे बारे में है शायद आपके बारे में भी है।
मैंने शायद ही किसी किताब के पढ़ने पे इतना कुछ कहा हो लेकिन इसके लिए लगा की कहु। क्युकी ये, उन मौतों के बारे में है, जो मौत से पहले होती है। और उस मौत के बारे में जो अंतिम सत्य है।
यह किताब मानव ने बहुत निजी भाव से लिखी है, ऐसा लगता है जैसे पूरी किताब शायर को लिखा एक ख़त है । यह किताब मेरे लिए संयोगों का बस्ता भर लाई है । मानव जैसे ही कोविड से उभरे वे लैंडोर लिखने चले गए थे, वहाँ से उनके इंस्टाग्राम पर आ रहीं पहाड़ों की तस्वीरें खूब उत्सुकता और उदासी लातीं । उत्सुकता उस सूरज की किरणों को छूने की जो देवदार से होतीं हुई उनको छू रहीं थीं, उदासी कयोंकि कोविड अपनी परमसिमा पर था और हम घर में बंद । मानव ने Naja Marie Aidt की किताब When Death Takes Something From You Give It Back, Carl’s book उनके कोविड से जूझने के समय में पढ़ी थी और ठीक होते ही लैंडोर पहुँच उस कित���ब के बारे में लिखना शुरू कर दिया था । संयोग से जब वे नाय्या की किताब के बारे में लिख रहे थे तब मैं Carl’s book पढ़ रहा था । फिर वे जब वे नाय्या से मिलने कोपनहेगन में थे तब में लैंडोर में पैदल घूमते हुए उनके लिखे के बारे में सोच रहा था । जब नाय्या ने मानव की किताब के परिशिष्ट के लिए कविता लिख भेजी मैं कश्मीर में ही था और मानव भी वहीं थे , वे वहाँ पहली बर्फ देख खुश हो रहे थे और मैं सोच रहा था चूँकि हम दोनों एक ही बरफ़ को देख रहें हैं क्या हम दोनों समान खुश हैं? क्या मुझे उनसे मिलने की कोशिश करनी चाहिए? क्या मेरा उनसे मिलना उनको पढ़ने के मेरे सारे आश्चर्य को ���़त्म कर देगा? अगर हम कभी मिले तब बहुत बचकाना होगा मेरा उनसे कुछ भी पूछना और चुप्पी मेरे छिछलेपन का चीख कर बयान देगी । इन सारे सवालों ने मुझे रोक लिया था चिन्मयीं को पूछने से की क्या वह मुझे उनसे मिलायेंगीं? मानव अपनी किताबों में अक्सर लिखतें हैं कि वह एक बहुत मामूली लेखक हैं। मैंने उनकी लगभग दस किताबें और दो नाटक पढ़ें हैं, हर बार यूँ लगता है की आप कोई मामूली पाठक नहीं हो सकते अगर आप इन्हें पढ़ रहें हैं । आख़िरी कुछ किताबों ने तो यूँ हौसला दिया कि मुझे लिखना चाहिए और बस लिखते रहना चाहिए, यह क़तई कोई मामूली लेखक का काम नहीं । इनकी यह किताब पढ़ने से पहले आपको नाय्या की किताब तथा मानव की कोई एक किताब ज़रूर पढ़नी चाहिए, ये किताब यात्रा का एक हिस्सा है, यात्रा इससे काफ़ी लंबी और गहरी है ।
I wish I could write a review in Hindi but it’s going to be really a mess if I try to. It’s actually funny to even try and review Manav Kaul’s book because how do you start the review when you yourself don’t know where the story started. Did it start in his dream post reading Naja Marie Aidt’s book or does it start in Landour when he is with Shayra or does it start when he is in Copenhagen with Naja, visiting Carl’s cemetery?
And so if even after reading it, I am unsure of its beginning then how do I post a review? :)
This isn’t my first Manav Kaul’s book but each time post reading it, I’m left with an aftertaste that is indescribable. I’m also not in an immediate rush to start a new book because I want to keep this one alive in me.
In 2015, Naja’s son Carl died and it resulted in a book called When Death Takes Something from You, Give It Back. In 2020, Manav Kaul read this book when he got Covid infection in Mumbai, and dreamt intensely about Naja resulting in his desire to write about this story.
I was always fascinated about the way Manav kaul writes, there is honesty there, the way he thinks about his characters and their interactions with each other. I got to know about this book through one of his interviews, he was talking about a book he read, 'When death takes something from you, give it back: Carl's book'. This book affected him so much that he went to meet its author in her city and experience all the places mentioned in the book. Titli is about his experience of going there and doing that. It's a very different type of writing, an experiment, if you will. So naturally I started with Carl's book first and then came to this one. And I am so glad I did this. Understanding death and writing about it is very difficult, and both the writers have outdone themselves.
Manav Kaul's books are never an easy read, unlike his first two collection of stories. What I have started loving about Manav Kaul's work are his references to beautiful literary works of other authors. And through this, I have been introduced to some very beautiful worlds. I am eternally thankful to Manav for that. He has made me fall in love with Hindi writings. ❤️ Won't write anything specifically about this book though. Not even sure if I am ready to recommend this to anyone, atleast not right now. All in good time.
इतनी सुंदर किताब. मानव जैसे लिखते हैं उससे वैसे ही लगता है जैसे आप लिखना नहीं पढ़ रहे बल्कि उनका बोलना सुन रहे हैं. हर शब्द दिल की गहराइयों से निकला हुआ. ये किताब मृत्यु के बारे में है भी और नहीं भी। इसमें प्रेम है, अकेलापन है, मृत्यु का एहसास है और जीवन है। ये किताब एक सफ़र है जिसके ख़त्म होने पे घर आने की ख़ुशी है पर उस सफ़र के ख़त्म होने की पीड़ा भी। पढ़ियेगा ज़रूर।
This is another book for Manav, where I found the writing so good that it takes you along the journey right from the deodar jungles to the very streets of Copenhagen and also makes one feel what his state of mind would have been through-out this journey. This also has gotten me excited to read Naja's book on Carl's death.
'Titli' is a typical Manav Kaul novel that leaves the reader with so many unanswered questions and a craving to have a definite end to the story. It will make you uncomfortable, sad, emotional, and even vulnerable, but what is incredible is that you'll still continue reading. The author has an exceptional talent for expressing grief in such a beautiful manner that I am speechless. This is Manav's brutal but honest piece of writing about 'Death' . It is NOT for the faint-hearted!!
This entire review has been hidden because of spoilers.
My first ever Hindi novel and what a place to start. The writing has stirred something in the writer in me. It’s been months or even years since the writer in me has felt moved enough to look inside and do something about the lack of writing.
Although the book is about Naja and Carl, for me the book is about writing and writing with honesty.
A good weekend read. The book has beautifully described death- Death could be horrifying, terrible, shocking (and all other adjectives), but could it be beautiful, can anyone cherish, savor the moment, describe, live a life around it? Yes. This book depicts the author's journey after reading a book about death-
Manav saw a dream, traveled to Copenhagen, and then wrote this book that touches you so deeply that it breaks you a little from the inside. A Heartbreaking read.
This was my first non academic which i started reading during my Neet preparation and it sparked me the curosity to read mor books other than my academics.
17 अगस्त को मानव कौल की किताब 'तितली' पढ़नी शुरू की। किताब के पहले पन्ने पर 22-01-23 लिखा है। 22 जनवरी को किताब मिल गयी थी लेकिन आधे से भी ज़्यादा साल बीत जाने पर भी इसे पढ़ा नहीं। लोग मुझे मज़ाक में कहते हैं कि CBBD (Compulsive Book Buying Disorder) से पीड़ित हूँ मैं। बस उसी के चलते किताबों के ढेर के नीचे अलमारी के किसी कोने में दबी रह गयी। कुछ दिन पहले कहीं इसके बारे में पढ़ते हुए Landour शब्द पर ध्यान गया। Landour बहुत खास है मेरे लिए; Ruskin Bond की वजह से। उनसे मिलने दो बार वहाँ जा चुकी हूँ। फिर ऐसा कैसे हो सकता था कि मैं Landour में रह कर लिखी किताब न पढ़ती? और जब वो किताब मानव कौल ने लिखी हो तो छोड़ने का सवाल ही नहीं था।
शुरू के कुछ ही पन्नों पर Naja Marie Aidt की किताब When Death Takes Something From You Give It Back: Carl's Book का ज़िक्र आया। मानव ने कहा वो नया प्रयोग करने जा रहे हैं; अपनी किताब में Naja की इस किताब को लिख रहे हैं। उत्सुकता स्वाभाविक थी। तितली पढ़ते हुए मन मानव की लिखी हुई मेरी ��ढ़ी पहली किताब 'तुम्हारे बारे में' की तरफ़ खिंच गया। मेरी सबसे पसंदीदा किताबों में एक है यह किताब। मानव ने दिल खोलकर रख दिया था इसमें। तितली में भी कुछ ऐसा महसूस हुआ मुझे। किताब एक बार हाथ में ली तो छोड़ने का मन नहीं था। जैसे तैसे किताब पढ़ने के बीच में रोज़ाना के ज़रूरी काम निपटाए। साथ ही फिर वही हमेशा वाला डर- किताब ख़त्म हुई तो क्या करूंगी? लेकिन कहीं न कहीं एक तसल्ली भी थी। पहले ही दिन Naja की किताब ऑर्डर कर दी थी। रविवार 20 अगस्त को मिल जानी थी। तब तक धीरे-धीरे तितली को ही पढ़ते रहेंगे। लेकिन इतना सब्र कहाँ जनाब? तितली को तो 19 दोपहर में ही किताब से आज़ाद कर अपने कमरे में लगे फूलों पर छोड़ दिया। मन खुश था या उदास ये जान नहीं पा रही थी। किताब के ख़त्म होने का दुःख था। अपने reader's block से बाहर आने और बहुत समय बाद कुछ अच्छा पढ़ पाने की खुशी थी। Naja की किताब का इन्तज़ार था। इसी इन्तज़ार, दुःख और खुशी के बीच 'तुम्हारे बारे में' हाथ में ली। कुछ highlight किए हुए वाक्य पढ़े। मुस्कराई। लेकिन मन तो कहीं और उलझा था। शायद उस तितली की तलाश में जो Carl की कब्र के आसपास लगे फूलों पर रहती थी। मानव और Naja की पहली बातचीत से बिल्कुल पहले की ख़ामोशी कानों में शोर मचा रही थी। शायर Landour में उस घास के टुकड़े पर मौन बैठी Naja की कहानी सुनते दिखाई दे रही थी। 'तुम्हारे बारे में' इसीलिए ज़्यादा देर तक नहीं पढ़ पायी। मुझे Naja और Carl के बारे में और जानना था। Naja ने लिखा था When death takes something from you give it back. मुझसे भी मौत ने मेरा अज़ीज़ छीना था। मुझे भी जानना था क्या मैं पूरी तरह से उबर सकती हूँ। 'तुम्हारे बारे में'नहीं पढ़ पायी। लेकिन उसे अपने क़रीब रखा। ऐसा लग रहा था एक दोस्त है पास में। मौत को पढ़ते हुए मन को एक सच्चा दोस्त ही शांत करवा सकता है। Naja की किताब 20 अगस्त को दोपहर में मिली। सुबह से ही इंतज़ार था। मन बेचैन हुए जा रहा था। बार बार दरवाज़े पर जा कर देखती कि कहीं मुझे doorbell सुनायी न दी हो और घर में से किसी और ने parcel पकड़ कर वहीं आँगन में रख दिया हो। अखिरकार करीब 2 बजे किताब मिली। पैकेट खोला। किताब को छुआ। चेहरे के पास लेकर गयी और apne गालों से लगा दी। फिर किताब की खुशबु लेनी चाही। न तो बहुत पुरानी खुशबु थी और न ही नयी। पहला पन्ना खोला और पेंसिल से तारीख लिख दी। उसके बाद अभी तक अगला पन्ना खोलने की हिम्मत नहीं जुटा पायी हूँ। इतनी शिद्दत से जिसका इंतज़ार कर रही थी उसे पढ़ नहीं पा रही हूँ। बस कभी हाथ में और कभी गोद में रखी रह रही है। अभी आलम यह है कि तीनों किताबें मेरी बग़ल में पड़ी हैं। तितली मुझे उत्साहित कर रही कि Naja की किताब शुरू करूँ, पूरी पढ़ूं और अपने सवालों के जवाब पाने की कोशिश करूं। 'तुम्हारे बारे में' एक सच्चे दोस्त की तरह साथ है मुझे संभालने के लिए।
आह! कितना मुश्किल है एक लेखक के लिए लिखना! और कितना मुश्किल है एक पाठक के लिए उस लिखे को पढ़ना जब उसे पता होता है कि इस में वो लिखा है जो उसकी बरसों से चल रही कशमकश को दूर कर सकता है। शायद उस कशमकश की आदि हो चुकी हूँ मैं। उसके जाने के बाद एक खालीपन रह जाने का डर है।