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“चटर-पटर बोलता हूँ, दिन भर इधर-उधर,
कहीं बोलता हूँ सही, तो कहीं पर बस गलत-गलत,
लेकिन जो चाहता हूँ वो एहसास,
करवा नहीं पाती ये बातें यहाँ,
बिन बोले जो बात है, वो बोलने में कहाँ...”
―
कहीं बोलता हूँ सही, तो कहीं पर बस गलत-गलत,
लेकिन जो चाहता हूँ वो एहसास,
करवा नहीं पाती ये बातें यहाँ,
बिन बोले जो बात है, वो बोलने में कहाँ...”
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“जलती हुई रोशनी भी दूर से टिमटिमाती हुई लगती है...
दूसरों की दर्द भरी आँखें भी मुस्कुराती हुई लगती हैं...
होता है कुछ न कुछ,
गम तो हर एक सीने में,
मगर दूर से हर एक ज़िंदगी खिलखिलाती हुई लगती है...”
―
दूसरों की दर्द भरी आँखें भी मुस्कुराती हुई लगती हैं...
होता है कुछ न कुछ,
गम तो हर एक सीने में,
मगर दूर से हर एक ज़िंदगी खिलखिलाती हुई लगती है...”
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“जलती हुई रोशनी भी दूर से टिमटिमाती हुई लगती है...
दूसरों की दर्द भरी आँखें भी मुस्कुराती हुई लगती हैं...
होता है कुछ न कुछ,
गम तो हर एक सीने में,
मगर दूर से हर एक ज़िंदगी खिलखिलाती हुई लगती है...”
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दूसरों की दर्द भरी आँखें भी मुस्कुराती हुई लगती हैं...
होता है कुछ न कुछ,
गम तो हर एक सीने में,
मगर दूर से हर एक ज़िंदगी खिलखिलाती हुई लगती है...”
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