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“विषयों को विष के समान त्याग कर, सत्य को अमृत जानकर मोक्ष को प्राप्त किया जा सकता है।”
― Ashtavakra Gita (अष्टावक्र-गीता)
― Ashtavakra Gita (अष्टावक्र-गीता)
“ऐसा जीवन्मुक्त विद्वान् सुख-दुःख में एक स्वस्थ भाव से रहता है। केवल अज्ञानी ही सुख में हर्ष और दुःख में शोक को प्राप्त होता है। ज्ञानवान् इनको एक बराबर जानकर आत्मानंद में मग्न रहता है।”
― Ashtavakra Gita (अष्टावक्र-गीता)
― Ashtavakra Gita (अष्टावक्र-गीता)
“भूख और प्यास-यह प्राण के धर्म हैं। शोक और मोह-मन के धर्म हैं। जन्म और मरण-सूक्ष्म देह के धर्म हैं। राजन्! आत्मा का कोई धर्म नहीं है। जो उत्पन्न होता है, बढ़ता है, परिणाम को प्राप्त होता है। क्षण-क्षण में क्षीण होता है, अन्त में नाश को प्राप्त होता है। यह स्थूल शरीर का धर्म है, आत्मा का नहीं, अपने को स्थूल देह से परे कर निर्विकार होने पर सच्चिदानन्द, परम शीतल, परमात्मा का रूप प्राप्त कर, क्रियारहित हो, मुक्ति प्राप्त होती है।”
― Ashtavakra Gita (अष्टावक्र-गीता)
― Ashtavakra Gita (अष्टावक्र-गीता)
“आत्मा के संकल्प से यह जगत् उत्पन्न हुआ है। संकल्प हटा लेने पर जगत् मिथ्या प्रतीत होगा। अपने-आपको शुद्ध स्वरूप में स्थापित करो और क्षुद्रता को प्राप्त न करो। इसी विचार के साथ संसार में जीवन मुक्त होकर विचरण करो।”
― Ashtavakra Gita (अष्टावक्र-गीता)
― Ashtavakra Gita (अष्टावक्र-गीता)




