Shree Shivkrupanand Swami
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April 2023
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https://www.goodreads.com/shreeshivkrupanandswami
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Shree Shivkrupanand
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“ईश्वर को किसी धर्मविशेष से बाँधा नहीं जा सकता है। वह तो निराकार है, वह तो मानने के ऊपर निर्भर करता है, आपके भाव के ऊपर निर्भर करता है। परमात्मा का कोई रूप नहीं है और जो रूप माने गए है, वे सभी माध्यम है। आप किसी भी माध्यम को मानकर ईश्वरप्राप्ति कर सकते है।”
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“ज्ञान तो स्वयं के अनुभवों से आता है। ज्ञान तो वर्तमान में प्राप्त होता है। आत्मज्ञान ही सही रूप में ज्ञान होता है। बाकि तो सारी जानकारी होती है, जिसे हम ज्ञान समझने की भूल कर रहे है, यह बाहर से प्राप्त जानकारी इस शरीर के साथ ही छूट जाती है।”
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“हम जीवन में अनुभव करते है कि हवा सर्वत्र होती है और उसके बिना हम एक क्षण भी जीवित नहीं रह सकते है। ठीक इसी प्रकार परमात्मा भी विश्व चैतन्य के रूप में सर्वत्र व्याप्त है। उसके बिना भी हम एक क्षण भी नहीं रह सकते है।”
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“ईश्वर को किसी धर्मविशेष से बाँधा नहीं जा सकता है। वह तो निराकार है, वह तो मानने के ऊपर निर्भर करता है, आपके भाव के ऊपर निर्भर करता है। परमात्मा का कोई रूप नहीं है और जो रूप माने गए है, वे सभी माध्यम है। आप किसी भी माध्यम को मानकर ईश्वरप्राप्ति कर सकते है।”
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“हम जीवन में अनुभव करते है कि हवा सर्वत्र होती है और उसके बिना हम एक क्षण भी जीवित नहीं रह सकते है। ठीक इसी प्रकार परमात्मा भी विश्व चैतन्य के रूप में सर्वत्र व्याप्त है। उसके बिना भी हम एक क्षण भी नहीं रह सकते है।”
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“आत्मा का मूल स्वभाव प्रेम है। प्रत्येक आत्मा का मूल स्वभाव प्रेम है। प्रेम एक ऐसा माध्यम है जिस माध्यम से एक आत्मा, एक आत्मा के साथ जुड़ जाती है - एकदम सरल मार्ग, एकदम आसान मार्ग; और फिर जैसे-जैसे प्रेम बढ़ते जाता है, वैसे-वैसे विश्वास निर्माण होना शुरू हो जाता है।”
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“ज्ञान तो स्वयं के अनुभवों से आता है। ज्ञान तो वर्तमान में प्राप्त होता है। आत्मज्ञान ही सही रूप में ज्ञान होता है। बाकि तो सारी जानकारी होती है, जिसे हम ज्ञान समझने की भूल कर रहे है, यह बाहर से प्राप्त जानकारी इस शरीर के साथ ही छूट जाती है।”
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“गुरु ही एक ऐसा माध्यम है जो आपको आप से ही मिलाता है और आप एक शरीर भर नहीं हो इसकी अनुभूति भी कराता है। यह अनुभूति से ही आपको आत्मज्ञान होता है। वही सच्चा ज्ञान है।”
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