Vinay Bhojraj Dwivedi
“जब मैं कामवश पागल होकर अपनी कन्या संध्या से मैथुन की इच्छा करने लगा तो धर्मराज ने भगवान शिव का स्मरण किया। तब शिवजी ने मेरे सामने प्रकट होकर मुझे प्रबोधित किया। शिवजी ने मुझे मेरे पुत्रों के सामने धिक्कारा और अपमानित किया, ऐसा मैंने शिवजी की माया से मुग्ध होकर ही सोचा और मेरे मन में प्रतिशोध की भावना बलवती हो गई। मैंने अपने पुत्रों से विचार किया, किन्तु शिवजी से बदला लेने का कोई उपाय मुझे नहीं सूझा। इस संदर्भ में भगवान विष्णु ने मुझे समझाने का प्रयास किया किन्तु, मैं अपने हठ पर अड़ा रहा। भगवान शिवजी को मुग्ध करने के लिए दक्ष की स्त्री से शक्ति के जन्म लेने के लिए मैं उपासना करने लगा।”
― Shiv Puran
― Shiv Puran
“रुद्राक्ष को धारण करने की एक विधि है। निम्नलिखित जाप करके ही रुद्राक्ष धारण करना चाहिए : (१) ॐ ह्रीं नमः (२) ॐ नमः (३) ॐ क्लीं नमः (४) ॐ ॐ ह्री नमः (५) ॐ क्लीं नमः (६) ॐ ह्री ह्रं नमः (७) ॐ ह्रुं ह्रुं नमः (८) ॐ ॐ हूं नमः (९) ॐ ह्रं ह्रीं नमः (१०) ॐ ह्रीं क्लीं नमः (११) ॐ क्लीं ह्रुं नमः (१२) ॐ क्रुं क्षु रुं नमः (१३) ॐ ह्रुं क्रुं नमः (१४) ॐ क्षुं क्लुं नमः इस मंत्र के बिना रुद्राक्ष नहीं धारण करना चाहिए। रुद्राक्ष से देवता लोग प्रसन्न होते हैं और भूत-पिशाच भी डरते हैं।”
― Shiv Puran
― Shiv Puran
“सनक कुमार ने इन तीनों बहनों को मनुष्य-योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया। यह जानकर तीनों बहनें बहुत दु:खी होकर मुनि के चरणों में गिर पड़ीं और क्षमा-याचना करने लगीं। उनकी प्रार्थना से सनक कुमार जी करुणा से भर गए और उन्होंने कहा कि मैना हिमाचल की पत्नी बनकर पार्वती को जन्म देगी और धन्या से जनक के यहां सीता का जन्म होगा और वृषभानु से विवाह करके कलावती राधा को जन्म देगी। अपनी इन पुत्रियों के कारण ही तुम अपना उद्धार करके स्वर्ग में लौट सकोगी।”
― Shiv Puran
― Shiv Puran
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