दीप त्रिवेदी

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दीप त्रिवेदी



Average rating: 4.07 · 297 ratings · 23 reviews · 2 distinct works
मैं मन हूँ / Main Mann Hoon

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3.82 avg rating — 761 ratings — published 2014 — 15 editions
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मैं कृष्ण हूँ: Main Krishna...

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4.10 avg rating — 399 ratings9 editions
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Quotes by दीप त्रिवेदी  (?)
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“​यदि आप जीवन से दुःखों को कम करना चाहते हैं तो आपको मनुष्य, वस्तु या विचार; सबसे अपना इन्वोल्वमेंट कम करना होगा। दरअसल यह इन्वोल्वमेंट आपके हजारों फिजूल के दुःखों का मूल है। आज के बाद आप खोजने की कोशिश करना कि जब भी आपको कोई दुःख या चिंता पकड़ती है तो उसकी जड़ में क्या है? आप आश्चर्यचकित रह जाएंगे कि आपके अधिकांश दुःखों के पीछे आप अपना इन्वोल्वमेंट का स्वभाव ही पाएंगे। इस बात को थोड़ा चौंकाने वाले तरीके से समझाऊं तो आप मानते हैं कि आप अपने परिवार से प्रेम करते हैं। परंतु सच कहूं तो यह आपका प्रेम नहीं, आपका इन्वोल्वमेंट है।  ​चौंक गए! चौंकिए मत...। चलो यही बात समझाने हेतु मैं आपको प्रेम व इन्वोल्वमेंट का फर्क समझाता हूँ। प्रेम व इन्वोल्वमेंट का यह बारीक फर्क समझने लायक भी है, और समझकर उसे जीवन में उतारने लायक भी है। प्रेम का अर्थ है-आप उसका हित तो चाहते हैं, परंतु उसे अपना नहीं मानते। जबकि इन्वोल्वमेंट का अर्थ हैः आप उसे अपना मानते हैं। और यह "अपना मानना" ही इन्वोल्वमेंट है। फिर होता यह है कि उस व्यक्ति को आंच आती है तो आप दुःखी हो जाते हैं। क्योंकि आप जाने-अनजाने उसे अपना हिस्सा मानने लग गए हैं। जबकि वास्तव”
दीप त्रिवेदी, मैं मन हूँ / Main Mann Hoon

“4) अल्टीमेट माइंड (Ultimate Mind)  ​अब बचा मेरा अंतिम लेकिन सबसे शक्तिशाली व महत्वपूर्ण स्वरूप, यानी अल्टीमेट माइंड। इसके प्रभाव व कार्यक्षेत्र को समझना थोड़ा कठिन है; फिर भी मैं आपको सरल भाषा में समझाने की कोशिश करूंगा। ...जरा सोचिए कि आपके चारों ओर इतने उपद्रव चल रहे हैं, आपके भीतर मन व बुद्धि के इतने नाटक चल रहे हैं; पर गौर करने लायक बात यह कि कोई तो है जो यह सब देख रहा है। ...तभी तो उसे यह सब चलने का पता चल रहा है। सोचो, कोई तो है जिसके पर्दे पर यह सारा नाटक चल रहा है। क्या आपने कभी इस तरह से सोचा है? क्या आपने कभी चिंतन किया है कि वह कौन है?”
दीप त्रिवेदी, मैं मन हूँ / Main Mann Hoon

“3) स्पोंटेनियस माइंड (Spontaneous Mind)  ​मुझे उम्मीद है कि आप कलेक्टिव कोन्शियस माइंड व उसके प्रभाव को समझ गए होंगे। सो, अब मैं आपको अपने स्पोन्टेनियस माइंड के अस्तित्व व उसके प्रभावों के बाबत समझाता हूँ।  ​दरअसल स्पोंटेनियस माइंड प्रकृति की 'क्षणिक-चेतना' का एक अंग है। जिसका यह मन सक्रिय हो जाता है, वह "सोचता" नहीं है। वह अपने जीवन के सारे फैसले इसी माइंड से लेना शुरू कर देता है। यह माइंड जो करने को सुझाए वह तत्काल कर देता है। फिर वह उसके लाभ-हानि या अच्छा-बुरा बाबत विचार नहीं करता।”
दीप त्रिवेदी, मैं मन हूँ / Main Mann Hoon



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