Ramsukhdas
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“अनुमोदित हिंसा होती है। इस तरह हिंसा नौ प्रकारकी हो जाती है। उपर्युक्त नौ प्रकारकी हिंसामें तीन मात्राएँ होती हैं—मृदुमात्रा, मध्यमात्रा और अधिमात्रा। किसीको थोड़ा दुःख देना मृदुमात्रामें हिंसा है, मृदुमात्रासे अधिक दुःख देना मध्यमात्रामें हिंसा है और बहुत अधिक घायल कर देना अथवा खत्म कर देना अधिमात्रामें हिंसा है। इस तरह मृदु, मध्य और अधिमात्राके भेदसे हिंसा सत्ताईस प्रकारकी हो जाती है। उपर्युक्त सत्ताईस प्रकारकी हिंसा तीन करणोंसे होती है—शरीरसे, वाणीसे और मनसे। इस तरह हिंसा इक्यासी प्रकारकी हो जाती है। इनमेंसे किसी भी प्रकारकी हिंसा न करनेका नाम ‘अहिंसा’ है।”
― Gita Sadhak Sanjeevani, Code 0006, Hindi, Gita Press Gorakhpur (Official)
― Gita Sadhak Sanjeevani, Code 0006, Hindi, Gita Press Gorakhpur (Official)
“भक्तके द्वारा अशुभ कर्म तो हो ही नहीं सकते और शुभ-कर्मोंके होनेमें वह केवल भगवान्को हेतु मानता है। फिर भी उसकी कोई निन्दा या स्तुति करे, तो उसके चित्तमें कोई विकार पैदा नहीं होता।”
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“लोभः’—निर्वाहकी चीजें पासमें होनेपर भी उनको अधिक बढ़ानेकी इच्छाका नाम ‘लोभ’ है। परन्तु उन चीजोंके स्वाभाविक बढ़नेका नाम लोभ नहीं है। जैसे, कोई खेती करता है और अनाज ज्यादा पैदा हो गया, व्यापार करता है और मुनाफा ज्यादा हो गया, तो इस तरह पदार्थ, धन आदिके स्वाभाविक बढ़नेका नाम लोभ नहीं है और यह बढ़ना दोषी भी नहीं है।”
― Gita Sadhak Sanjeevani, Code 0006, Hindi, Gita Press Gorakhpur (Official)
― Gita Sadhak Sanjeevani, Code 0006, Hindi, Gita Press Gorakhpur (Official)
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