विवेकानन्द
“हे मेरे युवा मित्रो, तुम बलवान बनो - तुम्हारे लिये मेरा यही उपदेश है। गीता-पाठ करने की अपेक्षा फुटबाल खेलने से तुम स्वर्ग के कहीं अधिक निकट होगे। मैंने बड़े साहसपूर्वक ये बातें कही हैं और इनको कहना अत्यावश्यक है। इसलिए कि मैं तुमको प्यार करता हूँ। मैं जानता हूँ कि कंकड कहाँ चुभता है। मैंने कुछ अनुभव प्राप्त किया है। बलवान शरीर तथा मजबूत पुट्ठों से तुम गीता को अधिक समझ सकोगे। शरीर में ताजा रक्त रहने से तुम कृष्ण की महती प्रतिभा और महान् तेजस्विता को अच्छी तरह समझ सकोगे। जिस समय तुम्हारा शरीर तुम्हारे पैरों के बल दृढ़ भाव से खड़ा होगा, जब तुम अपने को मनुष्य समझोगे, तब तुम उपनिषद् और आत्मा की महिमा भलीभांति समझोगे।”
― व्यक्तित्व का विकास (Hindi Self-help): Vyaktitwa ka Vikas (Hindi Self-help)
― व्यक्तित्व का विकास (Hindi Self-help): Vyaktitwa ka Vikas (Hindi Self-help)
“चरम लक्ष्य भले ही बहुत दूर हो, पर उठो, जागो और जब तक ध्येय तक पहुँच न जाओ, तब तक मत रुको।”
― व्यक्तित्व का विकास (Hindi Self-help): Vyaktitwa ka Vikas (Hindi Self-help)
― व्यक्तित्व का विकास (Hindi Self-help): Vyaktitwa ka Vikas (Hindi Self-help)
“जो सदैव इसी चिन्ता में पड़ा रहता है कि भविष्य में क्या होगा, उससे कोई कार्य नहीं हो सकता। इसलिए जिस बात को तुम सत्य समझते हो, उसे अभी कर डालो, भविष्य में क्या होगा या नहीं होगा, इसकी चिन्ता करने की क्या जरूरत? जीवन की अवधि इतनी अल्प है; यदि इसमें भी तुम किसी कार्य के लाभ-हानि का विचार करते रहो, तो क्या उस कार्य का होना सम्भव है? फल देनेवाला तो एकमात्र ईश्वर है। जैसा उचित होगा, वह वैसा करेगा। तुम्हें इस विषय में क्या करना है ? तुम उसकी चिन्ता छोड़कर अपना काम किये जाओ।”
― व्यक्तित्व का विकास (Hindi Self-help): Vyaktitwa ka Vikas (Hindi Self-help)
― व्यक्तित्व का विकास (Hindi Self-help): Vyaktitwa ka Vikas (Hindi Self-help)
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