“राम राम मित्रों, आज मैं सतयुग और कलयुग के बीच के अंतर को देख रहा था। मैंने ये पाया कि यह अंतर केवल युगों (समय) का नहीं, बल्कि हमारी सोच, वचन, कर्म, स्वधर्म का ज्ञान और पालन तथा सबसे महत्वपूर्ण – बोध का अंतर है।
मुझे लगता है कि उदर-भरण और परिवार का पालन-पोषण तो जीवन का लक्ष्य हमेशा से ही रहा है। तलब के तकाजे भी हर समय पर थे। मोक्ष, मान-सम्मान, धन – ये सभी इच्छाएं सदैव से मनुष्यों के मन में रही ही हैं। लेकिन सतयुग और कलयुग में इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के तरीकों में भिन्नता है। सतयुग में, शुभकर्म, मेहनत, वचन पालन और स्वधर्म पर बल दिया जाता था, जबकि कलयुग में क्षुद्रता, नीचता और अधर्म भी अपना रास्ता बना लेती है।
इसीलिए मेरा मानना है कि इस बोध से पहले का समय कलयुग है और इस बोध के बाद का समय सतयुग है।
बस यही बोध प्राप्त करने का सतत प्रयास हमारी प्रार्थना है।
प्रभु से प्रार्थना है कि उनकी कृपा से न केवल आपको जल्द ही बोध प्राप्त हो जाये, बल्कि आपके आस पास का ऊर्जाक्षेत्र और बोद्धक्षेत्र भी लगातार बड़ा होता जाए जिससे न केवल आप अपने जीवन में खुशी और समृद्धि प्राप्त कर पायें, बल्कि अपने परिवार और समाज के लिए भी वरदान बन जायें।
श्री रामाय नमः। ॐ हं हनुमते नमः।”
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